तुमने पूछा
-लाल्टू
और बारिश होने लगी
क्या तुम पूछ नहीं सकती
कि दिख रहे हैं मुझे
सुखी परिंदे
मैं चाहता हूँ कि विलुप्त हो गई गौरैयों के बारे में पूछो
मुझे यकीन है कि तुम्हारे पूछने पर उड़ आएंगी वे
जहाँ भी वे पिंजड़ों में बंद हैं या अतीत के बिंदुओं पर से
यहाँ चहचहाने को मुझे एक बार भरोसा दिलाने को
कि बुरे दिनों का अंत हो सकता है
पूछो तुम यह भी कि
आशीष लिख रहा है कविताएँ
और मुझे हर सुबह जीमेल पर मिलने लगें
युवा कविताएँ जिनमें ज़िंदा हो दादी की दुनिया
जिनमें तकलीफ़ न हो समंदर किनारे जला दिए घरों की
यह महज ज़िद नहीं
बहुत गहरी तमन्नाएँ हैं कि
तुम पूछो धुआँ हट रहा है
और सूरज दिखे साफ जितना भी गर्म क्यों न
पूछो कि पूछ रहा हूँ मैं
1 comment:
अच्छे भाव हैं।
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