Monday, March 28, 2011

द ऑटम ऑफ़ द पेट्रियार्क - 3

गाब्रीएल गार्सीया मारकेज़ के साक्षात्कारों की किताब अमरूद की ख़ुशबू के नवें अध्याय द ऑटम ऑफ़ द पेट्रियार्क के दो हिस्से आपने कल पढ़े थे. आज पढ़िये उस अध्याय का आख़िरी हिस्सा -


कुछ लोगों का मानना है कि तुम्हारा तानाशाह दो अलग-अलग ऐतिहासिक चरित्रों से बना है. एक तो ग्रामीण परिवेश का ‘काउदीयो’ है - गोमेज़ की तरह जो स्वातंत्र्योत्तर गृहयुद्धों की अराजकता और अव्यवस्था से निकल कर आया है और उस विशेष ऐतिहासिक समय में व्यवस्था और राष्ट्रीय एकता की इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है. फिर सोमोज़ा और त्रूहीयो समूह का तानाशाह है - अनजाना, फौज का छोटा-मोटा अफसर जिसमें कोई ‘करिश्मा’ नहीं और जो अमरीकी नौसेना द्वारा थोपा गया होता है. इस सिद्धान्त के बारे में तुम क्या सोचते हो?

आलोचकों के सिद्धान्तों से ज्यादा दिलचस्प्प बात मेरे दोस्त जनरल ओमार तोर्रोहियोस ने अपने मरने के अडतालीस घंटे पहले मुझसे कही थी, हालांकि मैं उससे हक्का-बक्का हो गया था (और खुश भी)- "द ऑटम ऑफ द पैट्रिआर्क - तुम्हारी सबसे अच्छी किताब है" - उन्होंने कहा था - "हम सब वैसे ही होते हैं जैसा तुम बयान करते हो."

यह विचित्र संयोग है कि ‘द ऑटम ऑफ द पैट्रिआर्क’ के प्रकाशन के समय इसी विषय पर कई लातीन अमरीकी लेखकों के उपन्यास छप कर आए. मैं क्यूबाई लेखक आलहो कारपेन्तीयर के ‘रीज़न्स ऑफ स्टेट’, पारागुए के आउगस्ता रोआ बास्तोस के ‘द सुप्रीमो’ और वेनेजुएला क आरतूरो उसलार पीएती के ‘ऑफिस फ़ॉर द डैड’ के बारे में सोच रहा हूँ. लातीन अमरीकी लेखकों में अचानक आई दिलचस्पी को तुम कैसे समझाओगे?

मैं नहीं समझता यह दिलचस्पी अचानक आई थी. बिल्कुल शुरू से ही यह लातीन अमरीकी साहित्य की विषयवस्तु रहा है और मैं समझता हूँ आगे भी रहेगा. यह बिल्कुल समझने की बात है क्योंकि तानाशाह ही इकलौता मिथक है जिसे लातीन अमरीका ने पैदा किया है और उसका इतिहास-चक्र खत्म होने से अभी बहुत दूर है. सामन्ती तानाशाह के पारंपरिक चरित्र में मेरी दिलचस्पी कम थी बनिस्बत सत्ता की प्रवृति के, मेरी सारी किताबों में यह विषयवस्तु देखी जा सकती है.

हाँ, बेशक ‘इन इविल आवर’ और ‘वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सॉलिट्यूड’ में इसे पहले ही दिखाया जा चुका है. मुझे तुमसे पूछना होगा - इस विषय में तुम्हारी इतनी अधिक दिलचस्पी क्यों है?

क्योंकि मैंने हमेशा माना है कि सम्पूर्ण सत्ता मानव की उच्चतम और जटिलतम उपलब्धि है और, इसलिये यह मनुष्य की उदारता और उसके अपकर्ष का सत्व .जैसा कि लॉर्ड एक्टन ने कहा है, "हरेक सत्ता भ्रष्ट होती है और सम्पूर्ण सत्ता सम्पूर्ण भ्रष्ट होती है" किसी भी लेखक के लिए इसे एक उत्तेजक विषयवस्तु होना ही चाहिए.

मैं समझता हूँ सत्ता के साथ तुम्हारा पहला सामना विशुद्ध साहित्यिक रहा. क्या किसी खास लेखक या पुस्तक ने तुम्हें इस बाबत कुछ सिखाया है?

ईडियस रेक्स’ ने मुझे कुछ सिखाया. प्लूटार्क और सुएटोनियस और जूलियस सीज़र के जीवनी-लेखकों से मैंने थोड़ा बहुत सीखा.

उसका चरित्र तुम्हें बहुत आकर्षित करता है?

न सिर्फ वह मुझे आकर्षित करता है, पूरे साहित्य में वह एक पात्र है जिसे मैं रचना चाहता था चूँकि ऐसा नहीं हो सकता था, मुझे अपने तमाम लातीन अमरीकी तानाशाहों से मिलाकर एक तानाशाह का निर्माण कर के काम चलाना पड़ा.

तुमने ‘द ऑटम...’ के बारे में कई विरोधी बातें कही हैं सबसे पहले तो यह कि यह तुम्हारी सभी किताबों में यह सबसे क्षेत्रीय हैं जबकि तथ्य यह है कि भाषाई दृष्टिकोण से यह सबसे अधिक शहरी और शायद सबसे मुश्किल...

नहीं, इसे कैरिबियन भर की लोकप्रिय कहावतों और मुहावरों का प्रयोग किया गया है. तमाम अनुवादक उन वाक्यों का अनुवाद करने के चक्कर में पगला जाते हैं जिन्हें बारान्कीया का कोई भी टैक्सी ड्राइवर समझ जाएगा और तुरन्त मुस्कराने लगेगा. कोलम्बियाई तट की महक लिये एक भरपूर कैरिबियाई किताब है यह-यह एक ऐसी सुविधा थी जिसे ‘वन हंड्रेड...’ का लेखक कर सकता था. जब उसने वह लिखने की ठानी जो वह चाहता था.

तुम यह भी एक आत्मस्वीकृति में कहते हो कि यह किताब व्यक्तिगत अनुभवों से भरी हुई है. कूटभाषा में लिखी आत्मकथा - एक दफ़ा तुमने कहा था.

यह एक आत्मस्वीकृति है. यह इकलौती किताब है जिसे मैं लिखना चाहता था पर कभी नहीं लिख पाया.

यह अजीब लग सकता है कि आप अपने व्यक्तिगत अनुभवों का प्रयोग किसी तानाशाह की जीवनी के पुनर्निर्माण में करें. किसी भी मनोचिकित्सक के कान यह सुनकर खड़े हो जाएँगे. तुमने एक बार कहा था कि सत्ता का अकेलापन लेखक के अकेलेपन जैसा होता है. क्या तुम संभवतः प्रसिद्धि के अकेलेपन की बात कर रहे थे? क्या तुम समझते हो कि प्रसिद्धि प्राप्त करने और उसके साथ रहने ने तुम्हें गुप्त रूप से तानाशाह के साथ सहानुभूति करना शुरू कर दिया है?

मैंने कभी नहीं कहा कि सत्ता का अकेलापन लेखक के अकेलेपन जैसा होता है. मैंने यह कहा था कि एक तरफ प्रसिद्धि का अकेलापन काफी कुछ सत्ता के अकेलेपन जैसा होता है और दूसरी तरफ ये कि लिखने में अकेला और कोई पेशा नहीं हो सकता-यानी जब आप लिख रहे होते हैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता- न ही कोई यह जान सकता है कि आप करना क्या चाह रहे हैं. आप नितान्त अकेले हों, पूरी तरह कटे हुए, आपके सामने एक खाली पन्ने.

जहाँ तक सत्ता के अकेलेपन और प्रसिद्धि के अकेलेपन का सवाल है यह निश्चित है कि सत्ता में बने रहने की नीति और खुद को प्रसिद्धि से बचाने की नीति काफी कुछ एक सी होती है. शायद दोनों मामलों में अकेलेपन का यही कारण होता है मगर इसके अलावा भी बहुत कुछ है. प्रसिद्धि और सत्ता में सम्पर्क की मूलभूत कभी इस समस्या को आर गहरा देती है. अन्ततः इस नतीजे पर पहुँच सकती है कि सूचना की समस्या ही दोनों - सत्ताशीन और प्रसिद्धि - को दुनिया की बदलती हुई और क्षणित वास्तविकता से दूर कर देती है. सत्ता और प्रसिद्धि एक बड़ा सवाल खड़ा करते हैं - "आप किस पर एतबार करेंगे?" इसके आश्चर्यजनक निष्कर्ष तक पहुँच जाय तो यह अंतिम सवाल लेकर आता है-"आखिर मैं हूँ कौन?" इस खतरे की पहचान, जिसे मैं प्रसिद्ध लेखक न होने की स्थिति में समझ भी नहीं सकता है, ने मुझे एक ऐसा तानाशाह बनाने में सहायता की जो किसी भी चीज को लेकर निश्चित नहीं है, शायद अपने नाम को लेकर भी नहीं, आगे और पीछे - लेने और देने के इस खेल में लेखक के लिए यह असंभव है कि उस अपने पात्र से सहानुभूति न हो, वह कितना ही घृणित क्यों न दीखता हो-चाहे ऐसा केवल सहानुभूति के कारण ही क्यों न हो.

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रसिद्धि का अकेलापन, सत्ता का अकेलापन कब कितना घातक हो जाये, समझा नहीं जा सकता है।