खान
साहेब मेहदी हसन की ग़ज़ल लगाने का मन हुआ -
चिराग-ऐ-तूर जलाओ, बड़ा अन्धेरा है
ज़रा
नकाब उठाओ, बड़ा अन्धेरा है
मुझे
खुद अपनी निगाहों पे ऐतमाद नहीं
मेरे
करीब न आओ , बड़ा अन्धेरा है
वो
जिनके होते हैं खुर्शीद आस्तीनों में
उन्हें
कहीं से बुलाओ, बड़ा अन्धेरा है
1 comment:
सुबह-सुबह इसे सुनना अच्छा लगा।
Post a Comment