-संजय
चतुर्वेदी
गाढ़े
लेपों और प्राचीन मसालों की गंध में
वह
मिस्र के शाही ख़ानदान की
ताज़ा
ममी जैसी दिखाई दी
उसकी
गतियों में भी
जीवन
से अधिक निष्प्राणता की उपस्थिति थी
निर्जीव
जगत की विराटता
उसे
एक विराट सच्चाई देती थी
जीवन
तुच्छ था और दहशत से भरा हुआ था
चमक
और महक के निर्जीव आतंक में
रक्त,
लार और विचार जैसे जीवदृव्य झूठ थे.
1 comment:
प्रकृति नियमों में स्थिर पड़ी मानवीय जिजीविषा।
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