मेरे पैतृक गांव अस्धना, ज़िला कानपुर, यूपी में पिछले १०८ सालों से हो रही रामलीला की कुछ तस्वीरें पेश हैं:
राजा जनक
तपस्यारत परशुराम
सीता के सम्मुख विलाप करते जनक
रावण
सीता स्वयंवर में आये विदूषकश्री और नर्तकी
संगीतकार और दर्शक
धनुष देखकर विचारमग्न राम
ये उठाये राम ने ग़ुब्बारे और हां धनुष भी
तोड़ डाला
बच्चों की मौज और राम की भी
ई देखो
सादी हो गई . जै हो.
8 comments:
रोहित भाई
आभार आपका आपने हमारी इस पुरातन परम्परा के दीदार करवा दिये अर्सा बाद. सिंथेटिक होती ज़िन्दगी में हमने जो जो अच्छा गवाँया है उसमें रामलीला भी है. सादा और बेतकल्लुफ़ परिवेश में जीता ये पूरा लोकनाट्य जैसे ज़िन्दगी को एक ख़ास तसल्ली बख़्शता था. मॉल,मोबाइल और कम्प्यूटर के पास ख़र्च होते इंसान के पास बतियाने और हँसने का वक़्त ही कहाँ रहा अब. वैसे वह हँस तो रहा है लेकिन नक़ली हँसी. एक छदम रामलीला जो रच ली है हमने अपने को बड़ा बताने और जताने की कि हमसे तो ज़्यादा अक़्लमंद कोई है ही नहीं.
राम जैसे कर्मयोगी को आदर्श बनाने के बजाय हमने राजनीति का पात्र बनाने की अनुमति दी .संगीत,संवाद,अभिनय और मनोरंजन की सरल-सहज होती रामलीला कितने दिन बचेगी ...सोच कर काँप जाता हूँ.
प्रणाम आपको ये झाँकी दिखाने के लिये.
देखी राम की लीला.१०८ साल से लगातार चल रही है , गजब है जी आपका गांव और वहां की लीला न्यारी लग रही है. फ़ोटू जानदार हैं .होली के फ़ोटू याद हैं अभई ताक.
बहुतै नीक !
जै हो ! जै हो!!
So good......
भई वाह!
रोहित भाई क्या बात है इस रामलीला की. ग़ज़ब.
I won't claim that Ramlila of Gurgaon had anything special , but i do miss that neem-sard atmosphere where people would come clad in half sweaters and village folks roamed around wrapped in khes and kambals . That fragrance of season's first edition moongfali imparted a special aura to the whole atmosphere and kids in schools discussed previous night's performances matching the zeal of cricket fans. Thanks for reviving the old memories . I look forward to many more pics. by u.Ashok bhai ko sadhuvaad.
बहुत बढिया
गावं की रामलीला देखे बहुत साल हो गए थे ।
ramleela dehkar dhaya ho gaye saab
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