भारत और पाकिस्तान की समकालीन परिस्थितियों को केन्द्र में रख कर लिखी गई भाई नूर मुहम्म्द नूर की यह ग़ज़ल -
इधर पेच है तो मियाँ, ख़म उधर भी
इधर पेच है तो मियाँ, ख़म उधर भी
वही ग़म इधर भी वही ग़म उधर भी
है दोनों तरफ दर्दो-ग़म भूख ग़ुरबत
दवा बम इधर भी दवा बम उधर भी
उजाला यहाँ से वहाँ तक परेशाँ
वही तम इधर भी वही तम उधर भी
किसी से भी कोई न छोटा बड़ा है
वही हम इधर भी वही हम उधर भी
ज़रा-सी मुहब्बत ज़रा-सी शराफ़त
वही कम इधर भी वही कम उधर भी
उखड़ता हुआ नूर इंसानियत का
वही दम इधर भी वही दम उधर भी
2 comments:
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल|
बहुत खूब। मतला और मकता दोनों लाजवाब लगे मुझे तो। ग़जलगो वाकई तारीफ के हकदार हैं।
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