चेक कवि, नाटककार, लेखक और स्क्रीन-राइटर मिलोश मात्सोउरेक
(२ दिसम्बर १९२६-३० सितम्बर २००२) ने अपने जीवन में कई तरह के पेशे अपनाए. १९५३ से
१९६० तक वे कला के इतिहास के अध्यापक रहे; बाद में उन्होंने बारान्दोव फिल्म
स्टूडियो में नाटककार का काम किया. उन्होंने बच्चों के लिए किताबें लिखने के अलावा
कई प्रहसन और टीवी सीरीज़ लिखीं.
बच्चों की उनकी ये कहानियां जनाब –ए-अव्वल असद ज़ैदी के
संपादन में निकलने वाली हिन्दी पत्रिका ‘जलसा’ के तीसरे अंक में शाया हुई हैं.
अनुवाद भी उन्हीं का है. इन कथाओं को यहाँ छापने की अनुमति देने के लिए आभार.
पहली कहानी- याकोब का मुर्ग़ा
मुर्ग़ा
तो मुर्ग़ा होता है, वह कैसा दिखता है तुम सब जानते हो, जानते हो न, तो फिर मुर्गे
का चित्र बनाओ, अध्यापिका ने बच्चों से कहा और सब बच्चे अपनी पेन्सिल और क्रेयोनों
को चूसते हुए मुर्गे का चित्र बनाने में जुट गए, काले क्रेयोन और भूरे क्रेयोन से
उनमें काला और भूरा रंग भरने लगे, लेकिन तुम तो जाते ही ही हो याकोब को, देखो जरा उसे,
क्रेयोन के बॉक्स में जितने रंगों के क्रेयोन आते हैं सब उसने इस्तेमाल कर लिए.
फिर लॉरा से भी उधार लेकर कुछ और रंग भर डाले, इस प्रकार याकोब का जो मुर्ग़ा बना
उसका सर नारंगी था, देने नीले, जांघें लाल, देखकर टीचर बोली अरे येकैसा अजीबोगरीब मुर्ग़ा
है ज़रा देखो तो बच्चो, कक्षा के सारे बच्चे हंसी से लोटपोट हैं और टीचर कहे जा रही
है कि यह सब लापरवाही का नतीजा है, कक्षा में याकोब का ध्यान कहीं और होता है, और
सच तो यह है कि याकोब का मुर्ग़ा मुर्ग़ा नहीं पीरू या मुर्ग़ाबी की तरह नजर आता
है, नहीं बल्कि मोर की तरह, आकार में बटेर के बराबर और अबाबील की तरह दुबला, मुर्ग़ा
है कि अजूबा, याकोब को उसके प्रयास के लिए एफ़ मिलता है और उसके बनाए मुर्गे को
दीवार पर टांगने के बजाय टीचे की अल्मारी के ऊपर दूसरी रद्दी और बेमेल चीज़ों के
बीच पटक दिया जाता है, बेचारे मुर्गे की भावनाओं को इससे बड़ी ठेस पहुँचती है, टीचर
की अल्मारी के ऊपर धुल फांकने के ख़याल से ही उसे घबराहट होती है, भला यह भी कोई
जिंदगी है, वह हिम्मत करके पर तौलता है और खुली खिड़की से रास्ते उड़ जाता है.
लेकिन
मुर्ग़ा तो मुर्ग़ा ही हुआ न, वह ज़्यादा दूर तक नहीं उड़ सकता, लिहाज़ा उसकी उड़ान
स्कूल की बगल में बने घर के बागीचे में खत्म होती है, क्या ही शानदार ये बागीचा
है, चरों तरफ़ सफ़ेद चेरी के पेड़, नीले अंगूर की बेलें, बागबान की महनत और प्यार की
गवाही देती जगह, और बागबान भी कोई ऐसे वैसे नहीं, प्रोफ़ेसर कापों, जाने माने पक्षी
विज्ञानी जो पक्षियों पर सात ग्रंथों की रचना कर चुके हैं और अब आठवीं किताब को
पूरा करने में लगे हैं, वह उसका आखिरी पैरा लिखना शुरू करते हैं और अचानक उन्हें
थकान घेर लेती है, और वह उठकर थोड़ी सी बागवानी और चहलकदमी के लिए बागीचे मना जाते
हैं, इससे उन्हें आं मिलता है और चिड़ियों के बारे में सोचने का वक्त्त भी, दुनिया
में इतनी चिड़ियाँ हैं, बेशुमार, प्रोफ़ेसर कापों अपने आप से कहते हैं, लेकिनाह
बदकिस्मती कि एक भी चिड़िया को खोजने का श्री मुझे नहीं जाता, वह उदास हो जाते हैं,
फिर बेखुदी के आलम में सपना दखने लगते हैं कि अब तक अज्ञात रही एक चिड़िया को
उन्होंने खोज निकाला है, तभी उनकी नजर उस मुर्गे पर पड़ती है जो उनके दुलारे नीले
अंगूरों को चुगे जा रहा है, उन दुर्लभ अंगूरों को, बताइये क्या ये अंगूर इसलिए
लगाए गए थे कि मुर्गे-मुर्गियों का दाना बनें, देखकर किसका खून नहीं खुल उठेगा,
प्रोफेसर को गुस्सा आ जाता है, गुस्से में वह आपे से बाहर हो जाते हैं, उनकी इच्छा
होती है कि पकड़कर मुर्गे की गर्दन मरोड़ दें, पर अंत में वह उसे पकड़कर अहाते से
बाहर फेंक देते हैं, मुर्ग़ा घबराता हुआ उड़ जाता है, पर अरे यह क्या, प्रोफेसर
उसके पीछे पीछे भाग रहे हैं, अपने अहाते की दीवार फांद गए हैं, जैसे तैसे करके वह
उसे फिर पकड़ने में सफल हो जाते हैं और प्यार से घर ले आते हैं, काफी अजीब सा यह मुर्ग़ा
अहि, शर्त बद सकता हूँ आज तक किसी ने ऐसा मुर्ग़ा नहीं देखा होगा, नारंगी सर, नीले
पंख और सुर्ख जांघें, प्रोफेसर यह सब कागज़ पर दर्ज़ कर रहे हैं, दिखने में कुछ पीरू
या मुर्ग़ाबी जैसा, पर कुछ गौरैया की और कुछ मोर की याद दिलाता, बटेर की तरह
गोलमटोल और अबाबील की तरह दुबला, अपनी आठवीं किताब के लिए ये तफसील दर्ज़ कर
प्रोफ़ेसर रोमांच से थरथराते हुए मुर्गे का नामकरण अपने नाम पर कर देते हैं और
मुर्गे को ले जाकर कांपते हाथों से चिडियाघर में सौंप आते हैं.
मुर्ग़ा
तो मुर्ग़ा ही होता ही, आप सोचते हैं किसे दिलचस्पी होगी एक मुर्गे से, पर इस
मुर्गे ने पूरे चिडियाघर में तहलका मचा दिया है, ऐसी दुर्लभ चीज़ बीस-पच्चीस सालों
में नमूदार होती हो तो होती हो, चिड़ियाघर का डाइरेक्टर उत्तेजना में हाथ मॉल रहा
है, कर्मचारी पिंजरा बनाने में लगे हैं, पेंटर मसरूफ हैं और डाइरेक्टर कह रहा है
पिजरा शानदार होना चाहिए और बिस्तर ज़रा नरम, और लीजिए यह नामपट्ट भी बनकर आ गया,
कापोनी मुर्ग़ा – गलीना कापोनी – अच्छा नाम है न, कानों को भला लगने वाला, क्या
ख़याल है आपका ... उधर मुर्गे की खुशी का कोई ठिकाना नहीं, ऐसा स्वागत ऐसा सत्कार
देखकर उसकी आँखों में आंसू आ जाते हैं, उसे अब इस दुनिया से कोई शिकायत नहीं, वह
चिड़ियाघर का मुख्य आकर्षण है, सबकी आँखों का तारा, चिड़ियाघर में कभी इतने दर्शक
नहीं आए, कैशियर कह रहा है, जनता उमड़ पड़ी है, टिकट खिड़की पर लाइन लंबी होती चली जा
रही है, और लीजिए हमारी वही अध्यापिका पूरी कक्षा के साथ पिंजरे के सामने हाज़िर है
बच्चों को बताती हुई कि अभी अभी तुमने प्रेवाल्स्की का घोड़ा देखा था, और अब
तुम्हारे सामने है एक और दुर्लभ जीव, गलीना कापोनी यानी कापोनी मुर्ग़ा जो देखने
में कुछ पीरू या मुर्ग़ाबी जैसा लगता है, पर कुछ गौरैया की और कुछ मोर से मिलता
जुलता है, यह कैसे बटेर की तरह गोलमटोल भी है और अबाबील की तरह दुबला भी, ज़रा देखो
तो कैसा हसीं नारंगी सर गई इसका, इसके नीले पंख, लाल-सुर्ख जंघाएँ, बच्चे विस्मित
हैं, जोर से सांस छोड़ते हुए कहते हैं आह कितना सुन्दर मुर्ग़ा है, है न टीचर, पर
लॉरा को जैसे करंट लग गया हो, वह टीचर की आस्तीन खींचती है और कहती है, ये तो
याकोब का मुर्ग़ा है, सच में टीचर ये वही मुर्ग़ा है, टीचर झल्लाती है ये बेवकूफ
लड़की क्या बकबक कर रही है याकोब का मुर्ग़ा, याकोब का ... अरे याद आया देखना ये
याकोब कहाँ गया, उसका ध्यान फिर कहीं और है, देखो कहाँ पहुंच गया, एन्टईटर के
पिंजरे के सामने, कापोनी मुर्गे को देखने के बजाय चींटीखोर पशु को देखता हुआ,
याकोब, अपने फेफड़ों की पूरी पूरी ताकत के साथ ऊंचे सुर में टीचर चीखती है, अगली
बार मैं तुम्हें घर वापस भेज दूंगी, तुम नहीं संभलोगे याकोब, तुम्हारी हरकतें अब
बर्दाश्त के बाहर हो चुकी हैं, सही है, यह सब देखकर किसी का भी खून खौल सकता है.
प्रश्न
१. याकोब
के मुर्गे के जीवन के क्रम को कम से कम चार चरणों में बांटते हुए वर्णित कीजिए.
२. अपने
बगीचे में बेमेल पक्षी को देखकर पक्षी-विज्ञानी ने क्या किया और क्यों?
३. अगर
आपके मुर्गे को चिड़ियाघर में रख दिया जाए तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?
४. अध्यापिका
ने मुर्गे को देखकर दो भिन्न अवसरों पर – (क) क्लासरूम में (ख) चिड़ियाघर में – जो
भाव व्यक्त किये, उनका तुलनात्मक विश्लेषण कीजिए.
५. चिड़ियाघर
में अपने मुर्गे को देखकर याकोब की अंतिम प्रतिक्रिया क्या थी?
६. इस
प्रसंग को आधार बनाकर याकोब के भविष्य के बारे में अनुमान लगाइए.
No comments:
Post a Comment