कू-ब-कू फैल गई बात शनासाई की
उस ने ख़ुशबू की तरह मेरी पज़ीराई की
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
तेरा पहलू तेरे दिल की तरह आबाद रहे
तुझ पे गुज़रे न क़यामत शब-ए-तन्हाई की
वो कहीं भी गया लौटा तो मेरे पास आया
बस यही बात है अच्छी मेरे हरजाई की
उस ने जलती हुई पेशानी पे जो हाथ रखा
रूह तक आ गई तासीर मसीहाई की
और ये लीजिये यही ग़ज़ल सुनाते हुए देखिये परवीन शाकिर को यूट्यूब पर:
5 comments:
कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने
बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की
waah! parveen shaqir ki adaayagi.shukriyaa ..sunvaaney ka..
राग-रागिनियों का आसरा लेकर ग़ज़ल गाने का जो सिलसिला बेगम अख़्तर के
गले से शुरू हुआ था वह उस्ताद मेहंदी हसन साहब तक आकर आबाद हुआ.अब
इसी बंदिश को देखिये अशोक भाई...दरबारी के आलाप को कैसे सँवारते हैं
ख़ाँ साहब ...जैसे कोई अपने घर के बाहर रंगोली सजा रहा है.
ये भी ख़ूब रहा कि आपने परवीन शाकिर जैसी ऊँचे पाये की शायरा को अपना
क़लाम पढ़ते हुए सुनवाया ..सादगी और ईमानदारी से भरा हुआ.लेकिन जब
ग़ज़ल को मौसिक़ी का ज़ेवर मिल गया तो परवीन आपा की ग़ज़ल के मिसरे
मिसरी से मीठे हो गए.
शायरा की रूह को जन्नत मिली ही होगी...ख़ाँ साहब की तबियत अच्छी रहे
ऐसी दुआएँ करें हम सब उनके मुरीद.खु़दा हाफ़िज़.
बहुत खूब !
subhan allah....
अशोक जी,
जितनी बार शायरा की छवि देखें लगता है :ऐसा मिश्रण beauty and brains का ,बहुत कम देखने को मिलता है|
मेहदी हसन खान साहब द्वारा गाये हुए इस version की कई खूबियाँ हैं परन्तु सबसे अच्छी बात हम जैसे उर्दू भाषा के विद्यार्थियों के लिए गायक का ग़ज़ल के मतले का अर्थ बताना है |
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