उपन्यास में पहले एक कविता रहती थी
विनोद कुमार शुक्ल
अनगिन से निकलकर एक तारा था.
एक तारा अनगिन से बाहर कैसे निकला था?
अनगिन से अलग होकर
अकेला एक
पहला था कुछ देर.
हवा का झोंका जो आया था
वह भी था अनगिन हवा के झोंकों का
पहला झोंका कुछ देर.
अनगिन से निकलकर एक लहर भी
पहली, बस कुछ पल.
अनगिन का अकेला
अनगिन अकेले अनगिन.
अनगिन से अकेली एक-
संगिनी जीवन भर.
उपन्यास में पहले एक कविता रहती थी
विनोद कुमार शुक्ल
अनगिन से निकलकर एक तारा था.
एक तारा अनगिन से बाहर कैसे निकला था?
अनगिन से अलग होकर
अकेला एक
पहला था कुछ देर.
हवा का झोंका जो आया था
वह भी था अनगिन हवा के झोंकों का
पहला झोंका कुछ देर.
अनगिन से निकलकर एक लहर भी
पहली, बस कुछ पल.
अनगिन का अकेला
अनगिन अकेले अनगिन.
अनगिन से अकेली एक-
संगिनी जीवन भर.
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