Thursday, July 9, 2009
क़ुदरत भी रोई है सबको हँसाने वाले के जाने पर...
“हँसने की सुविधा ईश्वर ने सिर्फ़ मानव को प्रदान की है .आपने कभी किसी गधे को हँसते हुए नहीं देखा होगा,यदि कभी,कहीं, कोई गधा हँसता हुआ मिल जाए तो मान लीजियेगा वह मानव होने की तैयारी में है...और यदि कहीं कोई मानव मनहूसियत भरा उदासी में डूबा मिल जाए तो समझ लीजियेगा कि वह...
हँसने वाले पुरूष होते हैं; हँसाने वाले महापुरुष.”
यह वक्तव्य पं.ओम व्यास “ओम” का है जो तक़रीबन एक महीने तक दिल्ली के एक अस्पताल में अवचेतन रहे और 7 जुलाई की रात इस दुनिया ऐ फ़ानी से रूख़सत हो गए. इसमें कोई शक नहीं कि हिन्दी मंचीय कविता को दोयम दर्ज़े की मानने वाले लोग ओम व्यास को तवज्जो नहीं देंगे लेकिन सच कहूँ ओम भाई के भीतर कविता से पैसा कमाने वाले इंसान से अलहदा एक कवि ज़िन्दा था. वे हास्य कवि होने के बाद भी छिछोरेपन से बचते थे और यही वजह है कि उनकी कविता को पसंद करने वाले श्रोताओं एक बड़ी संख्या पूरे देश में मौजूद है.
वे मालवा के ह्रदय-स्थल उज्जैन के बाशिंदे थे और मालवी हास्य कविता के पितामह भावसार “बा” को अपना प्रेरणास्त्रोत मानते थे. ओम व्यास ने यदि सुरेन्द्र शर्मा,अशोक चक्रधर,माणिक वर्मा,स्व.ओमप्रकाश आदित्य,अरूण जैमिनी.शैलेश लोढ़ा,कुमार विश्वास,हुल्लड मुरादाबादी के साथ अपनी राष्ट्रीय पहचान बना ली थी तो उसकी एक वजह यह थी कि वे जनपदीय कवि की हीनता के बोध से उबर आए थे और अपनी कहन, परिवेश और शब्द कौशल पर भरोसा रखते थे.ये जानते हुए कि मालवी परिवेश और जन-जीवन को केन्द्र में रखी गई लिखी गई है,उसे देश ही नहीं विदेशी श्रोताओं के सम्मुख भी उन्हीं के कलेवर में परोसने का सलीक़ा सीख गए थे.
हास्य उनकी काव्य यात्रा का स्थायी भाव था और ठहाकेदार कविताएँ उनके लिये रोज़ी-रोटी का जुगाड़ भी करती थी लेकिन माँ और पिता शीर्षक की उनकी ताक़तवर कविताओं की लोकप्रियता का प्रमाण यही है कि न जाने कौन कौन अपने नाम से इन कविताओं को मंच पर सुनाकर और पत्र-पत्रिकाओं में छाप कर वाहवाही लूट रहा है.
ओम व्यास का ऑब्ज़रवेशन कमाल का था और वही उनके हास्य-व्यंग्य के लिये साज़ोसामान जुटा देता था पति-पत्नी शीर्षक से लिखी कविता की चंद पंक्तियाँ देखिये:
पत्नी जब देना बैंक होती है
पति बेचारा को-ऑपरेटिव बैंक हो जाता है
पत्नी पति की ज़िन्दगी में भारतीय जीवन बीमा
निगम बन कर आती है
और पति की ज़िन्दगी
ओरिएण्टल फ़ायर एंड जनरल इंश्योरेंस हो जाती है
आम पाक और मैसूर पाक नाम की मिठाइयों की तरह राजनीति पाक नाम के व्यंजन की रैसिपी ओम व्यास कुछ यूँ सुझाते थे:
सामग्री
धुली हुई बेईमानी 420 ग्राम
खड़ी ग़ुंडागिर्दी 840 ग्राम
कुटा हुआ अवसरवाद 420 ग्राम
भ्रष्टाचार आवश्यकतानुसार
चंदा स्वादानुसार
और थोड़ी सी सेवा सजावट के लिये
ओम व्यास की ख्याति और पहचान में वरिष्ठ कवि अशोक चक्रधर का अतभुत योगदान रहा. दरअसल अशोक भाई ने ओम व्यास की प्रतिभा को जान लिया था और उन्हें स्वराघात,माइक्रोफ़ोन के उपयोग,कब बोलना, कब रूक जाना और कैसे श्रोताजन के मन को पढ़ना आदि मंचीय फ़ार्मूलों की बाक़ायदा तालीम दी. मध्यप्रदेश के गणेश उत्सवों और नवरात्रि कवि सम्मेलनों से निकाल कर राष्ट्रीय आयोजनों में ओम व्यास को एकाधिक अवसर दिलवाने का श्रेय भी अशोक चक्रधर को ही है.स्वयं ओम भाई ने मुझे इन बातो की तफ़सील दी थी. वे अपने अंतर्मन में अशोक चक्रधर को अपना गुरू मानते थे.अशोक चक्रधर ने एक जगह लिखा है हास्य-व्यंग और करूणा का कवि ओम व्यास हँसाता है,संवेदनाओं में भिगाता है,घट रहा है जो सहज में “असहज” उसी को बताता है।
मैं कई आयोजनों में ओम व्यास को आमंत्रित करता रहा और हमेशा उनमें एक ठहाकेदार और सरल मनुष्य को पढ़ता रहा.मेरे एक आयोजन में डेढ़ घंटा काव्यपाठ के बाद उसी रात उन्हें एक दूसरे आयोजन में पढ़ना था. दूसरे दिन मैंने जिज्ञासावश उन्हें फ़ोन कर पूछा ओम भाई कैसा रहा मजमा.अपने चिर-परिचित अंदाज़ में ओम भाई मालवी में बोले “संजू भैया लुगाया दाँत काड़ी काड़ी के एक-दूसरा पे पड़ी री थी”(संजू भैया महिला श्रोता हँसते हँसते एक दूसरे पर गिर रहीं थी)
ओम व्यास महीना भर भोपाल के पास पहले उसी कार दुर्घटना में घायल हुए थे जिसमें कविवर ओमप्रकाश आदित्य,नीरज पुरी और लाड़सिंह गुर्जर का घटनास्थल पर ही निधन हो गया था तब मैंने अपने ब्लॉग पर ओम भाई के लिये दुआएँ मांगते हुए एक पोस्ट भी लिखी थी.पहले ओम व्यास का भोपाल में और बाद दिल्ली में उपचार किया गया लेकिन होनी को जो मंज़ूर था वह घट ही गया. मालवा ने तो एक लाड़ला कवि खो ही दिया; राष्ट्रीय परिदृश्य से भी एक ऐसा काव्य-शिल्पी विदा हो गया जिसमें असीम संभावनाएं थी और जो बहुत दूर तक अपनी शब्द साधना से श्रोताओं को गुदगुदा सकता था और मौक़ा पड़ने पर रूला भी सकता था.
न जाने कितनी बार ओम व्यास देश भर में काव्य-पाठ करने के बाद इन्दौर के एयरपोर्ट पर उतरते और कार से अपने शहर उज्जैन रवाना हो जाते.कल(8 जुलाई) की रात उनकी पार्थिव देह इन्दौर पहुँची.बहुत दिनों बाद मेरे शहर में बीती रात लगातार बरसात होती रही,क्या इस बरसात में कुदरत के आँसू भी बरस रहे थे...जो कह रही थी सबको हँसाने वाला ओम चला गया.
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15 comments:
shradhanjali ! i knew about the sad demise ,but was not aware that the cause was a road accident. how unfortunate and unpredictable life has become !
ओम भाई मेरे भी
बहुत प्यारे मित्र थे.....
प्रकृति ने क्रूर मजाक किया है.
खैर, हम सब अधीन हैं उसके....
अवधेश प्रताप सिंह
इंदौर
वर्तमान में वाचिक परंपरा का सबसे श्रेष्ठ कवि कोई था तो वे भाई ओम जी ही थे । उनके नाम के आगे स्वर्गीय लगाते हुए मन भर भर आ रहा है । शायद ईश्वर यही चाहता है कि हम हंसे नहीं क्योंकि हम हंसने के योग्य ही नहीं बचे हैं । ईश्वर को धता बताते हुए हम जी भर के हंस लेते थे जब ओम जी माइक पर होते थे । हमारी हंसी पर ही किसी की नजर लग गई ।
संजयभाई,
आपने अोमजी पर एक जरूरी पोस्ट लगाई है। आपने बिलकुल ठीक ही फरमाया है कि उनमें बहुत सारी संभावनाएं थी। कभी कभी मुझे लगता है कि मंचीय कवि सम्मेलनों मेंं लोकप्रियता के दबाव में वे अपनी बेहतर कविताएं शायद नहीं सुना पाए थे । एक अच्छे कवि को कभी कभी लोकप्रियता भी निगल जाती है। मुझे लगता है कि वे बेहतर कविताएं लिखते लेकिन यह हादसा हो गया।
इसी पोस्ट पर मैं यह भी कहना चाहूंगा कि आप में अपने मालवीपन को लेकर गहरी रागात्मकता है। इसीलिए मालवी लोगों औऱ मालवा के प्रति आपमें गजब की आत्मीयता है और गाहे बगाहे आप इस मालवा औऱ यहां के् लोगों पर अपनी खूबसूरत कलम चलाते रहे हैं। अोम जी पर आपकी यह पोस्ट इस बात की गवाह है। हममें मालवा धड़कता रहे, मालवीपन जिंदा रहे और वह मिठास और सुरीला पन भी बाकी रहे । मुझे लगता है कि अोमजी के जाने से मालवी कविता भी जल्द ही विदा ले लेगी।
मैं ओमजी के प्रति गहरी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। मुझे उनकी मां और पिता पर लिखी कविताएं पसंद थी। उनके परिवार को इस वक्त सिर्फ ईश्वर ही हिम्मत दे सकता है। यदि ईश्वर है तो उसे इस वक्त थोड़ी देर के लिए ही सही इस परिवार के साथ होना चाहिए...
श्रद्धांजलि!
माता-पिता,ज़ुबान और अपना वतन छोड़े नहीं छूटते रवीन्द्र भाई...क्या करूँ मालवा ज़िन्दगी की ऐसी ज़रूरत है जिसे आख़िरी साँस तक निभाना पड़ेगा हम सब को . आपने बड़ी शिद्दत से ओम भाई को याद किया...ठीक कहा आपने कि कहने की विवशताओं में काफ़ी कुछ अनकहा रह जाता है...ओम भाई से भी कुछ अच्छी कविताएँ एकांत में सुनीं थी जो कभी मंच पर नहीं आ पाईं.
नमन्
Jijvisha hi thi unki yah ki vah is jivansangharsh main maas ke tees dino tak mrutyu se bhi lad pade....
Parso vahi kali raat apna chehra badal kar fir aa gai mere bade bhaisahab ko le gai...apne sath aasaman se bhi upar...
ve vaha bhi ustsav mana rahe honge... nishchit hi ve vaha bhi hasya ke lateefe suna rahe honge.. "hasyamev jayte" gaa rahe honge
श्रद्धाजंली.....
विनम्र श्रद्धांजलि!
बेतवा महोत्सव की भीषण सड़क दुर्घटना में घयल होने के बाद, एक महीने से मौत से लडाई लड़ रहा , हिंदी हास्य कविता का दुलारा कवि ओम व्यास ओम आज चल बसा। ओम मेरे बेहद करीबी दोस्तों में था। हजारों राते साथ गुजारीं हमने ...बहुत बदमाशियाँ कीं... उसे मेरी कुछ बातें बहुत रिझाती थीं और उसकी कुछ चौबीस कैरेट अदाओं पर मैं फ़िदा था... कुछ वक़्त अलगाव भी रहा.. पर उसमें भी घरेलू यारी बनी रही.... अब भी ९ जून से लगभग रोज मैं उसे आईसीयू में जगाने के लिए झिड़क कर आता था ...वो जमीं फोड़कर पानी पीने वाला अद्भुत कौतुकी था ..पता नहीं इस सत्र में और आगे उसकी याद कहाँ कहाँ रुलाएगी ...भाभी ,पप्पू [उसका भाई ], भोलू और आयुष [उसे बेटे ] दीदी सबको ईश्वर शक्ति दे ...उस माँ को क्या कहूँ जिसकी कविता सुनाता-सुनाता वो मसखरा हर रात बिग बी से लेकर कुली तक सबकी आखों से नमी चुराकर ले जाता था। स्वर्ग में ठहाकों का माहौल बना रहा होगा ..चश्मे से किसी अप्सरा को घूर कर।
- डॉ. कुमार विश्वास (कवि,गाजियाबाद)
इश्वर को जो मंजूर!!
विनम्र श्रद्धांजलि..
meri hardik shradhanjali. maine unke hasya pradhaan roop ko mancho ke alawa bhi dekha hai.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन पं॰ओम व्यास ओम जी को ब्लॉग बुलेटिन की भावभीनी श्रद्धांजलि मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
विनम्र श्रद्धांजलि!
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