वस्तुओं का
न्याय
आजकल कोई भी
मनुष्य
मनुष्य का
प्रचार नहीं करता
कोई नहीं
कहता मुझे वापरिये - मैं आदमी हूँ
यह जरूर
होता है कि जब मैं सड़क पार करता हूँ
पेड़ के
नीचे सुस्ताता हूँ या रुकता हूँ लालबत्ती पर
अचानक एक
आदमी आता है कहता है
इस तरफ आइये, मैं आपको एक वस्तु दिखाता हूँ
मैं एक
मनुष्य को छूता हूँ
वह मुसकराता
रहता है
कभी-कभी
उसमें से एक बीप सुनाई देती है
तब मालुम
होता है कि वह मनुष्य नहीं,वस्तु है
फिर मेरी
पहचान एक मशीन करती है
जैसे वह
मेरा भार जानती है और पासंग भी
वस्तुएँ ही
करती हैं मेरा न्याय
वे मेरी हर
चीज को दो खानों में रख देती है
कुल दो
खानेः काला या सफेद
वे कहती हैं
हम हमेशा सच बोलती हैं
लेकिन तुम
झूठ बोल सकते हो,तुम मनुष्य
हो
यदि हम झूठ
बोल रही हों तो तय है
वह किसी
मनुष्य का ही झूठ है.
1 comment:
बेहतरीन ...सहा कहा आपने हम मशीनों के सामने खुद को भूल गयें हैं|
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