Friday, October 11, 2013

जी में आया यह भी कवि बच्‍चन में कुछ तो है


बावजूद मधुशाला के बच्चन जी

-वीरेन डंगवाल 


चांद की चकल्‍लस से 
कुछ सुंदर हुई रात 
थोड़ी-सी हवा चली 
और मजा आ गया 

बालकनी से दीखा 
सुदूर भूरे रंग का अंधकार 
जिसे भेदते दाखिल होती थी 
महानगर में 
अंतहीन-सी लगती कतार मोटर गाडियों की 
वैसे ही इस तरफ से भी जाती थी 

याद आए कुछ चेहरे 
भूलें भी कुछ कसकीं 
जी में आया यह भी 
कवि बच्‍चन में कुछ तो है 
बावजूद मधुशाला के !

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

मधुशाला के अतिरिक्त भी बहुत स्तरीय लिखा है बच्चन ने।