ऊँट - मिलोश मात्सोउरेक की बाल कथाएँ - ३
ऊँट
ऊँट की जिंदगी आसान नहीं होती, भूलकर भी यह न सोचना कि वह आसान होती है, ऊँट
बेचारे दिन भर सुबह से शाम तक यहाँ से वहां तक माल धोते रहते हैं, तरह तरह की गठरियाँ,
बक्से और क्रेट, केले संतरे और दीगर सामान से भरे हुए, देर शाम काम खत्म करके वे
दूकान पर जाकर च्युइंग-गम खरीदते हैं और उसे चबाने यानी चू करने लगते हैं, और भई
क्यों न करें, यही तो उनके जीवन का एकमात्र मज़ा है और च्युइंग-गम कोई इतनी महंगी
चीज़ भी नहीं, लेकिन सभी ऊँट एक तरह के नहीं होते, और एक दिन एक ऊँट के दिल में
ख़याल आता है, वह तय कर लेटा है कि अब्ब से अपने पैसे च्युइंग-गम पर बर्बाद करने के
बजाय जोड़ा करेगा और उस पैसे से विदेश की सिर करने जाएगा, जिन डिब्बों, बक्सों,
क्रेटों को वह सुबह से शाम तक धोता,उन पर दूर-दराज़ के अजीबो-गरीब शहरों और मुल्कों
के नाम लिखे देखता था, उसकी इच्छा है कि जाकर देखे वे जगहें कैसी हैं, यहाँ का
जीवन तो इतना उबाऊ है, बस च्युइंग-गम चबाते चबाते चंद ऊँट और कुछ भी नहीं, तो यह
ऊँट जाकर रेल का टिकट कटाता है एक कैमरा खरीदता है और सफर पर निकल पडता है, लेकिन
परदेस जाकर वहां का हाल देखकर उसे बड़ी निराशा होती है, ज़रा कल्पना कीजिए वह एक बड़े
से विदेशी रेस्तरां में घुसता है और देखता है कि वहां बैठे सारे प्राणी च्युइंग-गम
चबा रहे हैं, जहां भी जिसे भी देखता है, च्युइंग-गम चबाता पाता है, ऊँट को ज़ाहिर
है बड़ी ग्लानी होती है, वह सोचता है मेरी भी कैसी ऊँट-बुद्धि है, निरा ऊँट ही रहा,
क्या यह सब देखने के लिए हीइतने दिन पैसा पैसा जोड़ कर अपनी जिंदगी के एकमात्र आनंद
से वंचित होकर मैं यहाँ आया था, वह झटपट
तेज़ी से अपने घर को वापस चल पडता है, और वहां पहुँच कर दूसरे सभी ऊंटों की तरह
दूकान पर च्युइंग-गम खरीदने पहुँच जाता है.
(अनुवाद - असद ज़ैदी, 'जलसा' - ३ से साभार)
2 comments:
waah bhai waah
हा हा, लगता है कि ऊँट मस्ती में च्यूंगम चबाये जा रहा है, आजकल के कूल ड्यूड्स की तरह।
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