(पिछली क़िस्त से आगे)
मैं अब भी गाता हूँ और चुनिन्दा शोज़ करता हूँ. मेरा स्वास्थ्य ठीक है, मेरी
दोनों बेटियाँ शानदार गायिकाएं हैं और उन्होंने इंडस्ट्री में न जाने का रास्ता
चुना. उन्होंने लता और आशा के बीच का गलाकाट संघर्ष देखा और वह उन्हें भाया नहीं.
दोनों प्रोफेशनल्स हैं. दरअसल मेरी बड़ी बेटी कैलिफोर्निया के सन माइक्रोसिस्टम्स
में काम करती है. मेरी पत्नी बहुत बेहतरीन है जिसे मैं ख़ूब प्यार करता हूँ और एक
अनुशासित जीवन जीता हूँ. सबसे बड़ी बात मेरे लिए यह है कि इतने सारे लोग उस संगीत
को पसंद करते हैं जिस पर मेरा विश्वास रहा और वे मेरे गीत सुनने को आते हैं. मेरे
लिए इतना बहुत है.
अनिल
बिस्वास ने यह भी कहा था कि आप इकलौते गायक थे जो हर गाने की नोटेशन लेते थे और एक
ही टेक में गा भी देते थे और यह भी कि जिन गानों को रफ़ी, किशोर, मुकेश या तलत
महमूद ने गाया उन्हें आप भी गा सकते थे लेकिन आपके गाए गानों को लेकर इन गायकों के
बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता.
यह
उनका बड़प्पन है. वे मुझे काफ़ी पसंद करते थे, लेकिन मैं नहीं मानता कि रफ़ी साहब को
कोई छू भी सकता है. यह सच है कि मैं गानों की नोटेशन लिया करता था और एक ही
रिहर्सल में उन्हें गा भी देता था. मैंने लता और आशा को नोटेशन लेना सिखाने की
कोशिश भी की लेकिन शुरुआती उत्साह के बाद इन लडकियों ने वांछित मेहनत नहीं की.
हमें
रफ़ी साहब के बारे में बताइये. बहुत कम लोग जानते हैं कि आपने रफ़ी को एक कोरस से छांट
कर बाहर निकाला था और पहला ब्रेक दिलवाया था.
रफ़ी
मुझसे जूनियर थे और जब मैं लीड सिंगर की जगह गा रहा होता था, कई बार वे कोरस में
गाया करते थे. लेकिन बाद में मुझे अहसास हुआ कि उनके भीतर कितना दुर्लभ टेलेंट हैं
और यह भी कि किसी भी क्षेत्र में वे अद्वितीय रहेंगे, खासतौर पर फिल्मों की
प्लेबैक सिंगिंग में. मेरे मामले में कुछेक गाने अपनी तरह के अलग हैं अपर रफ़ी साहब
की जहां तक बात है उन्होंने जो कुछ गाया वह अविश्वसनीय था. सच तो यह है कि कई बार
मेरे चाचा के. सी. डे कोई धुन बना रहे होते और मैं उन्हें असिस्ट किया करता. एक
बार वे ‘जस्टिस’ नाम की फ़िल्म के लिए गाना कम्पोज़ कर रहे थे और मैं उनकी मदद कर
रहा था. जब धुन बन गयी उन्होंने कहा कि रफ़ी को बता दो. मैंने कहा क्या बता दो. वे
बोले यही कि धुन बन गयी है और उसे गाना गाना है. मैं काफ़ी आहत हुआ और मैंने पूछा
क्यों? क्या मैं इसे नहीं गा सकता? चाचा बोले न तुम नहीं गा सकोगे. इसे बस रफ़ी ही
गा सकता है. मैंने घमंड पी लिया और रफ़ी को बुलवा लाया. जब रेकॉर्डिंग ख़त्म हुई तो
मुझे अहसास हुआ कि वाकई जिस तरह रफ़ी ने उस गीत को गाया वैसा मुझसे नहीं हो सकता
था.
आपको
किसके साथ गाने में ज़्यादा मज़ा आया? लता के साथ या आशा के?
मैंने
जितने डुएट लता के साथ गाये हैं उतने किसी और के साथ नहीं गाए. मुझे लता सबसे पहले
अनिल बिस्वास की एक रिहर्सल में मिली थीं. मैंने अटपटे कपडे पहने एक सांवली सी
लड़की को वहां स्टूडियो में बैठे देखा. जब मेरी रिहर्सल ख़त्म हुई अनिल ने कहा मन्ना
ये ह्रदयनाथ मंगेशकर की बेटी हैं. तुमने इसका गाना सुना है? उसके पिता गुज़र गए थे
और उनका वक़्त खराब चल रहा था. मैं उसे सुनने को वहां बैठ गया और उसके गाना शुरू
करते ही मेरी समझ में आ गया कि मेरे सामने एक असाधारण प्रतिभा गा रही है.
दोनों
ही बहनें अतुलनीय हैं लेकिन आशा बहुत वर्सेटाइल है और उसके साथ गाने का मतलब होता
था इम्प्रोम्पटू इम्प्रोवाइज़ेशन करते जाना और एक दूसरे को चुनौती देते हम ऊपर नीचे आगे
पीछे होते रहते थे. इसमें बड़ा मजा था. लोग कहते हैं कि ये दो बहनें इंडस्ट्री में
किसी और को घुसने नहीं देतीं. मैं कहता हूँ कि अगर यह सच है भी तो प्रतिभा और
मेहनत के मामले में इन बहनों की बराबरी कौन कर सकता था?
ऐसा
कौन सा गाना है जिसे सुनकर आप अपने से कहते हैं कि यह एक विस्मयकारी कम्पोजीशन है
और आप उसके साथ न्याय कर पाने में सफल रहे?
मनोज
कुमार की फ़िल्म ‘उपकार’ का ‘कसमें वादे प्यार वफ़ा’. इसे प्राण पर फिल्माया गया था
जो फिल्मों में अक्सर विलेन की भूमिका किया करते थे. यह एक अलग क़िस्म का ओल था
जिसने उनके एक्टिंग करियर को पूरी तरह बदल डाला था. उन्होंने मुझे फ़ोन कर कहा कि
मन्नाजी मुझे ख़ुद पर एक गाना फिल्माए जाने का पहली बार मौका मिल रहा है. मनोज आपको
मेरी भूमिका समझा देंगे. आप कृपा करके गाने को इतना मुश्किल मत गा देना कि स्क्रीन
पर उसे दोहरा पाना मेरे लिए आसान न रह जाए. सुबह मनोज और मैंने गाने की रिहर्सल
शुरू की. बीच में वे मेरे साथ एक समारोह में गए जहां मुझे गाना था. जब हम लौटे
हमने गाना पूरा किया. गानों को लेकर मनोज इस कदर समर्पित आदमी थे और मेरे गाने पर
उन्होंने जैसी तवज्जो दी उस से मुझे काफ़ी संतोष मिला.
राज
कपूर के बारे में क्या ख़याल है? हालांकि अपने अधिकाँश गानों के लिए उन्होंने मुकेश
की आवाज़ का इस्तेमाल किया, उनके कुछ यादगार गाने आपने गाए.
उनके
क़द के फिल्मकारों के साथ काम कर सकना मेरे लिए बड़े फ़ख्र की बात रही. राजकपूर के
साथ रेकॉर्ड किया गया हर गाना अपने आप में अविस्मरणीय होता था. उसे श्रेष्ठतम
बनाने में वे किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतते थे. अक्सर वे एक ढोलक लेकर बैठ
जाया करते और कहते चलो मज़े करते हैं. फ़िल्म ‘चोरी चोरी’ के “प्यार हुआ इकरार हुआ”
के लिए हम पूरे ओर्केस्ट्रा के साथ रेकॉर्डिंग कर रहे थे और राज जी के आने का
इंतज़ार था. वे बहुत लेट थे और तब पहुंचे जब हम पैक अप करने ही वाले थे. वे इतने
विनम्र थे कि पैर छू कर लोगों से माफ़ी मांगने लगे, तब चाय का एक दौर चला और हम सब
फिर से साथ बैठे. जब हम गा रहे थे राज ने थोड़ी स्पेस दिए जाने का अनुरोध किया और
एक छाता माँगा. इस तरह सीन कम्पोज़ हुआ. सुबह से शुरू कर के हम रात के दस बजे तक रिहर्सल
करते रहे क्योंकि हम उसमें इस कदर डूबे हुए थे. मुझे याद है जब मैंने ‘मेरा नाम
जोकर’ के लिए “ऐ भाई ज़रा देख के चलो” गाया था और जिसके लिए मुझे फिल्मफेयर अवार्ड
मिला, मैं किसी प्रोग्राम के सिलसिले में बाहर था और करीब एक बजे रात लौटा. जैसे
ही हमने रिहर्सल शुरू की राज ने, जिनके कान मधुर संगीत को इस कदर पहचानते थे,
महसूस किया कि हमें एक वायोलिनिस्ट की ज़रुरत है. पांच वायोलिनिस्ट खोजे गए, उन्हें
ट्रेन किया गया और हमने रेकॉर्डिंग शुरू की. फ़िल्म बनाने में उन दिनों इस तरह का
समर्पण देखने को मिलता था.
हाल
ही में महमूद गुज़र गए. आपने उनके लिए कुछ विस्मयकारी गाने गाए थे जैसे किशोर के
साथ “एक चतुर नार” और “फुल गेंदवा ना मारो”. महमूद एक तरह के अभिनेता बन गए थे, जब
फ़िल्में उन्हें केंद्र में रख कर लिखी जाती थीं. उनके साथ गाने का अनुभव कैसा रहा?
बेहद
शानदार. महमूद मेरे साथ बैठते थे और नोट्स लेते जाते थे और पूछते रहते थे कि मैं
कैसे गाता हूँ वगैरह. मुझे गाता हुआ देखकर वे अपनी भंगिमाओं में मेरी आवाज़ की सारी
गतियाँ और भावनाएं ले आया करते थे. वे बेहद दयालु और मजेदार इंसान थे.
लोग
आपकी बंगाली कम्पोज़ीशन्स के बारे में हैरत करते नहीं थकते.
मैंने
बंगाली में कोई २५०० गाने गाए हैं और उनमें से करीब ९५% का संगीत भी कम्पोज़ किया
है. आप यक़ीन नहीं करेंगे कि पूर्वी बंगाल यानी वर्तमान बंगलादेश के हर घर में मेरी
ये रचनाएं मिला करती हैं. वहां जब भी मैं गाता हूँ लोगों को मेरे सारे गाने याद
होते हैं. अगर मैं बोल भूल जाता हूँ तो श्रोता उन्हें पूरा करते हैं. मेरा मन
कृतज्ञता से भर उठता है. यह शानदार है कि इतनी बड़ी तादाद में लोग अब भी मेरे गीतों
को प्यार करते हैं. हाल ही में मैंने न्यूयॉर्क में ५००० लोगों के सामने गाया. वह
किसी तरह का कोई उत्सव वगैरह था. मैंने आयोजकों से पूछा कि आप मुझसे यहाँ गवाना
चाहते हैं जहां लोग शापिंग और खाने में व्यस्त हैं तो वे बोले कि आप को अपने गाने
की ताक़त का अन्दाज़ा नहीं है. आप बस शुरू करिए. मैंने गाना शुरू किया और सारे लोग
सारे काम छोड़ कर ख़ामोशी से गाना सुनने लगे.
क्या
आपको इस बात से आश्चर्य होता है कि हमारे पास आज भी मन्ना डे का कोई क्लोन नहीं है
जबकि कई लोगों ने रफ़ी और किशोर की आवाज़ की नक़ल कर ली है?
देखिये,
इसमें मेरी कोई गलती नहीं! आवाज़ तो खुदा की देन होती है, और उसे सुधारने के लिए
मैंने मेहनत भर की है. मैं आपको बताना चाहूँगा कि हाल ही में मैंने एक मराठी युवा
को अपने खासे मुश्किल गानों को गाते सुना कि
मैं दंग रह गया. “लागा चुनरी में दाग” तो उसने इतनी ख़ूबसूरती से गाया कि मैं भी
हक्का बक्का बैठा रह गया. मैं समझता हूँ मेरी आवाज़ और मेरी ख़ास शैली ने मुझे अपने
लिए एक जगह बना पाने में मदद डी और आमतौर पर उसकी नक़ल करना मुश्किल होता होगा.
आज
के संगीत के बारे में आप क्या सोचते हैं? और आपने फिल्मों में गाना बंद क्यों कर
दिया है?
क्या
आज आप एक भी ऐसे कम्पोज़र की तरफ इशारा करके कह सकते हैं कि वह मेरे ज़माने के संगीतकारों
के कैलिबर का है या जानता है कि वह कर क्या रहा है? संगीत के क्षेत्र में जो भी हो
रहा है वह बेहद अस्वास्थ्यकर है. म्यूजिक वीडियोज़ का कमाल है कि जो चाहे गायक बन
सकता है सो यह तो अच्छी बात हुई है चाहे आपको गाना न भी आता हो आप गा सकते हैं. हर
कोई गा रहा है. जब “मैं तो सीटी बजा रहा था, भेलपूरी खा रहा था, तुझे मिर्ची लगी
तो मैं क्या करूं” जैसे गाने बनने लगें तो आप क्या उम्मीद रख सकते हैं? यहाँ तक कि
क्षेत्रीय संगीत भी बॉलीवुड संगीत का क्लोन बनता जा रहा है. मैं समझता हूँ कि आमिर
खान और यश चोपड़ा के अलावा मुझे कोई भी ऐसी फ़िल्में बनाता नज़र नहीं आ रहा जिनके लिए
अच्छे संगीत की ज़रुरत हो. गायकों के तौर पर मुझे सोनू निगम, अलका याग्निक और सुनिधि
चौहान अच्छे लगते हैं लेकिन उन्हें वैसा संगीत नहीं मिल रहा जो उनकी प्रतिभा का
पूरा इस्तेमाल कर सके.
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