Thursday, August 1, 2013

एक है ज़ोहरा - २


(पिछली क़िस्त से आगे)

मुझे पहाड़ी पर स्थित एक कॉटेज की भी याद है, जिसके आंगन में बनी कोठरियों में से एक में लोहे का बड़ा सा दरवाजा था. जब भी यह दरवाज़ा खुलता उसमें से ढेर के ढेर अखरोट लुढ़कने लगते थे, वो इतनी तेजी से आते थे कि अगर आप रास्ते से नहीं हटे तो आपको दबा ही दें. इस कॉटेज में ऊपरी हिस्से में बने कमरों के बाहर गुलाब लगे हुए थे.

एक दिन मेरी मां सुपारी काट रही थीं,  मैंने उनसे सुपारी का बीच का नर्म वाला हिस्सा मांगा, जो बच्चों का पसंदीदा होता है. मेरे पिता जी पास ही बैठ कर मां के साथ बातचीत कर रहे थे. पीछे मुड़ कर उन्होंने कहा, "ये लो," सुनते ही मैंने मुंह खोल दिया. उन्होंने कुछ फेंका जिसे मैं सुपारी का नर्म गूदा समझ कर खा गई. “वो एक मक्खी थी," उन्होंने हंस कर मुझे चिढ़ाया. मैं इस बात की वजह से काफी दिनों तक उनसे नफरत करती रही. जब मैंने 1968 में उन्हें यह किस्सा सुनाया तो वो हंसे और कहा कि उन्हें यह वाली शरारत याद नहीं है, लेकिन शायद यह तब की बात है जब मैं दो साल की रही होऊंगी और तब वह चकराता में तैनात थे.

उसके बाद उन्होंने उस समय का एक मजेदार किस्सा सुनाया. चकराता में एक अंग्रेज अधिकारी कर्नल प्रिंस एक शिकार यात्रा से अपनी पत्नी के लिए भालू का बच्चा साथ लेते आए. जब यह बच्चा बड़ा हुआ तो खतरे का सबब बन गया, इसलिए कर्नल की पत्नी की अनिच्छा बावजूद भालू को मेरे पिता की निगरानी में मैदानी जगंल में ले जा कर छोड़ा गया. मुझे याद है कि उन्हीं दिनों गर्वनेस जैसी एक अंग्रेज महिलामेरी मां से मिलने आती थीं. उन्होंने मां को एक लोरी सिखाई थी, "किंग बेबी, डियर बेबी, डिकी बर्ड सिंग्स/ हाऊ लवली आर द शैडो ऑफ योर आई!" मैंने मां को कई बार बाहर पिंजरे में बंद चहचहाती बंगाली मैना के आगे यह लोरी गाते हुए सुना.

उस समय की सबसे नाटकीय घटना देहरादून में मेरे भाई के जन्म की थी, तब मैं तीन साल की थी. मां-पिताजी के कमरे के दरवाजे बंद थे और मैं बंगले के बरामदे में निढाल सी यूं ही घूम रही थी. मुझे कुछ खबर नहीं थी कि हो क्या रहा है. तभी अन्ना बुआ (मेरी मां की नर्स, जो हमारी देखभाल भी करती थी) पीछे से आ कर मुझसे चिपट गईं और बोलीं, "लड़का हुआ है! तुम भाग्यशाली हो जो अपने पीछे भाई ले कर आई हो, चलो में तुम्हारी पीठ पर नारियल फोड़ती हूं!"  उन्होंने जैसे कहा मैं वैसे झुक गई और फिर मैंने जोर से कुछ टूटने और छलकने की आवाज़ सुनी. पीछे मुढ़ कर देखा तो फर्श पर नारियल के टुकड़े बिखरे थे और उसका दूध फैला हुआ था. उस समय मुझे यह लगा था कि यह नारियल मेरी पीठ पर लगने से ही टूटा है. और फिर मैंने दो बंदूक चलने और पास के अमरूद के पेड़ पर बैठे तोतों के उड़ने से पंखों के फड़फड़ाने की आवाज़ें सुनी. बाद में मुझे पता चला कि पठानों में बेटा पैदा होने पर बंदूक चला कर सलामी देने की परंपरा पहले से ही है.

घृणा से गनगना देने वाला एक अनुभव जो मुझे याद है वो था पहली बार सेक्स के बारे में पता चलना. हमारे बंगले में एक एंग्लो-इंडियन मेमसाहब भी रहती थी जिन्होंने अपने आंगन में ढेर सारे टर्की पाले हुए थे. उनके और हमारे बरामदे के बीच तार की जाली लगी हुई थी. एक बार में इसी जाली से टर्की देख रही थी तो मैंने उनके आंगन में एक अंग्रेज़ को खड़े देखा. मैं खाना खाने अपने घर के अंदर जाने के लिए मुड़ने लगी तो मैंने देखा कि उस आदमी ने अपने कपड़े उतार दिए थे और खींसे निपोरते हुए नंगा खड़ा था. उसका अंग विशेष दिखने में टर्की की गर्दन की तरह लगता था. उस घृणित दृश्य ने मुझे दहशत, शर्म और अपराधी होने की सी अनुभूति से भर दिया था.


(जारी)