Tuesday, December 14, 2010

उदासी उतारती है स्मृतियों का आँगन

कबाड़खाना पर अपनी पहली पोस्ट लिखने से पहले बहुत कुछ दिमाग में वात-भंवर की तरह घूमने लगा.अपनी तमाम निजी किस्म की बातों जिनमें इस ब्लॉग की तरफ बहुत कुछ रूमानियत से भरा है, को परे रखते हुए आपके सामने राजस्थानी के वरिष्ठ और महत्वपूर्ण कवि डॉ.आईदान सिंह भाटी की एक कविता रख रहा हूँ. कविता उनके नवीनतम संग्रह ' आँख हींयै रा हरियल सपना ' से ली गयी है. कविता मरुस्थल में एकदम अकेले खड़े, गहन उदासी बुनते एक ऐतिहासिक स्थल 'किराडू' पर है. इसके भग्न अवशेषों को देखकर एक अलग ही किस्म का भारीपन महसूस होता है. अभी कुछ ही समय पहले किराडू के स्थापत्य और इतिहास पर मेरे मित्र डॉ.महेंद्र चौधरी ने शोध किया है.खैर आप भी देखें डॉ.भाटी किस तरह से इस खंडहर-शेष के बहाने उदासी की कविता कहते हैं.
पहले मूल राजस्थानी कविता और फिर अनगढ़ सा मेरा अनुवाद.

उदियासी

उदियासी
नी आथमतौ सूरज लावै
अर नीं पतझड़ रा पीळा पानड़ा.
वा जलमै
पाणीदार आंख्‍यां में
झरै वा
उण रिनरोही में
अेका-अेकलै उभै
किराड़ू रै तूटोड़ै-भागोड़ै
रूं रूं सूं.

उदियासी उठै-
ओळू रौ आंगणौ उतारै.

उदियासी उठै
थानै
म्‍हांनै
सगळां नै
झाड़ै बुहारै.

किराड़ू
थूं थारै दुखां सूं झुरै
कै म्‍हानै देख र
व्‍है जावै उदियास.


उदासी


नहीं लाता डूबता सूरज उदासी
और न ही लाते हैं पतझड़ के
पीले पत्ते.
जन्मती है वो पनीली आँखों में
झरती है
बियाबान में निपट अकेले खड़े
किराडू के भग्न- विखंडित रोम रोम से.

उदासी उतारती है वहाँ
स्मृतियों का आँगन.

उदासी बुहारती है वहाँ
तुम्हें
मुझे
और सबको.

किराडू
तुम अपने ही दुखों से
बिलख रहे हो
या हमें देखकर
हो गए हो और उदास.

10 comments:

vandana gupta said...

गंभीर लेखन ।

ghughutibasuti said...

बहुत सुंदर|
घुघूती बासूती

Rahul Singh said...

किसी कवि की पंक्तियां है- कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए.

पारुल "पुखराज" said...

beautiful

Neeraj said...

खूबसूरत कविता है | उदासी के मरुस्थल पर स्मृतियों की बारिश की बहुत जरूरत थी

कडुवासच said...

... shaandaar rachanaa !!!

प्रवीण पाण्डेय said...

उदासी स्मृतियों के आँगन से ही उतरती है।

Rahul Gaur said...

आइदान सिंहजी अर संजय जी
राजस्थानी कवित नै पहली बार पढयो है अर घणो आनंद हुयो - धन्यवाद.
आगे भी थारी प्रतीक्षा रह्वैगी.

अजेय said...

सुन्दर पोस्ट . कविता और अनुवाद दोनो ही शान्दार हैं,राजस्थानी में आधुनिक कविता पहली बार देख रहा हूँ. संजय भाई, राजस्थान को अपने मूल फ्लेवर के साथ हम तक पहुँचाने के लिए शुक्रिया. किराड़ू के बारे और कुछ जानने की इच्छा हुई है. अभी कल ही मैंने भी थार के कुछ चित्र पोस्ट किए हैं. भाई शैलेन्द्र चौहान की आँखों से....देखिएगा http://www.ajeyklg.blogspot.com/

सोनू said...

"अभी कुछ ही समय पहले किराडू के स्थापत्य और इतिहास पर मेरे मित्र डॉ.महेंद्र चौधरी ने शोध किया है"

क्या आप हिंदी विकिपीडिया में किराडू पर इस तरह का लेख शुरु कर सकते हैं? आपको जितनी जानकारी हो उतना ही लिखें। विकिपीडिया ऐसे ही बनता है। अंग्रेज़ी विकिपीडिया पर किराडू के मंदिरों पर एक छोटा-सा आलेख तो है।

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