Wednesday, February 22, 2012

मेरे हमनफस मेरे हमनवा मुझे दोस्त बन के दगा न दे


आवाज़ बेगम अख्तर की, गज़ल की शकील बदायूँनी साहब की-



मेरे हमनफस, मेरे हमनवा, मुझे दोस्त बनके दगा न दे,
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क से जां-बलब, मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे

मेरे दाग-ए-दिल से है रौशनी, उसी रौशनी से है ज़िंदगी,
मुझे डर है अये मेरे चारागर, ये चराग तू ही बुझा न दे

मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर, तेरा क्या भरोसा है चारागर,
ये तेरी नवाज़िश-ए-मुख्तसर, मेरा दर्द और बढ़ा न दे

मेरा अज्म इतना बलंद है के पराए शोलों का डर नहीं,
मुझे खौफ आतिश-ए-गुल से है, ये कहीं चमन को जला न दे

वो उठे हैं लेके होम-ओ-सुबू, अरे ओ 'शकील' कहां है तू,
तेरा जाम लेने को बज़्म मे कोई और हाथ बढ़ा न दे

13 comments:

vijay kumar sappatti said...

क्या बात है , क्या गज़ल और क्या आवाज़.. जिंदगी जैसे रुक जाती है .

विजय

Syed Ali Hamid said...

The ghazal triumvirate, according to me, consists of Begum Akhtar, Mehndi Hassan and Jagjit Singh.

'Nawazish-e-mukhtasar' se hi shairi paida hoti hai.

Pratibha Katiyar said...

मुझे छोड़ दे मेरे हाल पर, तेरा क्या भरोसा है चारागर,ये तेरी नवाज़िश-ए-मुख्तसर, मेरा दर्द और बढ़ा न दे...

Arvind Mishra said...

बेगम का जश्न है यहाँ तो ....फेसबुक पर शेयर किया है

संतोष त्रिवेदी said...

बेगम साहिबा को सुनना,खो जाना है इस दुनिया से !

संतोष त्रिवेदी said...

बेगम साहिबा को सुनना ,खो जाना है इस दुनिया में !

pawan said...

भाई साहब आप कृपा करके हिंदी अनुवाद भी दे दें तो मजे आ जाएँ

pawan said...

भाई साहब आप कृपा करके हिंदी अनुवाद भी दे दें तो मजे आ जाएँ

pawan said...

भाई साहब आप कृपा करके कठिन हिज्जों का हिंदी अनुवाद भी दें
धन्यवाद

pawan said...

भाई साहब आप कृपा करके कठिन हिज्जों का हिंदी अनुवाद भी दें
धन्यवाद

Unknown said...

हिन्दी अर्थ (भावार्थ )

मैं तो तुम्हें अमृत जीवन का ही आशीष दे सकता हूं। तुम तो आत्मघात का विचार कर रहे हो, मैं तुम्हें अमृत की कीमिया ही दे सकता हूं मैं तुम्हें ऐसी जीवन का द्वार दिखा सकता हूं, जो शाश्वत है। और ऐसे प्रेम का द्वार दिखा सकता हूं, जो पराजय नहीं जानता। लेकिन तुम्हें अपनी व्यर्थ की धारणाओं से, जो तुमने मूर्च्छा में पकड़ रखी हैं, मुक्त हो जाना होगा।
पहली तो बात अभी समझो कि तुमने प्रेम किया नहीं। प्रेम करना साधारण बात नहीं है। प्रेम वही कर सकता है जो पहले अहंकार को गिरा दे। जहां अहंकार है वहां कैसा प्रेम! अहंकार के साथ प्रेम असंभव है। दोनों का सह-अस्तित्व न कभी हुआ है, न हो सकता है। प्रेम करना है? पहले अहंकार को गिराओ। और अहंकार को गिराने की तलवार ध्यान है।

काट डालो अहंकार का सिर ध्यान से। और फिर तुम्हारे जीवन में प्रेम के झरने फूटेंगे। और वे झरने पराजित नहीं होते हैं। और वे झरने तुम्हारे भीतर ऐसे तलाश न भरेंगे, निराश न भरेंगे। वे झरने तुम्हारे भीतर ऐसा उल्लास भर देंगे, जिसकी कोई सीमा नहीं है। वे तुम्हारे जीवन को उत्सव में रूपांतरित कर देंगे।
अगर आत्मघात तक की तैयारी है, तो कम से कम संन्यास की तो हिम्मत करो। अरे, जब मरने को ही तैयार हो, तो इतना तो करो कि संन्यास में उतर जाओ! जो मरने को तैयार है, अब उसे क्या डर? मरता क्या न करता! इतना तो कर लो! संन्यासी हो जाओ, अविनाश! और मैं तुम्हीं सच में ही अविनाश होने का मार्ग दे सकता हूं।
मगर इन टुच्ची बातों में न पड़ो कि प्रेम में पराजित हो गये, आत्मघात का विचार उठ रहा है, मारना चाहते हो, जीने की इच्छा न रही! अभी जाना क्या है तुमने? अभी जीवन को पहचाना कहां? अभी प्रेम से परिचय नहीं। इस सब के लिए कुछ जीवन की कला सीखनी होती है। जीवन को कुछ निखार देना होता है। जीवन हमें मिलता है ऐसे जैसे अनगढ़ पत्थर। फिर उस पर छेनी उठा कर बहुत-से व्यर्थ हिस्से पत्थर के काट डालने पड़ते हैं। तब उसमें कभी बुद्धत्व की मूर्ति प्रकट होती है।

Unknown said...

Wow mam,बहुत शुक्रिया आपका

Unknown said...

Wow mam,बहुत शुक्रिया आपका