Thursday, January 28, 2010
आइये आलसी बनिये
बहुत दिन हुए सारे कबाड़ी सोए हुए हैं. स्वास्थ्य कारणों से मैं भी कुछ नहीं कर सका. बिस्तर पए लेटे लेटे 'Idler' पत्रिका के सम्पादक टॉम हॉजकिन्सन की दूसरी ज़बरदस्त किताब ’How to be idle' समाप्त की. असल में मैंने तो तय किया है कि अब कुछ दिनों तक इसी किताब को अपनी बाइबिल मान कर चलूंगा. अलार्म घड़ियों, जल्दी उठने की सलाह देने वाले हितैषियों, दुनिया में सफल होने के गुर बताने वालों को टैम्प्रेरी गुडबाई कहता मैं इस किताब से एकाध टुकड़े पेश करता हूं
---
हमें कोशिश करनी चाहिये कि हम हर काम को आलसीपन के साथ करें, सिवा पीने और प्यार करने में, सिवा आलसी होने में.
---
शहरों में रहने वाले सम्भ्रान्त लोगों ने कविता को बार बार त्यागा है क्योंकि उन्हें लगता है उनाके पास इस तरह की फ़िज़ूल चीज़ों के वास्ते बर्बाद करने को समय नहीं है. लेकिन एक कविता को थोड़े मिनटों में पढ़ा जा सकता है और उसके बड़े शानदार प्रभाव होते हैं. सुबह के दस बजे बिस्तर में लेटे आलसी आदमी के पास ऐसा करने का समय होता है.
---
सच्चा आलसी आदमी सिर्फ़ शनिवार को ही नहीं, हर समय अच्छा जीवन बिताना चाहता है. समय का आनन्द लिया जाना चाहिए बजाय कि आप हर समय उससे लड़ते रहें
Labels:
टॉम हॉजकिन्सन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
8 comments:
दिलचस्प है. अजगर करे न चाकरी..पर ऐसी किताब का लुत्फ़ लेना भी बड़ा काम है.
"सच्चा आलसी आदमी सिर्फ़ शनिवार को ही नहीं, हर समय अच्छा जीवन बिताना चाहता है. समय का आनन्द लिया जाना चाहिए बजाय कि आप हर समय उससे लड़ते रहें"
... बात तो एक दम सही है.... ट्राय करके देखते हैं!!! :)
वाह! टिपिया के आलसी हो जाते हैं! जय हो!
लगता है पढनी पढेगी
Satya vachan !
:)
mai sabse jyada idle exams me hi hoti hoon... aajkal yahi routine hai.. khoob sona, khoob khana, friends ke saath kavita karte hue sms chat karna (ab wo log kahin top na karle isliye unhe uljhana to padta hai na!) aur 'thoda' padhna !
mast anand bhara jeevan! Ab jeena to chahiye na anand ke saath ise!
:)
bahut badiya salah di aapane.amal jaroor karenge.
abhi tippani kya karoon, pahle aalasya kar to sakoon.
abhi tippani kaise karoon,
pahle alasya kar to sakoon.
Post a Comment