Friday, May 6, 2011

फिर हमीं क़त्ल हो आयें यारों चलो


फ़ैज़ साहब का एक दुर्लभ वीडियो



चश्म-ए-नम जान-ए-शोरीदा काफी नहीं
तोहमते-इश्क़ पोशीदा काफी नहीं
आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो

दस्त-अफ्शाँ चलो, मस्तो-रक़्सां चलो
खाक-बर-सर चलो, खूं-ब-दामाँ चलो
राह तकता है सब शहर-ए-जानाँ चलो

हाकिम-ए-शहर भी, मजमए-आम भी
तीर-ए-इल्ज़ाम भी, संग-ए-दुश्ना म भी
सुबह-ए-नाशाद भी, रोज़-ए-नाकाम भी

इनका दमसाज़ अपने सिवा कौन है
शहर-ए-जानां में अब बा-सफा कौन है
दस्त-ए-क़ातिल के शायाँ रहा कौन है

रख्ते-दिल बांध लो दिलफिगारों चलो
फिर हमीं क़त्ल हो आयें यारों चलो

आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो

यही रचना सुनिये नय्यारा नूर की आवाज़ में -