Saturday, April 12, 2008

मजरूह अपनी छाती को बखिया किया बहुत

अपने भाई लोगों की 'मीर' जुगलबन्दी देखकर एक पोस्ट से पहल अब तो लग रहा है कि बाबा मीर तकी 'मीर'के चंद अशआर मैं भी प्रस्तुत
कर ही दूं। सो अर्ज है-


हम जानते तो इश्क न करते किसू के साथ,
ले जाते दिल को खाक में इस आरजू के साथ।


नाजां हो उसके सामने क्या गुल खिला हुआ,
रखता है लुत्फे-नाज भी रू-ए-निकू के साथ।


हंगामे जैसे रहते हैं उस कूचे में सदा,
जाहिर है हश्र होगी ऐसी गलू के साथ।


मजरूह अपनी छाती को बखिया किया बहुत,
सीना गठा है 'मीर' हमारा रफू के साथ.
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नाजां = गर्वित, रू-ए-निकू = सुन्दर मुख ,हश्र = कयामत , गलू = शोर , मजरूह = घायल

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