Monday, October 6, 2008

गुलज़ार की नज्म दरिया और पेंटिंग



गुलज़ार
मुंह ही मुंह, कुछ बुड़बुड़ करता, बहता रहता है ये दरिया
छोटी छोटी ख्वा़हिशें हैं कुछ उसके दिल में-
रेत पर रेंगते रेंगते सारी उम्र कटी है,
पुल पर चढ़ के बहने की ख्वाहिश है दिल में!


जाड़ों में जब कोहरा उसके पूरे मुंह पर आ जाता है,
और हवा लहरा के उसका चेहरा पोंछ के जाती है-
ख्वाहिश है कि एक दफ़ तो
वह भी उसके साथ उड़े और
जंगल से गायब हो जाए!!
कभी कभी यूं भी होता है,
पुल से रेल गुजरती है तो बहता दरिया,
पल के पल बस रूक जाता है-
इतनी-सी उम्मीद लिए-
शायद फिर से देख सके वह, इक दिन उस
लड़की का चेहरा,
जिसने फूल और तुलसी उसको पूज के अपना वर मांगा था-
उस लड़की सूरत उसने,
अक्स उतारा था जब से, तह में रख ली थी!!
(पेंटिंग - रवीन्द्र व्यास)

15 comments:

संदीप said...

मित्र प्रस्‍तुति अच्‍छी है,
क्‍या पेंटिंग के शीर्षके बारे में कुछ जानकारी है आपको

ravindra vyas said...

संदीपजी, शुक्रिया। इस नज्म पर बनी पेंटिंग मेरी ही है, उसे अलग से कोई शीर्षक नहीं दिया गया है।

Rajesh Joshi said...

एक ऑडियो फ़ाइल चिपकाना चाहता था. नहीं मालूम कैसे करते हैं. कोई बताओ भई.

एस. बी. सिंह said...

शायद फिर से देख सके वह, इक दिन उस
लड़की का चेहरा,
जिसने फूल और तुलसी उसको पूज के अपना वर मांगा था

बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

एस. बी. सिंह said...

राजेश भाई एक विधि तो मुझे मालूम है-
www.box.net पर जाकर अपना एकाउंट बनाइए । म्यूजिक फाइल अपलोड करिए My Files फोल्डर में। फाइल के सामने एक्शन पर क्लिक कर Blogger पर पोस्ट कराने का विकल्प चुनिए। जरुरी सुचनाए दीजिए। म्यूजिक फाइल पोस्ट हो जाएगी।

Udan Tashtari said...

आभार इस प्रस्तुति का!!

Sajeev said...

wow poetery well captured on canvas, रविंदर जी बधाई....

Gunjan Ki Goonj said...

vah. shabd bhi aur rang bhi.sundar

Unknown said...

विलक्षण, समंदर की तरफ से सोचती लगती है यह पेन्टिंग।

ravindra vyas said...

सबके प्रति गहरा आभार।

दीपक said...

इस मधुर प्रस्तुती के लिये आभार!!

siddheshwar singh said...

बहुत पहले प्रकाश विभाग की एक पुस्तक देखी थी जिसमें महाकवि गालिब के कलाम के (साथ) फ़ोटोग्राफ़्स थे,महादेवी की एक पुस्तक भी ऐसी ही है. आज कविता को चित्र में तथा चित्र को कविता में देखकर नैन जुड़ा गए.

BrijmohanShrivastava said...

रचना से मिलती तस्वीर और तस्बीर से मेल खाती रचना =भाई पंकज श्रीवास्तव भी लिखते है क्या ?यदि लिखते है तो उनका लिखा मुझे कहाँ पढने को मिलेगा यदि मुझे जानकारी उपलब्ध करायेंगे तो बड़ी महरबानी होगी

ज़ाकिर हुसैन said...

गुलजार मुझे बेहद पसंद हैं. उनकी इतनी अच्छी रचना और साथ में एक शानदार पेंटिंग देने के लिए आभार!

Ashok Pande said...

ऐसे अजब असंभव रंग. य्र दरिया कहीं आग कहीं बरफ़ कहीं चट्टान ... सारा का सारा रवीन्द्र व्यास!