Saturday, February 9, 2013

भीतर-भीतर पुलकता मगर मेंड़ पर संभलता, चलता-सा भी



भाई-बहन

-
हरीश चन्द्र पांडे

भाई की शादी में ये फुर्र-फुर्र नाचती बहनें
जैसे सारी कायनात फूलों से लद गई हो

हवा में तैर रही हैं हँसी की अनगिनत लड़ियाँ
केशर की क्यारियाँ महक रही हैं

याद आ गई वह बहन
जो होती तो सारी दिशाओं को नचाती अपने साथ

जिसका पता नहीं चला
गंगा समेत सारी गहराईयाँ छानने के बाद भी...

और बहन की शादी में यह भाई
भीतर-भीतर पुलकता
मगर मेंड़ पर संभलता, चलता-सा भी

कुछ-कुछ निर्भार
मगर बगल का फूल तोड़े जाने के बाद पत्ते-सा
श्रीहीन...

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