Thursday, May 15, 2008
खट खुट करती छम छुम करती गाड़ी हमरी जाये
'मदर इन्डिया' की याद है ना! मेहबूब ख़ान ने १९४० में स्वयं बनाई ब्लैक एन्ड व्हाइट फ़िल्म 'औरत' के मेगा - रीमेक के तौर पर इस बड़ी फ़िल्म को १९५७ में प्रस्तुत किया था. 'मदर इन्डिया' ऑस्कर के लिये नामांकित होने वाली पहली भारतीय फ़िल्म थी. सर्वश्रेष्ठ विदेशी फ़िल्म की श्रेणी में उस साल फ़ेदेरिको फ़ेलिनी की 'नाइट्स ऑफ़ कैबेरिया' बाज़ी मार ले गई थी.
मेहबूब ख़ान की यह फ़िल्म दर्शकों के मन में नर्गिस की फ़िल्म के रूप में ज़्यादा गहराई से अंकित हुई है. आप नर्गिस के बिना इस फ़िल्म की कल्पना ही नहीं कर सकते. भारतीय स्त्री की पीड़ा के सारे आयामों को छूने वाली यह फ़िल्म आज भी हिन्दी फ़िल्मों के इतिहास में मील का पत्थर बनी हुई है.
सिने - जगत में इस फ़िल्म का प्रभाव इस क़दर गहरा था कि सन १९६० में रिलीज़ हुई 'कालाबाज़ार' (निर्देशक: विजय आनन्द) में देव आनन्द को 'मदर इन्डिया' के शो के टिकट ब्लैक करते हुए दिखाया गया.
इस फ़िल्म का संगीत भी शानदार था. शकील बदायूंनी के बोलों को नौशाद अली ने संगीतबद्ध किया था. सुनिये इसी फ़िल्म के दो गाने. शमशाद बेग़म का गाया 'पी के घर आज प्यारी दुलहनिया चली' मेरा ऑल-टाइम फ़ेवरेट है. उस के बाद गाड़ी वाला गाना (लन्दन में रहने वाले राजेश जोशी इस बात की तस्दीक करेंगे).
पी के घर आज प्यारी दुलहनिया चली
ओ गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हांक रे
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मदर इन्डिया
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