Saturday, July 26, 2008
इब्ने सफ़ी बी.ए. के बहाने जासूसी दुनिया की याद
जनाब असरार अहमद को ज़माना इब्ने सफ़ी बी. ए. के नाम से जानता है. 'जासूसी दुनिया' और 'इमरान सीरीज़' के नाम से क़रीब ढाई सौ किताबें लिख चुके इब्ने सफ़ी का नाम भारत पाकिस्तान के बाहर यूरोप तक ऐसा फैला कि जासूसी उपन्यासों की सरताज मानी जाने वाली अगाथा क्रिस्टी ने एक बार कहा था: "मैं उर्दू नहीं जानती लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप के जासूसी उपन्यासों की मुझे जानकारी है. वहां सिर्फ़ एक ही ओरिजिनल लेखक है - इब्ने सफ़ी."
इलाहाबाद ज़िले में सफ़ीउल्लाह और नज़ीरन बीबी के घर १९२८ में आज ही के दिन (२६ जुलाई) को जन्मे इब्ने सफ़ी ने में आगरा विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट की डिग्री हासिल की और अपने नाम के आगे उसे लगाना भी शुरू कर दिया. विभाजन के बाद वे पाकिस्तान चले गए. वहीं एक सेकेन्डरी स्कूल में मास्टरी करते हुए १९५० के दशक के प्रारंभिक सालों में उन्होंने जासूसी उपन्यास लिखना शुरू किया. बाद में उन्होंने इसरार पब्लिकेशन नाम से कराची में अपना ख़ुद का कारोबार शुरू कर दिया.
१९६० से १९६३ के बीच वे बहुत अस्वस्थ रहे लेकिन बीमारी से लौटते ही उन्होंने इमरान सीरीज़ का बेस्टसैलर 'डेढ़ मतवाले' लिखा.
सफ़ी के उपन्यासों में एडवेन्चर, सस्पेन्स, हिंसा, रोमान्स और कॉमेडी का शानदार संयोजन हुआ करता था और पाठकों ने उन्हें बहुत पसन्द किया. उन की लोकप्रियता का आलम यह था कि भारत और पाकिस्तान की तमाम भाषाओं में अनूदित हो कर हर महीने छपने वाले उनके उपन्यास ब्लैक में तक बिका करते थे.
सफ़ी के उपन्यासों के पात्रों के साथ पाठकों को दुनिया भर के देशों में घूमने का मौका मिलता था. सफ़ी कभी भी भारत-पाकिस्तान से बाहर नहीं गए पर दुनिया के अन्य देशों की विविध जगहों का उनका वर्णन आश्चर्यजनक रूप से सही है
जासूसी दुनिया के प्लेटिनम अंक की भूमिका में इब्ने सफ़ी ने पाठकों को बताया कि उनके ज़्यादातर उपन्यास पूरी तरह ओरिजिनल थे अलबत्ता आठ या दस की कथावस्तु यूरोप के विख्यात जासूसी लेखकों के कार्यों पर आधारित थी. इब्ने सफ़ी ने बाक़ायदा इन उपन्यासों के नाम भी गिनाए.
भारत-पाकिस्तान में पत्रकारों की एक पूरी पीढ़ी तैयार करने का श्रेय इब्ने सफ़ी को जाता है. उनके द्वारा प्रस्तुत विवरण इस क़दर प्रामाणिक होते थे कि पाकिस्तान की खु़फ़िया एजेन्सी आई एस आई ने अपने प्रशिक्षार्थियों की ट्रेनिंग के लिए आधिकारिक तौर पर उनकी सेवाएं लीं.
इब्ने सफ़ी एक अच्छे शायर भी थे और असरार नारवी के नाम से लिखा करते थे. उनकी ग़ज़लों को साहित्यालोचकों द्वारा पसन्द भी किया गया. ग़ज़लों के अलावा उन्होंने उर्दू कविता की अन्य विधाओं जैसे हम्द, नात, मर्सिया इत्यादि में भी रचनाएं कीं. 'मता-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र' नाम से उन्होंने अपना संग्रह भी तैयार किया था जो अप्रकाशित ही रहा.
यह अलग बात है कि उनकी बेतहाशा लोकप्रिय जासूसी उपन्यासकार की छवि के आगे उनका कवि-व्यक्तित्व हमेशा छोटा ही रहने को विवश रहा.
दिसम्बर १९७९ के आसपास उनका स्वास्थ्य दुबारा बिगड़ा लेकिन उन्होंने लिखना बन्द नहीं किया. अपने बावनवें जन्मदिन यानी २६ जुलाई १९८० को ही जब पैंक्रियाटिक कैंसर से उनकी असमय मृत्यु हुई, वे इमरान सीरीज़ की एक किताब 'आख़िरी आदमी' पर काम कर रहे थे. इस किताब की पांडुलिपि उनके सिरहाने धरी हुई थी.
२००७ में इब्ने सफ़ी के कार्य पर दिल्ली स्थित साहित्य अकादमी द्वारा एक सेमिनार का आयोजन भी किया गया. इस सेमिनार में उनके कार्य को उचित सम्मान मिला और भागीदारों का एक स्वर में कहना था कि इब्ने सफ़ी की किताबें उर्दू साहित्य के बेशकीमती नगीने हैं.
*इब्ने सफ़ी पर और अधिक जानकारी के लिए इस वेबसाइट पर जाया जा सकता है.
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33 comments:
इब्ने सफी बी ए के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा। मैं ने उन के उपन्यासों के हिन्दी अनुवाद अपनी किशोरावस्था में बहुत पढ़े हैं।
sfi sahab se parichay karane ka shukriya...inke awdaan ke bare men jaankar inmen dilchaspi badhi...dekhun mujhe kya milta hai is hairatzahan men padhne ko...
रोचकतापूर्ण सुंदर जानकारी इब्ने सफी जैसे व्यक्तित्व के बारे में। बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।
बहुत सुन्दर लिखा है। एक महान व्यक्तित्व से परिचय करा दिया आपने। आभार।
सुंदर जानकारी इब्ने सफी जैसे व्यक्तित्व के बारे में.सुन्दर लिखा है....आभार
इब्ने सफी यूं मेरे विश्वविद्यालयीन बुजुर्ग हुए, मैंने भी आगरा विश्वविद्यालय से ही पढ़ाई की। सफी साहब के सारे उपन्यास कहां से मिल पायेंगेजी।
अशोक भाई !
आपका आभारी हूँ कि आपने इब्नेसफी की याद दिला दी, उन दिनों शायद ही कोई ऐसा नावल बचा हो जो मैंने पढ़ा न हो ! और शायद इब्ने सफी की किताबों ने ही मुझे पढने की आदत डलवाई ! भूले विसरों को याद दिलाने का कार्य करते रहिये ! शुभकामनायें !
आपके द्वारा इब्ने सफी के बारे में दी जानकारी पढ़कर अच्छा लगा। सिर्फ इनका नाम ही सुना था अब पता भी चल गया।उत्तम....आभार
अरे सर, आपने तो मेरी धुंधली यादों को एक बार फिर से ताजा कर दिया...जब मैं जवान हो रहा था तो हिंदी पॉकेट बुक्स की दुनिया के सरताज थे-वेद प्रकाश शर्मा और उनका कुनबा...(ये बाबरी ढांचा के गिरने के आसपास की बात होगी)हलांकि सुरेन्द्रमोहन पाठक उनको कड़ी चुनैती दे रहे थे। लेकिन मेरे घर में भी, शायद मेरे पिताजी की खरीदी हुई का इब्ने शफी, बीए की अनगिनत किताबे थीं...जो उस वक्त पुरानी हो रही थी। बाद में मैं ने कई जगह मुंशी प्रेमचंद के नामके आगे भी बीए देखा था...और कई बुजुर्गों से मासूम सवाल करता था कि इसका माजरा क्या है? इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि साहित्यप्रेमियों का एक पूरा तबका इन्ही उपन्यासों और उपन्यासकारों की देन है। जब मैं ने दहेज में रिवाल्वर पढ़ा था तो मेरे अंदर क्रांतिकारी कीड़ा कुलबुलाने लगा था...और मैं इस बात का पक्का हिमायती बन गया था कि दहेज में रिवाल्वर हर लड़की को मिलना ही चाहिए। खैर, एकता कपूर के धारावाहिकों ने शहरों में तो इन उपन्यासों की एक तरह की हत्या कर डाली है क्योंकि ये उन्ही उपन्यासों का टीपी वर्जन है। अब पता नहीं आजकल किस तरह के जासूसी उपन्यास छपते हैं...बहुत दिन से पढ़ने का मौका ही नहीं मिलता। खैर, आपने शफी साहब के बारे में बताकर वाकई बड़ा काम किया है।
यह तो बेशकीमती पोस्ट है, कबाड़खाने के गार्ब में लिपटी है।
यह तो मेरा सौभाग्य है कि कबाड़खाना खंगालने आया! धन्यवाद अशोक जी।
उस जमाने में इब्ने सफी को बहुत चाटा है - कभी-कभी एक दिन में तीन उपन्यास! इब्नेसफी समग्र प्रकाशित हो तो खरीदने वाले विवेकानन्द जी का समग्र खरीदने वालों से ज्यादा ही निकलेंगे!:)
'TALKING FILMS' is an oxford university press publication in which Javed Akhtar fondly remembers Safi's novels and gives him full credit for inspiring him to write commercially hit screen plays. I was a great fan of this kind of writing ,but sadly never came across any of Safi's books. Do u have one?
वाह अशोक जी;
हमने भी अपने बचपन में इब्ने शफी के कर्नल विनोद, कैप्टेन हमीद और महामूर्ख कासिम सीरिज कि ढेर सारे उपन्यास पढ़े है.
आज सारी याद ताजा हो गयी.
सही है.
बहुत खूब,मैने इब्ने सफ़ी साहब की बहुत उपन्यास पढ़े हैं,कर्नल विनोद,कैप्टन हमीद, और एक मज़ाहिया चरित्र था कासिम का.....एक और सिरीज़ हुआ करती थी....राजेश का तो गज़ब का शरारती करेक्टर होता था....और जब वो पवन बन जाता था तो उतना ही धीर गम्भीर...किसी को पता नहीं था कि राजेश ही पवन है....नक़हत पॉकेट बुक्स भी तभी का याद है मुझे.....अच्छी पोस्ट...इसी बहाने पिछली बहुत सारी बाते याद दिलाने के लिये शुक्रिया
अशोक भाई, मैं अपने ब्लोग पर फ़रीदा ख़ानम की ग़ज़ल पोस्ट करने की कोशिश कर रहा हूँ पर लगता है थोड़ा technically challanged हो गया हूँ। आडियो अपलोड करना नहीं आ रहा मुझे। आपकी मदद की दरकार हैगी। यदि आप मुझे एक मेल getmahendra@yahoo.com पर डाल दें तो बड़ी कृपा होगी। हल्द्वानी आकर धन्यवाद दे जाऊँगा जी। :-)
शुभम।
अब इस ब्लॉग का नाम रख देना चाहिए- 'अनमोल खज़ाना'. अच्छी बात की.. ये तो पिताजी के ज़माने की बात है भाई.
भाई पांडे जी , नाजिम की वो कविता के जब मेरा जनाजा निकल रहा हो तो रोक देन क्योनिकी अलगनी से कपड़े सूख रहे होने, और अद्भुत बात के मेरा जनाजा सधी से निकालने में अटक जायेगा, ऐसा महान भाव!
दरअसल अपने ही लोगों के लिए गाली-गलौज थी
This post is real gem. ये किताबे मिल जाए तो मैं तो बस....
naIm do dina ke ke lie कंप्यूटर से दूर क्या रहा ,यहां तो 'उत्तमोत्तम कबाड़' का ढ़ेर लग ग्या है! वाकई दिल खुश हो गया!!!
WHEN WILL OUR R.A.W. START SEEKING THE SERVICES OF VED PRAKASH SHARMA AND CO. ,I WONDER ; SPECIALLY AFTER THE MILLION DOLLAR EXPOSE' REGARDING UTTERLY NOTORIOUS I.S.I. SEEKING SAFI'S SALAHIYAT.
WHEN WILL OUR R.A.W. START SEEKING THE SERVICES OF VED PRAKASH SHARMA AND CO. ,I WONDER ; SPECIALLY AFTER THE MILLION DOLLAR EXPOSE' REGARDING UTTERLY NOTORIOUS I.S.I. SEEKING SAFI'S SALAHIYAT.
बहुत दिलचस्प और ज्ञानवर्धक पोस्ट. धन्यवाद.
जय हो पंडित जी ।
अभी कल ही मैं याद कर रहा था ए. हमीद के रुमानियत से भरपूर उपन्यासों को जिन्हें अपनी मां की लाइब्रेरी से चुरा कर चुपके चुपके पढ़ा करता था। रावलपिंडी, लाहौर और मरी की पहाड़ियां अक्सर उनके लैंडस्केप का हिस्सा होती थीं। और लड़कियों के नाम तो ग़ज़ब के। ऱख्शंदा -फर्ख़ंदा जैसे। ये नाम इधर अब फैशन में आए हैं , हम तो तीस साल पहले से सुन चुके हैं।
आपको याद हैं ए . हमीद?
बहुत अच्छा, दिलीप जी। इब्ने सफी को मैंने बहुत पढ़ा। वे प्रतिभाशाली लेखक थे। उनके लिए भारत-पाकिस्तान अलग-अलग नहीं थे। लेकिन यह बात पाकिस्तानी पाठकों को कैसे हजम होती होगी कि विनोद और राजेश को उन्होंने बहुत ऊंचा स्थान दिया। हमीद और कासिम को मसखरा बना दिया। कहीं इस पर बाजार का दबाव तो नहीं था 9 क्योंकि शायद भारत में उनके पाठकों की संख्या ज्यादा थी।
बहुत अच्छा, दिलीप जी। इब्ने सफी को मैंने बहुत पढ़ा। वे प्रतिभाशाली लेखक थे। उनके लिए भारत-पाकिस्तान अलग-अलग नहीं थे। लेकिन यह बात पाकिस्तानी पाठकों को कैसे हजम होती होगी कि विनोद और राजेश को उन्होंने बहुत ऊंचा स्थान दिया। हमीद और कासिम को मसखरा बना दिया। कहीं इस पर बाजार का दबाव तो नहीं था 9 क्योंकि शायद भारत में उनके पाठकों की संख्या ज्यादा थी।
राजकिशोर जी, कर्नल विनोद नाम सिर्फ हिन्दुस्तान में चलता था, पाकिस्तान में प्रकाशित उपन्यासों में कर्नल विनोद का नाम इमरान हो जाया करता था.
बाजार का दबाब तो रहता ही है.
बाजार का दबाब और ज्यादा पड़े, इतना पड़े कि दोनों देश एक हो जायें.
इब्ने सफी उर्दू में लिखते थे और मूल उर्दू जासूसी दुनिया के मुख्य पात्रो के नाम कर्नल फ़रीदी कैप्टन हमीद इमरान आदि थे जिन्हें हिन्दी में अनुवाद करते समय अनुवादक प्रेम प्रकाश जी कर्नल विनोद (फ़रीदी) और राजेश (इमरान) कर दिया करते थे। पाकिस्तान की कुछ साइटों पर उनके कई उपन्यास उर्दू में उपलब्ध हैं। जैसी सुन्दर साहित्यिक व छिछोरेपन से दूर भाषा उनके उपन्यासों में पढ़ने को मिली वैसी किसी अन्य जासूसी उपन्यासकार के उपन्यासों में खोजने पर भी नहीं मिली। शराब, औरतबाजी, लफंगेपन और लचर भाषा के प्रयोग से दूर उनके नायक मज़बूत नैतिक आचरण की मिसाल थे जासूसी उपन्यासों के लिये एक अनोखी बात थी। उनके सारे ही उपन्यास उच्च कोटि के हास्य व्यंग्य का भी भण्डार थे।
مجھے اپنے بچپن کے دنوں میں ابن صفی بی اے کی کتابوں کا ایک جكھيرا مل گیا تھا پر بدقسمتی یا پھر خوش قسمتی سے وہ ارد میں تھا، سو میں نے اسے پڈھنے کے لييے ارد سیکھی. کثیر کتابوں کی الماریاں جاسوسی كهانييا تھیں وہ
भैया अगर पीडीऍफ़ फॉर्मेट में चाहिए तो मेल कर दीजियेगा ।मैं दे दूंगा
उपन्यास जगत में जासूसी उपन्यास लेखन में इब्ने सफीएक श्रेष्ठ नाम है। इनके उपन्यास बहुत गजब होते हैं।
www.sahityadesh.blogspot.in
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