Wednesday, February 8, 2012

एक लड़की कहती है: "आज कुछ कमी है आसमान में"


तहसनहस मीनार की मानिन्द टुकड़े हो चुना साइप्रस का पेड़

"पेड़ की उदासी है साइप्रस
खुद पेड़ नहीं, और उसकी कोई परछाईं नहीं
क्योंकि वह आप पेड़ की परछाईं है."

-बस्साम हज्जार

तहसनहस मीनार की मानिन्द टुकड़े हो चुना साइप्रस का पेड़, वह
सोया हुआ है सड़क पर, हरी और गहरी अपनी वीतरागी परछाइयों में,
ठीक जैसा वह है. किसी को नुकसान नहीं पहुंचा. रफ़्तार पकड़तीं कारें गुज़रती हैं,
उसकी शाखाओं के ऊपर से, उड़ती हुई धूल
ठहरती उनके शीशों में ... टुकड़े हो चुका साइप्रस
लेकिन जिस फ़ाख़्ते ने इसे चुना था, वह अपने उघड़ गए घोंसले को
किसी नज़दीकी निवासस्थल तक लेकर नहीं जाता. ऊपर दो प्रवासी पक्षी
इसमें घोंसला बनाने की जगह की पर्याप्तता के ऊपर चक्कर लगाते
एक दूसरे को देखते हैं. अपनी पड़ोसन से पूछती है एक स्त्री:
"पता नहीं, पर क्या तुमने आते देखा तूफ़ान को?"
"न्ना! किसी बुलडोज़र को भी नहीं ... तब भी
टुकड़े हो चुका साइप्रस." और मलबे के पास से गुज़रता कोई कहता है:
"शायद यह उकता गया था अपनी अनदेखी से, या समय की वजह से
थक गया होगा, क्योंकि जिराफ़ जितनी है इसकी लम्बाई
और बेमानी है यह किसी झाड़ू की तरह, और प्रेमियों को छांह भी नहीं देता."
एक नन्हा लड़का कहता है: "मैं बग़ैर ग़लती किए इसका चित्र खींच लिया करता था, बहुत आसान था
इसकी लकीरों की नकल करना." और एक लड़की कहती है: "आज कुछ कमी है आसमान में
क्योंकि टुकड़े हो चुका साइप्रस."
और एक युवक कहता है: नहीं, पूरा है आज आसमान
क्योंकि टुकड़े हो चुका साइप्रस" और मैं ख़ुद से कहता हूं:
"यह बात न गोपनीय है न स्पष्ट, टुकड़े हो चुका साइप्रस
सिर्फ़ इतना ही है: टुकड़े हो चुका साइप्रस"

(बस्साम हज्जार १३ अगस्त १९५५ को लेबनान में जन्मे थे. वे एक ख्यात कवि, उपन्यासकार, आलोचक, प्रकाशक व पत्रकार हैं)

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