Saturday, October 23, 2010

ओरहान वेली की कविता : मुफ्त की चीजों के लिए


 तुर्की कवि ओरहान वेली (१९१४ - १९५०) की कुछ कविताओं के अनुवाद  'कबाड़ख़ाना' और 'कर्मनाशा' पर आप पहले भी पढ़ चुके हैं। ओरहान वेली एक ऐसा कवि जिसने  मात्र ३६ वर्षों का लघु जीवन जिया ,एकाधिक बार बड़ी दुर्घटनाओं का शिकार हुआ , कोमा में रहा और जब तक जिया सृजनात्मक लेखन व अनुवाद का खूब सारा काम किया , के काव्य संसार में उसकी एक कविता के जरिए एक बार और प्रविष्ट हुआ जाय। तो आइए देखते पढ़ते हैं यह कविता :















ओरहान वेली की कविता
मुफ्त की चीजों के लिए
(अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह)

हम जीते हैं
मुफ्त की चीजों के लिए-

हवा मुफ्त में मिल जाती है।
बादल भी मिल जाते हैं मुफ्त।

पहाड़ और खड्ड भी उपलब्ध हैं फोकट में
बारिश और कीचड़ मुफ्त
कार के बाहर की दुनिया मुफ्त
सिनेमाघरों  के प्रवेशद्वार मुफ्त
दुकानों की खिड़कियाँ मुफ्त में झाँकने के वास्ते।

ऐसा नहीं है कि ब्रेड और पनीर मिल जाता है मुफ्त
लेकिन खारा पानी तो मिल ही जाता है मुफ्त में।

आजादी की कीमत होती है आपका जीवन
लेकिन गुलामी मिल जाती है मुफ्त में।

हम मुफ्त की चीजों के लिए
जिए जा रहे हैं
मुफ्त में।

10 comments:

सागर said...

कार के बाहर की दुनिया मुफ्त
सिनेमाघरों में प्रवेश मुफ्त""

यह क्या पहली लाइन के सन्दर्भ में है ? अगर है तो ठीक वरना यहाँ प्रवेश मुफ्त कहाँ है ?

आजादी की कीमत होती है आपका जीवन
लेकिन गुलामी मिल जाती है मुफ्त में।

हम मुफ्त की चीजों के लिए
जिए जा रहे हैं
मुफ्त में।


... यह तो सोचने वाली बात है सर

राजेश उत्‍साही said...

सचमुच।

राजेश उत्‍साही said...

एक अनुरोध है। यहां वैसे ही इतने कम लोग आते हैं उस पर भी आप मॉडरेशन का उपयोग करते हैं। अगर कोई अनुचित टिप्‍पणी आती भी है तो उसे बाद में हटाया जा सकता है। मुझे लगता है कि कम से कम हमें तो एक खुला वातावरण बनाना चाहिए।

डॉ .अनुराग said...

दिलचस्प .......

मुनीश ( munish ) said...

सुन्दर देश के कवि के सुन्दर विचार ! काश बाक़ी इस्लामिक मुल्कों ने तुर्की से कुछ इंसानियत ली होती तो दुनिया बेहतर होती .

Unknown said...

दिले बेरहम

अरुण चन्द्र रॉय said...

सचुमुच जीवन की जरूरतें तो मुफ्त में मिल जाती हैं फिर भी हम ना जाने किसके लिए गुलामी स्वीकार करते हैं... सुंदर कविता.. अनुवाद भी उछ कोटि का है...

दीपा पाठक said...

बहुत बढ़िया कविता और सुंदर अनुवाद।

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA said...

आजादी की कीमत होती है आपका जीवन
लेकिन गुलामी मिल जाती है मुफ्त में।

:)

हेमा दीक्षित said...

.... खारा पानी तो मिल ही जाता है मुफ्त में ...मुफ्त की हकीकते मुफ्त में हासिल हुई हमें ...
वाह वाकई पसंद आई ...