Friday, September 16, 2011

नूर मुहम्मद `नूर’ की ग़ज़ल -१

भारत और पाकिस्तान की समकालीन परिस्थितियों को केन्द्र में रख कर लिखी गई भाई नूर मुहम्म्द नूर की यह ग़ज़ल -


इधर पेच है तो मियाँ, ख़म उधर भी

इधर पेच है तो मियाँ, ख़म उधर भी
वही ग़म इधर भी वही ग़म उधर भी

है दोनों तरफ दर्दो-ग़म भूख ग़ुरबत
दवा बम इधर भी दवा बम उधर भी

उजाला यहाँ से वहाँ तक परेशाँ
वही तम इधर भी वही तम उधर भी

किसी से भी कोई न छोटा बड़ा है
वही हम इधर भी वही हम उधर भी

ज़रा-सी मुहब्बत ज़रा-सी शराफ़त
वही कम इधर भी वही कम उधर भी

उखड़ता हुआ नूर इंसानियत का
वही दम इधर भी वही दम उधर भी

2 comments:

Patali-The-Village said...

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल|

जीवन और जगत said...

बहुत खूब। मतला और मकता दोनों लाजवाब लगे मुझे तो। ग़जलगो वाकई तारीफ के हकदार हैं।