Saturday, July 15, 2017

बिड़ला वाले बिष्टजी और गेठिया के भूत


बिड़ला वाले बिष्टजी और गेठिया के भूत

बिष्ट गुरु जी नैनीताल के मेरे मशहूर रेजीडेंशियल स्कूल में हॉबी के पीरियड्स के दौरान बच्चों को अपनी वर्कशॉप में मैटलवर्क सिखाया करते थे. क्लासरूम में प्रायः किसी अध्यापक के छुट्टी में गए होने पर उनकी अरेंजमेंट में ड्यूटी लगा करती. अरेंजमेंट की इन कक्षाओं में वे देश के विभिन्न हिस्से से आए विद्यार्थियों के साथ फसक अर्थात गप मारने की अपनी नैसर्गिक प्रतिभा का रियाज़ किया करते थे.

अक्सर पिछले इतवार को उनके शिकार पर जाने और दो या तीन शेरों को मारने के उनके किस्सों की ख़ूबी यह होती थी कि कथ्य में समान होने के बावजूद वे हर बार नए लगते थे. अमूमन नैनीताल के समीप स्थित किलबरी, आलूखेत, पंगूट, रातीघाट और भवाली के जंगलों में इन चमत्कारिक कारनामों को अंजाम दिया जाता था. कभी-कभार उनकी फसक का दायरा नागालैंड, मणिपुर और बंगलादेश-वियतनाम और मलेशिया तक पहुंचा करता. इन किस्सों की दूसरी ख़ूबी यह होती थी कि इन शिकार-यात्राओं में उनके साथ एक पार्टनर ज़रूर होता था. गुरुजी को दुनिया के पचड़ों से ज्यादा लेना-देना नहीं होता था सो यह पार्टनर शेरों का शिकार हो जाने के बाद खालें अपने साथ ले जाया करता था - हमेशा.

उस दिन उनकी एम.ओ.डी. अर्थात मास्टर ऑफ़ द डे वाली लम्बी ड्यूटी लग गयी थी. इसके लिए एम.ओ.डी. को सुबह के सात बजे से साढ़े दस बजे रात तक विशाल क्षेत्रफल में फैले स्कूल के चप्पे-चप्पे पर उपस्थित रहकर सुनिश्चित करना होता था कि जूनियर और सीनियर सेक्शनों के सभी लड़के नियत समय पर सभी कक्षाओं में, दिन में पांच दफ़ा डाइनिंग हॉल में, असेम्बली हॉल में, खेल के मैदान और हॉस्टलों में मौजूद हों और अच्छे बच्चों द्वारा किये जाने वाले सभी कार्य करते हुए स्कूल का डिसिप्लिन खराब न कर रहे हों. इस काम के लिए हर बच्चे की अटेंडेंस करीब ढाई हज़ार बार ली जानी होती थी.

तो उस दिन उनकी एम.ओ.डी. वाली ड्यूटी थी. गुरुजी का ससुराल नैनीताल-भवाली के नज़दीक गेठिया नामक स्थान पर था जहाँ उन दिनों उनका परिवार छुट्टी मनाने गया था. इन दिनों वे रोडवेज़ की बस पकड़ कर गेठिया आना-जाना कर रहे थे. उस रात जब साढ़े दस बजे वे ड्यूटी निबटा कर फारिग हुए तो उन्हें बहुत थकान का अनुभव हुआ. एम. ओ. डी. के रात के ठहरने की व्यवस्था स्कूल कैम्पस में ही होती थी ताकि अगले दिन की सामान्य ड्यूटी के लिए हाज़िर होने में उन्हें ज़्यादा दिक्कत न आए.

पर गुरुजी को तो हर हाल में गेठिया जाना था क्योंकि उन्हें बच्चों की याद आ रही थी. सो वो स्कूल के फील्ड नम्बर एक से गेठिया जाने वाले जंगली शॉर्टकट से ससुराल की राह लग लिए. घने वनप्रांतर से गुज़रने वाले इस रास्ते पर वह समय शेर, भालू जैसे जंगली जानवरों के भ्रमण का था लेकिन डर के मारे उनके सामने कोई भी नहीं आया. आता भी कैसे? जिम कॉर्बेट के पितामह जो जंगल से गुज़र रहे ठैरे! 

घन्टे-सवा घन्टे हाँफते-थकते फूं-फ्वां करते उन्हें अंततः गेठिया के पश्चिमी ढाल पर मौजूद अपने ससुराल की बत्तियां जली हुई नज़र आ गईं . "बस दो मोड़ और यार!" - उन्होंने अपने आप से कहा और कदमों में तेज़ी लाने का प्रयास किया. अचानक क्या देखते हैं कि दूर दिख रहे पहले मोड़ के कोने पर चार भूत खड़े थे. शेर-भालू का तो खाली हाथ भी शिकार किया जा सकता था लेकिन भूतों का क्या? डर के मारे गुरुजी की हवा संट हो गयी. एक तरफ थकान के मारे उनका बदन "बिस्तर-बिस्तर नींद-नींद" कर रहा था और उधर सामने ऐसी बला! क्या करते!

काफी दे असमंजस में खड़े रहे भयाक्रांत और थकान से चूर बिष्ट गुरुजी को जब अपने बच्चों की बेतरह याद आने लगी तो वे "देखी जाएगी साले को!" कह कर आगे बढ़ने लगे. मोड़ के आते-आते उन्होंने अपनी आंखें बंद कर लीं कि अब जो करना है भूतों ने ही करना है. लेकिन पहाड़ी रास्ते पर बहुत देर तक आँख बंद नहीं की जा सकती सो जैसे ही उन्होंने मजबूरन आँखें खोलीं तो देखा चारों भूत ठीक सामने खड़े थे.


भूतों ने गुरुजी को देखा तो बोले - "अरे ये तो बिड़ला वाले बिष्ट जी हैं. इनको जाने दो!" 

6 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

हा हा।

Unknown said...

Nice post.
I am from Birla, too. Which batch were you from?

Unknown said...

Nice post 😁😁😁😁😋😋. Heart touching story.

Unknown said...

Nice post 😁😁😁😁😋😋. Heart touching story.

Unknown said...

Really nice post. 😁😁😁😁😁

अशोक कुमार भट्ट अंशु' said...

बहुत शानदार हो