Thursday, May 11, 2017

उस चित्रकार को प्रणाम करता हूँ

या देवि!
- वीरेन डंगवाल

माथे पर एक आँख लम्बवत
उसके भी ऊपर मुकुट
बहुत सारे हाथ
मगर दीखते दो ही :
एक में टपकता मुंड
दुसरे में टपटपाता खड्ग
शेर नीचे खड़ा है
दांत दिखाता, मगर सीधा – सादा
बगल में नदी बह रही लहरदार
पहाड़ क्या हैं, रामलीला का पर्दा हैं
माता, मैं उस चित्रकार को प्रणाम करता हूँ

जिस ने तेरी यह धजा बनाई.

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