Thursday, September 27, 2012

ग़ैरों की दोस्ती पर क्यूँ ऐतबार कीजे, ये दुश्मनी करेंगे बेगाने आदमी हैं.



मल्लिका पुखराज की क़ाबिल पुत्री ताहिरा सैय्यद सुना रही हैं दाग़ देहलवी की एक ग़ज़ल-




ज़ाहिद न कह बुरी के ये मस्ताने आदमी हैं
तुझको लिपट पड़ेंगे दीवाने आदमी हैं.

ग़ैरों की दोस्ती पर क्यूँ ऐतबार कीजे
ये दुश्मनी करेंगे बेगाने आदमी हैं.

तुम ने हमारे दिल में घर कर लिया तो क्या है
आबाद करते. आख़िर वीराने आदमी हैं

क्या चोर हैं जो हम को दरबाँ तुम्हारा टोके
कह दो कि ये तो जाने-पहचाने आदमी हैं

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