Sunday, April 26, 2020

हिमालय और लालच की मशीन


अक्टूबर 1995 था. सबीने और मैं पिछले तीन-चार महीनों से मध्य हिमालय की सुदूरतम घाटियों की धूल छानते भटक रहे थे. धारचूला की व्यांस, दारमा और चौंदास घाटियों के लम्बे और थका देने वाले सैकड़ों किलोमीटर के ट्रेक के बाद हम मुनस्यारी से शुरू होने वाली जोहार घाटी में पहुँच गए थे. धारचूला की घाटियों के मुकाबले इस घाटी में रह रहे लोगों की संख्या काफी कम थी. धारचूला की घाटियों के गाँवों में हमें खाने के लिए किसी भी दरवाजे को खटखटाना भर होता था. सहृदय ग्रामीण परिवार हमें अपनी रसोइयों में बिठा कर खाना खिलाते और देर रात तक चलने वाले किस्सों-कहानियों-नाच-गानों की महफिलों में शरीक होने का न्यौता दिया करते थे. जोहार में स्थिति भिन्न थी. खास तौर पर आख़िरी गाँव मिलम में जहाँ पहुँचने के लिए मुख्य सड़क से साठ किलोमीटर पैदल चलना होता था और जहां हमारे अलावा बस एक या दो परिवार अस्थाई रूप से रह रहे थे. गाँव के एक छोर पर एक पुरानी दुकान थी. इस दुकान को चलाने वाले एक बुजुर्ग सज्जन थे जिन्होंने पचास साल पहले के अति-संपन्न मिलम गाँव की वह शान देख रखी थी जब गर्मियों भर तिब्बत का राजदूत मिलम आकर रहता था. जिद से खोली गयी, गाँव में अपने घर में अकेले रह रहे उन सज्जन की दुकान पर आने वालों में वहां तैनात इक्का-दुक्का फ़ौजी और चरवाहे हुआ करते थे. दिन में एक या दो से ज्यादा ग्राहक नहीं होते थे.

एक परित्यक्त गेस्टहाउस में सामान डालने के बाद खाने की तलाश करते हुए हमें उसी दुकान पर पहुंचना ही था. पूछने पर पता चला कि उनके पास न आटा था न चावल और दाल. हां बाजार में नई नई आई मैगी थी और पेप्सी की बोतल भी.

अल्मोड़ा से मुनस्यारी पहुँचने वाली पक्की सड़क को बने हुए तब बहुत साल नहीं बीते थे. असलियत तो यह है कि उस पर आज भी काम चल रहा है और इस काम को अभी कम से कम सौ-पचास साल और चलना है.

अगर आप समझते हैं कि अरबों-खरबों फूंक कर बनाई जाने वाली फोर-लेन, ऑल-वेदर रोड जैसी सड़कों को पहाड़ियों की सहूलियत या जरूरत के लिए बनाया जाता है तो कभी मेरे साथ किसी लम्बे ट्रेक पर चल कर देखिये.

पच्चीस साल पहले मिलम में हुए अनुभव ने बता दिया था कि रास्ते भर दिखाई दे रहे रोड-रोलर, जेसीबी, ट्रक और गैंती-फावड़े थामे धरती खोदते मजदूर गाँव-गाँव तक मैगी और पेप्सी जैसी चीजें पहुंचा देने के वैश्विक अश्वमेध में लगी लालच की मशीन के बहुत छोटे-छोटे नट-बोल्टों से ज्यादा कुछ नहीं थे. हमारी सरकारों को उनसे थोड़े बड़े नट-बोल्टों से भरा डिब्बा समझा जा सकता है.

बस!