Wednesday, January 16, 2013

मुझे दो ऐसी नींद



नींद
 
-आलोक धन्वा

रात के आवारा
मेरी आत्मा के पास भी रुको
मुझे दो ऐसी नींद
जिस पर एक तिनके का दबाव भी न हो
 
ऐसी नींद
जैसे चाँद में पानी की घास

7 comments:

Alpana Verma said...

वाह!
'एक तिनके का दवाब न हो...पानी की घास !.गज़ब लिखा है

neelotpal said...

चाँद में पानी की घास....
आह, अदभुत बिम्ब, अनूठा वाक्य विन्यास.
सुंदर, बेहद सुन्दर

neelotpal said...

चाँद में पानी की घास....
आह, अदभुत बिम्ब, अनूठा वाक्य विन्यास.
सुंदर, बेहद सुन्दर

neelotpal said...

चाँद में पानी की घास....
आह, अदभुत बिम्ब, अनूठा वाक्य विन्यास.
सुंदर, बेहद सुन्दर

neelotpal said...

चाँद में पानी की घास....
आह, अदभुत बिम्ब, अनूठा वाक्य विन्यास.
सुंदर, बेहद सुन्दर

neelotpal said...

चाँद में पानी की घास....
आह, अदभुत बिम्ब, अनूठा वाक्य विन्यास.
सुंदर, बेहद सुन्दर

neelotpal said...

चाँद में पानी की घास....
आह, अदभुत बिम्ब, अनूठा वाक्य विन्यास.
सुंदर, बेहद सुन्दर