-अनुवाद : मंगलेश डबराल
(पिछली कड़ी से आगे)
प्रकृति से आपको गहरा लगाव है। इस पर कुछ बतलायेंगे?
नेरुदा: अपने बचपन से ही मुझे चिडि़यों,
सीपियों, जंगलों और पेड़-पौधों से प्रेम रहा है। समुद्री सीपियों की खोज
में मैं कई जगह गया और उनका एक बड़ा संग्रह मेरे पास है‐
मैंने ‘पक्षियों की कला’ नाम से एक पुस्तक लिखी है‐ मैंने ‘बेस्तिअरी’, ‘सी-क्वेक’ और ‘रोज ऑफ़फ एवालरियो’ भी लिखी हैं जो कि फूलों, शाखाओं और वानस्पतिक विकास के संबंध में है‐
मैं प्रकृति से अलग होकर रह नहीं सकता‐
होटलों में कुछ दिन गुजार सकता हूं और एकाध घंटे के लिए हवाई
जहाज में रहना भी अच्छा लगता है, लेकिन प्रसन्नता मुझे जंगलों में,
रेत पर या नाव खेते हुए ही मिलती है,
जहां कहीं आग, धरती, पानी ओर हवा से सीधा संपर्क हो सके‐
आपकी कविता में बार-बार बहुत-से प्रतीक आते हैं,
और हमेशा समुद्र, मछली, चिडि़यों का रूप लेते हुए....
नेरुदा: मैं प्रतीकों को नहीं मानता‐
वे महज़ भौतिक वस्तुएं हैं‐
मेरे लिए समुद्र, मछली और चिडि़यों का एक भौतिक अस्तित्व है‐
मैं उनका उल्लेख उसी तरह करता हूं जैसे धूप का करता हूं‐
मेरा कविता में कुछ विषय अगर अलग से दिखते हैं-और बार-बार आते
हैं-तो इसका संबंध सिर्फ उनकी भौतिक उपस्थिति से है‐
कबूतर और गिटार का क्या अभिप्राय है?
नेरुदा: कबूतर का अर्थ कबूतर है और गिटार का अर्थ है एक वाद्ययंत्र
जिसे गिटार कहते हैं‐
आपका मतलब यह है कि जिन्होंने इन चीजों के विश्लेषण का प्रयत्न
किया है वे...
नेरुदा: जब मैं कोई कबूतर देखता हूं तो उसे कबूतर कहता हूँ‐
कबूतर का, चाहे वह मौजूद हो या न हो, मेरे लिए वस्तुगत या व्यक्तिगत रूप से एक निश्चित रूपाकार है‐
पर वह कबूतर होने से परे कुछ नहीं है‐
‘धरती पर घर’ की कविताओं के संबंध में आपने कहा था कि ‘वे किसी को जीने में मदद देती हैं,
किसी को मरने में मदद देती हैं‐’
नेरुदा: मेरा संग्रह ‘धरती पर घर’ मेरे जीवन के अँधेरे और खतरनाक समय का प्रतिनिधित्व करता है‐
वह ऐसी कविता है जिसमें कोई दरवाजा नही‐
उससे बाहर आना मेरे लिए नया जन्म लेने जैसा था‐
स्पेन के युद्ध और दूसरी संजीदा घटनाओं से पैदा हुई उस घोर निराशा
से,
जिसकी थाह मैं अभी तक नहीं माप पाया हूं,
मैं बच गया‐ एक बार मैंने यह भी कहा था कि अगर मेरे वश में हुआ तो मैं इस
संग्रह को पढ़ने की मनाही करूंगा और उसका कोई नया संस्करण नहीं छपवाउंगा‐
उसमें जीवन के अहसास को एक दुखद भार के रूप में,
एक नश्वर उत्पीड़न के रूप में देखा गया है‐
लेकिन मुझे यह भी लगता है कि यह मेरी बेहतरीन पुस्तकों में से
है: इस अर्थ में कि यह मेरी एक मनःस्थिति को उजागर करती है‐
पता नहीं दूसरे भी ऐसा सोचते हैं या नहीं,
लेकिन जब कोई कुछ लिखता है तो उसे यह भी ध्यान में रखना चाहिए
कि मेरी कविताएं कहां पहुंच रही हैं‐ राॅबर्ट फ्रास्ट ने अपने एक निबंध में कहा है कि कविता का एकमात्र
आधार दुख होना चाहिए: ‘कविता में सिर्फ दुख रहने दो’ लेकिन मुझे नहीं मालूम रॉबर्ट फ्रॉस्ट तब क्या सोचते अगर कोई
नवयुवक आत्महत्या करता और अपने खून के निशान फ्रास्ट की किसी किताब पर छोड़ जाता‐
मेरे साथ ऐसा हुआ है - यहां, इसी मुल्क मे‐ जिन्दगी से भरपूर एक नौजवान ने मेरी पुस्तक की बगल में अपने
को मार डाला‐ उसकी मृत्यु में मेरा सचमुच कोई दोष नहीं था, लेकिन खून के धब्बों से भरा वह कविता-पृष्ठ तमाम कवियों को चिंतित
कर देने के लिए काफी है‐
मैंने अपनी पुस्तक के खिलाफ़ जो कुछ कहा उसका मेरे विरोधियों
ने राजनीतिक इस्तेमाल किया, जैसा कि वे मेरे हर कथन का करते आये है‐
यह उन्हीं की देन है कि मेरे भीतर सिर्फ आस्थावान कविताएं लिखने
की इच्छा जगी‐ उन्हें इस प्रसंग की जानकारी नहीं थी‐ ऐसा नहीं है कि मैंने अकेलेपन,
व्यथा या विषाद की अभिव्यक्ति बिल्कुल वर्जित कर दी हो‐
लेकिन मैं चाहता हूं कि अपने लहजों को बदलता रहूं,
तमाम आवाजें पाउं, तमाम रंगों की तलाश करूं, और जहां कहीं भी जीवन शक्तियां रचना और विनाश में लगी हों,
उन्हें देखूं‐
जो दौर मेरी ज़िन्दगी में आये हैं वे मेरी कविता में ही आये
हैं: एकाकी बचपन और दूरदराज सबसे कटे हुए देशों में बीती किशोरावस्था से मैंने एक विराट
मानव समूह में शरीक होने तक की यात्रा है‐ इससे मुझे पूर्णता हासिल हुई, बस‐ कवियों का पीडि़तात्मा होना पिछली सदी की चीज थी‐
ऐसे भी कवि हो सकते हैं जो जीवन को जानते हों,
उसकी समस्याओं को जानते हों और जो विभिन्न धराओं को पार करते
हुए जीवित रहते हों‐ और जो उदासी से गुजरकर एक परिपूर्णता तक पहुंचते हों‐
No comments:
Post a Comment