शिमला में रहने वाले तुलसी रमण पिछले कोई पच्चीस सालों से ‘विपाशा’ पत्रिका का सम्पादन सम्हाले हुए हैं. मैं उनसे एक बार मिला हूँ और बतौर एक संवेदनशील सहृदय इंसान के वे मुझे अक्सर याद आते हैं. उन्होंने कई कविताओं के अनुवाद भी किए हैं. आज से उन की कुछेक कविताओं से रू-ब-रू होइए. आज उनके तेवर को समझने के लिए सिर्फ एक बेहद छोटी कविता -
प्यार
गुर्राता, भौंकता
वह झपटा मेरी ओर
मैंने बजाई चुटकी
और पुचकारा
उसने दुम हिलाई
और कूँ-कूँ कर कहा-
कौन नहीं चाहता आख़िर प्यार.
1 comment:
तुलसी रमण ने आखिरी पंक्ति में दुम हिलाने के अति प्रचलित चाटुकारिता के अर्थ को चाम्तकारिक ढंग से बदल दिया है.
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