Friday, September 17, 2010

क्रिस तुसा की कविताएं

१९७२ में जन्मे क्रिस तुसा न्यू ऑरलियन्स के रहने वाले हैं और समकालीन अमरीकी कवियों में खासे प्रतिभाशाली माने जाते हैं. अमरीका और यूरोप की तमाम साहित्यिक पत्रिकाओं में छपने के बाद उनका पहला संग्रह "डर्टी लिटल एन्जेल्स" हाल ही में आया है.

लूसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी पढ़ाने के अलावा वे पोएट्री साउथ ईस्ट के मैनेजिंग डाइरेक्टर भी हैं.



1. अल्ज़ाइमर्स

मेरी दादी के दांत उन्हें घूरते हैं
नाइटस्टैण्ड में धरे एक मर्तबान के भीतर से

रेडियो अपने आप ऑन हो जाता है
रेंगती आती है खिड़की से धूप

और उन्हें लगता है उनकी चमकीली नीली आंखें
उनके सिर से बाहर निकला चाहती हैं

वे तय हैं कि उनका रक्त बदल चुका धूल में
कि तिलचट्टे घूमने लगे हैं उनकी हड्डियों के अन्धेरे खोखलों में

रसोई की घड़ी का बड़ा कांटा गायब हो चुका है
सिंक में रखे आलू अंखुवाने लगे हैं

वे घूरती हैं मेरे दादा जी को जो खड़े हैं दरवाज़े पर
उनकी मुस्कराहट थिरकती हुई जैसे कुल्हाड़ी की धार

बाहर, बरामदे में एक मुर्गी कूद रही है
ऊंची घासों के बीच, खोजती हुई अपना सिर.


2. मार्डी ग्रास* के दौरान मेरी मां का किन्डरगार्टन पोर्ट्रेट

दर असल वह दयनीय लग रही है, वाकई,
काली हवा का सहारा लिए
उसके बांए हाथ की तीन ऊंगलियां
थामे हुए एक पीला पर्स
उसकी दांई बांह सिर के ऊपर उठी हुई
जैसे वह बचा रही हो
खुद पर गिरते चांदी के सितारों की
बारिश से

एक दरार जैसा उसका मुंह
उगा हुआ उसकी नाक के नीचे
छेदों जैसे दो
उसके गालों पर गड्ढे. उसकी ठोड़ी से लटक रहा
एक गुलाबी कान.

इस समय इसे देखना, हां स्पष्ट है.
लेकिन सम्भवतः तब कौन जानता था
उसके चेहरे की छाया में मौजूद
अर्थ के उन घने रंगों को,
उसकी गरदन के गिर्द तैरती मोतियों की माला
की खामोश प्रासंगिकता,
उसके ऊपर उड़तीं नारंगी चिड़ियां
प्रश्नचिन्हों जैसीं?

या यह कि बीस साल बाद
इस सब का कोई मतलब होगा -
जिस तरह आसमान की तरफ़ देखती हैं उसकी आंखें,
जिस तरह मेरे पिता खड़े हैं उसके पीछे
भीड़ में, हवा में बांहें हिलाते,
जैसे वे डूब रहे हों धीरे धीरे
चेहरों के काले समन्दर में.

(मार्डी ग्रास: एक ईसाई परम्परा के अनुसार जनवरी - फ़रवरी के बीच एपीफ़ेनी और ऐश वैडनेसडे के दौरान पड़ने वाला समय जब खासतौर पर युवा और बच्चे खूब उत्सव मनाते हैं.)

2 comments:

Unknown said...

बिलकुल ऐसा ही [शायद और भी] - ऐसे पड़ाव ऐसी ही बीमारियाँ ऐसा ही समय - [कालो न यातो वयम् एव याता-. स्तृष्णा न जीर्णा वयम् एव जीर्णाः]!!

Unknown said...

बिलकुल ऐसा ही [शायद और भी] - ऐसे पड़ाव ऐसी ही बीमारियाँ ऐसा ही समय - [कालो न यातो वयम् एव याता-. स्तृष्णा न जीर्णा वयम् एव जीर्णाः]!!