Monday, April 4, 2011

वर्ल्ड कप में जीत के बहाने

दक्षिण एशियाई यथार्थ और क्रिकेट

- शिवप्रसाद जोशी


क्रिकेट टीम की विश्व कप जीतने की घटना ऐतिहासिक है. 28 साल बाद खिलाड़ियों ने कप जीत लिया है. क्रिकेट के लिए ये एक "रिवाइवल" का मौक़ा है.

ऐसा रिवाइवल जो बाज़ार और विराट कंपनियों के साए में उसे हासिल हो चुके रिवाइवल से अलग है. इस रिवाइवल से काफ़ी पहले बहुत पहले शायद 90 के दशक में ही बाज़ार की शक्तियों ने क्रिकेट को अपनी चतुर रणनीति के तहत "गोद" ले ही लिया था. क्रिकेट में कला का रिवाइवल हुआ है. लेकिन उसके साथ साथ अन्य "कलाएं" भी लिपट आई हैं. कला पर नीलामी की चोट करने वाली कला.

बाज़ार के लिए भले ही ये एक मुंह मांगी मुराद का पूरा हो जाने जैसा है लेकिन क्रिकेट के भावी खिलाड़ियों, देश के विभिन्न शहरों गलियों मोहल्लों में क्रिकेट को अपना लक्ष्य बना चुके युवाओं के लिए ये एक बोनस की घड़ी है. हालांकि उनके लिए ये सिर्फ़ उत्साह का बोनस है. लेकिन रत्न और ऐश्वर्य भरे सागर में क्रिकेट की इस गोता लगाती डूबती हुई लगातार डूबती हुई और खेलती हुई ख़ुशियां कुछ सवाल तो पैदा करती ही हैं.

आप इसे संयोग ही कहिए कि जीत के बाद हम देखते हैं कि वानखेड़े स्टेडियम से एक एक कर उद्योग और मनोरंजन और कॉरपोरेट और राजनैतिक जगत के महारथी निकलते आ रहे हैं. इस एक्ज़िट द्वार से आते हुए महानुभावों के चेहरों और भाव भंगिमा पर अपार तृप्ति और राहत का भाव है. दांव जीत जाने के भाव वहां हम से लौटता हुआ देखते हैं. क्या ये सिर्फ़ प्रशंसक हैं. क्या अब क्रिकेट के एक ज़्यादा विहंगम ज़्यादा आक्रामक ज़्यादा भीषण ज़्यादा अहंकारी ज़्यादा अमीर युग के आगमन की आहट है.

जब समस्त दावतें, हुंकार, नारे और चिल्लाहटें ख़ामोश हो जाएंगीं, जब सड़कों पर जमा गर्दोगुबार बैठ जाएगा, जब लोग अपने अपने यथार्थों में लौटेंगे, जब उन्हें अचानक ख़ुशी के बीत जाने के बाद का खालीपन और सन्नाटा और छलावा सा महसूस होने लगेगा तब कुछ सवाल बनेंगे. कुछ तो सवाल बनेंगे ही.

क्रिकेट जैसी घटनाओं से जुड़ी अगर हर नाकामी पर हम लोग आलोचक बनने से नहीं चूकते हैं तो हर क़ामयाबी पर ख़ासकर इस तरह की "बड़ी" क़ामयाबियों पर भी आलोचना के तेवर ढीले क्यों करें. क्रिकेट अगर इतने बड़े पैमाने पर एक साथ पूरे देश को एक कर देने का दावा करता है तो वो सिर्फ़ ऐसी जीतों पर भी क्यों ऐसा करता हुआ दिखता है, क्या बाक़ी समय उसका इस समाज से लेना देना नहीं रहता.

क्रिकेट से जुड़ा हमारा सवाल ये है कि इसने दक्षिण एशिया को एकजुट किया है जैसा कि कहा जा रहा है या इसने नई जकड़बंदी बना दी है. नई ज़ंजीर. कबाड़ख़ाना की एक पिछली पोस्ट में अशोक पांडे ने काफ़्का को कोट किया कि मैं ज़ंजीरों में हूं मेरी जंजीरों को मत छुओ. क्रिकेट के संदर्भ में देखें तो महान खेल की आत्मा शायद यही कहती होगी.

8 comments:

Neeraj said...

अगर बात सिर्फ क्रिकेट की महानता साबित करने की होती तो भी क्या मैं इस लेख में ये पंक्ति पढ़ सकता था कि 'क्रिकेट के संदर्भ में देखें तो महान खेल की आत्मा शायद यही कहती होगी.'
क्या ये सिर्फ अपनी बात को साबित करने के लिए कुछ अलंकारपूर्ण वाक्यांश का इस्तेमाल नहीं | बहरहाल हर बार की तरह आपका गद्य ध्यान भटकने नहीं देता, बांधे रखता है |

प्रवीण पाण्डेय said...

मेरी जंजीरें मेरी हैं, मैं फिर भी जीत सकता हूँ।

बाबुषा said...

दूसरे पैराग्राफ तक पहुँच कर ही comment लिख रही हूँ ! शेष इसके बाद पढ़ूंगी !
मुझे तो नहीं लगता कि कला का रिवाइवल हुआ है ! टेस्ट slow ही चलते थे पर समझ लीजिये ५ दिन तक आप कोई कविता पढ़ रहे हों ! कम से कम मैं तो अब भी टेस्ट क्रिकेट की दीवानी हूँ ! (I know I m outdated n a bit old-fashioned !) लेकिन बात कला की चली है तो कहना ही होगा बल्कि पूछना होगा-कैसे हुआ कला का रिवाइवल? कोई मुझे भी बताए 20 -20 में क्या कला है ? शायद मेरी कला की समझ उतनी पैनी नहीं ! नहीं देखती 20 - 20 ! वो आज के कानफाडू संगीत की तरह है! कोई सुन्दरता ही नहीं नज़र आती ! बस 'दे घुमा के ' ! और है ही क्या इसके सिवा उस फॉर्मेट में !

बहरहाल ये टिप्पणी मात्र एक वाक्य पढ़ कर लिख दी मैंने ! (सच ही कहा है किसी ने- जब पुरुष एक वाक्य कहता है तो स्त्री एक पृष्ठ कहती है !:-) ) आगे का पढ़ती हूँ अब ! :-)

बाबुषा said...

पैराग्राफ 4 - अंतिम वाक्य - क्या अब क्रिकेट के एक ज़्यादा विहंगम ज़्यादा आक्रामक ज़्यादा भीषण ज़्यादा अहंकारी ज़्यादा अमीर युग के आगमन की आहट है.

हाँ.. होगा ये ज्यादा आक्रामक, ज्यादा भीषण, ज्यादा विहंगम....लेकिन एक 'भौंचक युवा' इस बात को भी गाँठ बाँध ले कि ' क्रिकेटर का जीवन छोटा है!' सचिन तेंदुलकर 24 अप्रैल 1973 को पैदा हो चुके हैं....और इतिहास बन चुका है ! अभी तो सैकड़ों साल लग सकते हैं किसी 'दीर्घायु' के आगमन में !

A GK question for class 8th students - children, do u know who is 'Ajit Agarkar'?

No, really ! Now you better focus on your studies!

इतना ही छोटा है क्रिकेटर का जीवन !

बाबुषा said...

आखिर के तीनो पैराग्राफ्स से इत्तेफाक रखती हूँ ! कहीं न कहीं वही सोच थी मेरी भी बिना पढ़े ! पढ़ने के बाद लगा बात वही है ..! ये और बात है कि हम भी अभी वर्ल्ड कप कि खुमारी में हैं ! :-)

अब काफ्का को पढ़ लूँ..कल नहीं पढ़ पायी थी !
शुभ दिवस.

मुनीश ( munish ) said...

Well u know about my hatred for cricket and Pakistan , but u know who wished me most genuinely on this win here --Pakis !

मुनीश ( munish ) said...

India won this bloody cup and they embraced us Indians with tears in their eyes . What hack i can't understand this bloody game !

अजेय said...

क्रिकेट एक बड़ा खेल है. ऐसा खेल जिस को *खेलना* नहीं *देखना* महत्वपूर्ण है. देख इंडिया , देख!