Saturday, February 18, 2012

कुल्लू मे उदय प्रकाश

कुल्लू के ढालपुर कॉलेज मे आज समकालीन हिन्दी कहानी पर दो दिवसीय परिसम्वाद गोष्ठी सम्पन्न हुई. चर्चा के केन्द्र थे चर्चित कथाकार उदय प्रकाश , काशी नाथ सिंह , और विजय दान देथा .युवा आलोचक संजीव कुमार ने उदय प्रकाश की तीन कहानियों टेपचू ,मोहनदास और मेंगोसिल के बहाने उन की अब तक की सम्पूर्ण कथा यात्रा को बेहद खूबसूरती के साथ सामने रखा . इस के अतिरिक्त इस चर्चा मे भारत भरद्वाज, दीनू कश्यप , अवतार साहनी , और निरंजन देव शर्मा सहित दर्जन भर लोगों ने परचे पढ़े और *भाषण * दिए.कॉलेज के छात्रों और अध्यापकों ने अलोचनात्मक लेख पढ़े . अंग्रेज़ी के प्रवक्ता राकेश राणा का यह पत्र मुझे विशेष रूप से पसन्द से आया . कुल्लू मे अच्छे गम्भीर पाठक पैदा हो गए हैं , यह इस पत्र से स्पष्ट हो जा रहा है.


स पत्र के शीर्षक को अंग्रेजी में रखने का साहस य प्रेरणा मुझे लेखक से ही मिली है क्योंकि उन्होंने अपनी इस कहानी -पीली छतरी वाली लड़की’ में अंग्रेजी का व्यापक प्रयोग किया है। मुख्य रूप से पात्रों के वार्तालाप में। शीर्षक की पहली टर्म सबऑलर्टन है। इसका शाब्दिक अर्थ है सबऑर्डिनेट यानि अधिनस्थ। इस टर्म को सर्व प्रथम इटेलियन मार्कसिस्ट अंटोनियो ग्रेमस्कि ने प्रचलित किया। सबऑलटर्ज़ समाज का वह समुह है जिसे जाति, धर्म, वर्ण, रंग, लिंग, भाषा, आयु, और क्षेत्र इत्यदि के नाम पर दवाया और शोषित किया जाता हैं। यह समुह निरन्तर अधिपत्य स्थापित (Hegemonic power structure) के खिलाफ संघर्षरत है। साहित्यकारों ने इस (marginalaized group) हाशिये पर पड़े समुह की समस्याओं और शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाई है। हम इक्कीसवीं सदी में कदम रख चुके हैं, सम्पूर्ण विश्व बदल गया है। अगर कुछ नहीं बदला है तो वह है सवऑलर्टनज़ का निरन्तर शोषण और उनकी आवाज़ को दबाना। शीर्षक की दूसरी महत्वपूर्ण टर्म है क्रिटर्ज़। इस शब्द को तो कहानीकार ने बड़ी ही व्यापकता से प्रयोग किया है जिस व्यापक्ता से ये ’क्रिटर्ज’ हमारे आसपास और हम में से ही पाये जाते हैं। ’क्रिटर्ज’ शब्द के उच्चारण मात्र से हमारे दांतों में कुछ काट कर पीस लेने की उतेजना सी होती है। ’क्रिटर्ज’ शब्द का अर्थ है क्रियेचर ;ब्तमंजनतमद्ध यानि प्राणी, एक जीता जागता प्राणी। अप्रैल 1986 में हॉलीबुड के प्रसिद्ध निर्देशक स्टीफन हैरक की फिल्म ’क्रिटर्ज’ आई। ’क्रिटर्ज़’ नन्हें-नन्हें, गोल-मटोल, गेंद की तरह लुढ़कने वाले प्राणी हैं, जो देखते ही देखते अपनी संख्या बेतहाशा बढ़ा लेते हैं और अपने सामने आने वाली हर चीज़ को किट-किट करते हुए चट करते हैं। यह अपना एक तंत्र बना कर समूची पृथ्वी को खाकर उजाड़ में बदलने वाले थे।

मेरा यह पत्र ’सवऑलर्टनज’़ के उस संघर्ष पर आधारित है जो वे ’क्रिटर्ज़’ के विरूध करते हैं। कहानी ’पीली छतरी वाली लड़की’ में बहुत से सवऑलर्टनज़ है, जिनमंे से राहुल भी एक है जो इस कहानी का मुख्य पात्र भी है, जाति आधारित सवऑलर्टन है। राहुल एंथ्रोपोलोजी का एक छात्र है जो अंजली जोशी यानि पीली छतरी वाली लड़की के प्यार में हिन्दी में एडमिशन लेता है। हिन्दी विभाग तो ब्राहमण रूपी ’क्रिटर्ज़’ का अड्डा बना हुआ है। जब विभागाध्यक्ष मिश्रा जी को राहुल की कास्ट का पता चलता है तो डॉ0 राजेन्द्र तिवारी और डॉ0 लोकनाथ त्रिपाठी का कहना है कि वे ऐसे खर-पतवारों को हमेशा से ही उखाड़ फैंकते आये हैं। वे कहते है-’पानी नही मांगेगा एक बूंद, हम ऐसी मार मारेंगे’। यह तो ’क्रिटर्ज’ जैसे किसी मानव भक्षी प्राणी की भाषा है किसी अध्यापक की तो कतई नहीं। मारीशस से आई छात्रा जिसे कुछ गुंडे जो ’क्रिटर्ज़’ ही तो हैं उठा कर ले गये थे और बलात्कार करने के बाद उसको मार कर उसकी लाश तलहटी की पुलिया के नीचे फैंक दी थी। प्रोफैसर वॉटसन अन्तराष्ट्रीय स्तर के बुद्धिजीवि थे। उन्होंने अमेरिका, फ्रांस और जमर्नी से मिलने तमाम एकेडमिक ऑफर्स को ठुकरा कर इसलिए भारत में रहने का निर्णय लिया था क्योंकि जियोलोजी के अध्ययन और शोध के लिहाज से जितनी विविधता इस देश में थी, कहीं नहीं थी। उन्हें भी गुंडे रूपी ’क्रिटर्ज’ विश्वविद्यालय छोड़ने पर मजबूर करते हैं। शैलेन्द्र जार्ज, जिसके पिता जी एक हिन्दू थे, तब तक डोम थे। तीस साल पहले कनवर्ट हुए यानि ईसाई बने। शालिगराम जो कोरी, जाति का था। यह सब सवऑलर्टनज़ ’क्रिटर्ज़’ का शिकार बने। खासकर ब्राहमणों के। राहुल, शैलेन्द्र जार्ज और शालिगराम को हिन्दी विभाग के खास कार्यक्रम में यज्ञ स्थल से दूर रखना तो ’क्रिटर्ज़’ की निर्मम हरकत ही है। विश्वविद्यालय का हिन्दी विभाग तो ’क्रिटर्ज़’ का ;ठतममकपदह ळतवनदकद्ध बना हुआ है। इस विभाग में चपरासी से लेकर हैड ऑफ द डिपार्टमैंट तक सब के सब ब्राहमण हैं, जो चापलूसी, चमचागिरी और जुगाड़ से यहां तक पहुंचे हैं। इन ’क्रिटर्ज़’ ने हिन्दी साहित्य कोे हाईजैक करके ब्राहमण साहित्य में बदल डाला है। यह ’क्रिटर्ज़’ तो हमारी भाषा में बड़ी संख्या में घुस आये हैं, जो कि हमारी मातृ भाषा भी है यानि हिन्दी। हिन्दी विभाग को ’कटपीस सेंटर’ कहना और अंजली जोशी जैसी सुन्दर युवती का यहां कुछ ही दिनों में मादा गौरिल्ला में बदल जाने की आशंका जताना हिन्दी विभाग पर एक तीखा कटाक्ष ही तो है। आंकड़ें बताते हैं कि जाति के आधार पर ब्राहमणों और गैर ब्राहमणों का अनुपात हैरतअंगेज 88 प्रतिशत और 12 प्रतिशत है। हेमंत बरूआ का राहुल को यह कहना, ’राहुल यू हैव गॉट एंटर्ड इन टू द लेबिं्रथ व्हेयर दे विल लिंच यू वन डे’ वी वेर, नथिंग इज टू लेट’ यानि राहुल तुम भूल-भूलैया में फस चुके हो जहां वे तुम्हें एक दिन काट डालेंगे, सावधान हो जाओ, अभी देर नहीं हुई है।

जब तक हिन्दी को इन ’क्रिटर्ज’ के चंगुल से निकाल नहीं लेते तब तक हिन्दी में बुध संभव है न गांधी। इन ’क्रिटर्ज़ ने समय-समय पर बुध को खा डाला, इन्होंने मूसा, पीर-पैगंबर, सूफी-संत सब को चट कर डाला। ये धर्मान्ध, मताग्रह, कटटरपंथी ’क्रिटर्ज’ अमेरिका से गन खरीद कर क्राइस्ट को शूट करते हैं, ’ऋगवेद की अग्नि लेकर वेदांे को जला डालते हैं। इनके भूखे जबड़ो और चमकीलें दातों ने किसी को नहीं छोड़ा।

सापाम तोंवा, सुन्दर, गोल-मटोल, पढ़ने में तेज़ एक मणीपुरी छात्र जिसका भाई दो हफते पहले इंफाल के पास गोलीबारी में मारा गया था, जिसके अंतिम संस्कार में किराये के पैसे के आभाव में नहीं जा सका था, जनजाति आधारित एक सवआलर्टन है। ’क्रिटर्ज़’ का सबसे बड़ा शिकार भी यही अभागा था। अपनी टूटी-फूटी हिन्दी में कहता है, ’मैं अगर उधर जाऊंगा तो मिजे पी0एल0.ए0 मैम्बर बता कर गोली मार देंगा’ हम किधर जायेगा? हम पढ़ाई कैसे करेगा? मिजको बताओ’’? सापाम तो अपने घर और बाहर दोनों ही जगह सवऑलर्टन है। ’क्रिटर्ज़’ उसका सब कुछ लूट ले गये और बिजली के जलते हीटर पर पेशाब करवाया जिसके करंट से वह बेहोश हो गया। वह कहता है, ’’हम रोज सोचते हैं, आज हम स्युसाईड कर लेगा ..............’ लेकिन हम जरूर कर लेगा। ’’ ये ’क्रिटर्ज़’ उसे स्युसाइड करने पर विवश करते हैं। और एक दिन हॉस्टल के पीछे पुराने कूंए में उसकी लाश मिली। इस घटना ने एक गहरा सन्नाटा, चीखता हुआ और बजता हुआ, एक ऐसा सुनसान, जो किसी नक्षत्र के टूट कर गिरने के बाद, किसी बहुत बड़े विस्फोट के बाद ......... किसी बहुत दारूण मृत्यु से होता है, पैदा किए है। ’क्रिटर्ज’ ने दलितों को नीचा दिखाने और उनके सीधेपन के तमाम किस्सों के अन्त में ऐसे रस भरे, क्रूर, असभ्य ताकतवर ठहाकों का सृजन किया है जिसे यहां सुनाना भी कठिन जान पड़ता है। ये जातीय हिंसा के प्रतीक हैं।

मणीपुर, असम, अरूणाचल, मेघालय, त्रिपुरा, नागालैंड से आने वालों छात्रो ंको ’मल्लू’ कहना और दक्षिण से आने वाले लड़कों को ’रंडू’ कहना ऐसे ही कुछ क्रूर, असभ्य ठहाके हैैं। कार्तिकेन, मसूद और अखिलेश रंजन को जेल में ठूंस कर पीटना हमें गुजरात में अल्पसंख्यकों को झूठे आरोप में फंसा कर प्रताडित करने की घटनाओं की याद ही तो याद दिलाते हैं। अंजली जोशी यानि पीली छतरी वाली लड़की - ’’दो बड़ी-बड़ी आश्चर्य से भरी आंखें, हंसी के तट पर पहुंचते-पहुंचते ठिठक कर रूके होंठ ............ गोरेपन की ओर थोड़ा झुका हुआ गेहुंआ रंग, स्टेट मिनीस्टर ए0एल0 जोशी की बेटी कहीं से भी सवऑलर्टन नहीं लगती। लेकिन अंजली जोशी भी लिंग आधारित सवऑलर्टन ही तो हैं। निसन्देह राहुल उससे बेहद प्यार करता है परन्तु क्रिटर्ज़ के विरूध सवऑलर्टनज़ के इस संघर्ष में पिस जाती है। अंजली के पिता ए0एल0 जोशी जो कि एक अनैतिक, भ्रष्ट और अत्याचारी ’क्रिटर्ज’ का ही तो प्रतिनिधि हैं। जिसकी क्रूर व अनैतिक सत्ता ने राहुल जैसे करोड़ों लोगो का शोषण किया है। राहुल का पराभूत जातियों की तरफ से प्रत्याघात करना और दबी कुचली जातियों की समुची प्रतिहिंसा के साथ अंजली को माध्यम बनाकर बदला लेना क्या है? एक लिंग आधारित शोषण ही तो है। राहुल का यह कहना - ’क्योंकि मैं राहुल नहीं हूं। मैं एक तेंदुआ हूं ........ अ पैंथर .............’ ये शब्द तो किसी प्रेमी के कम एक घायल और शोषित के अधिक लगते हैं जिसकी शिकार (victim) वह लड़की होती है जिसे वह बेहद प्यार करता है। यद्यपि राहुल और अंजली का प्यार एक सुखद अहसास है।

आज के परिवेश में ’क्रिटर्ज़’ ने अपना तन्त्र हर जगह फैला रखा है। ’क्रिटर्ज’ आज भाषा में, राजनीति में, मंदिरों, मस्जिदों, संसद, प्रशासन, पूजा-पाठ, जन्म-मरण, विश्वविद्यालय, टीवी चैनलों में यहां तक कि विचारों में भी हैं। क्रिमिनल्ज, कटरपंथी, स्टोरिये, रूढ़िवादी, मानवद्रोही, भोगवादी, व्यविचारी, उग्र राष्ट्रवादी, साम्प्रदायिक, पृथ्कतावादी, भ्रष्टाचारी ’क्रिटर्ज’ ही तो हैं। कटरपंथियों और उग्र राष्ट्रवादियों ने तो भारतीय होने का जैसा ठेका ही ले रखा हो इन्होंने भारतीयता को हाईजैक किया है। यह सोच की मुझसे बड़ा राष्ट्रभक्त कोई नहीं, मुझसे बड़ा हिन्दु कोई नहीं, मुझसे बड़ा मुस्लामान कोई नहीं, मुझसे बड़ा भ्रस्ट्राचार से लड़ने वाला कोई नहीं। यह भाषा भारतीयता को हाईजैक करने वाले क्रिटर्ज़ की नहीं तो उन जैसे प्राणियों की ही तो है। इन्होंने राष्ट्रवाद को सामप्रदायिक घृणा में बदलकर रख दिया है। मुगलों की बनाई बाबरी मस्जिद को गिराने में तथाकथित राष्ट्रवादियों ने कोई कसर न छोड़ी लेकिन अंग्रेजों के बनाए राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट, कनॉट पलेस से इन्हें कोई परहैज नहीं।

धर्म भावात्मक दृष्टि से व्यवस्था के पक्षधर होते हैं। राष्ट्रीयता का मूल मंत्र उग्र राष्ट्रवाद य धार्मिक कट्टरता नहीं बल्कि समता और समरसता है। ऐसा नहीं हे कि हर संघर्ष में सवऑलर्टनज हारे हों, इन्हें आंशिक जीत भी मिली है। परन्तु सबऑलर्टनज़ और ’क्रिटर्ज़’ का यह संघर्ष चलता रहेगा, तब तक ........ जब तक ये ’क्रिटर्ज़’ रूपी कटरपंथी, क्रिमिनल्ज, पृथ्कतावादी, सामप्रदायिक व्यक्ति हमारी सभ्यता, भाषा, राजनीति, मंदिर, मस्जिद, संसद, प्रशासन, गाओं पूजा-पाठ किताओं और विचारों से लुप्त नहीं हो जाते। तभी कवि रविन्द्र नाथ टैगोर द्वारा भारत को दी गयी संज्ञा ’’महामानव समुद’’ सच साबित होगी।

राकेश राणा
प्रवक्ता अंग्रेजी विभाग
रा0मा0वि0 कुल्लू

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