Wednesday, August 28, 2013

मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन : जन्माष्टमी पर फिर नज़ीर अकबराबादी


पीनाज़ मसानी की गाई नज़ीर अकबराबादी की यह अतिप्रसिद्ध रचना सुनिए-

यारो सुनो ये ब्रज के लुटैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।

मोहन-स्‍वरूप नृत्‍य, कन्‍हैया का बालपन
बन बन के ग्‍वाल घूमे, चरैया का बालपन
ऐसा था, बांसुरी के बजैया का बालपन
क्‍या क्‍या कहूं मैं कृष्‍ण कन्‍हैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन ।।

ज़ाहिर में सुत वो नंद जसोदा के आप थे
वरना वो आप ही माई थे और आप ही बाप थे
परदे में बालपन के ये उनके मिलाप थे
ज्‍योतिस्‍वरूप कहिए जिन्‍हें, सो वो आप थे
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन
क्‍या क्‍या कहूं ।।

उनको तो बालपन से ना था काम कुछ ज़रा
संसार की जो रीत थी उसको रखा बचा
मालिक थे वो तो आप ही, उन्‍हें बालपन से क्‍या
वां बालपन जवानी बुढ़ापा सब एक सा
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन
क्‍या क्‍या कहूं ।।

बाले थे ब्रजराज जो दुनिया में आ गये
लीला के लाख रंग तमाशे दिखा गये
इस बालपन के रूप में कितना भा गये
एक ये भी लहर थी जो जहां को जता गये
यारो सुनो ये ब्रज के लुटैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन
क्‍या क्‍या कहूं ।।

परदा ना बालपन का अगर वो करते जरा
क्‍या ताब थी जो कोई नज़र भर के देखता
झाड़ और पहाड़ ने भी सभी अपना सर झुका
पर कौन जानता था जो कुछ उनका भेद था
ऐसा था बांसुरी के बजैया का बालपन
और मधुपुरी नगर के बसैया का बालपन
क्‍या क्‍या कहूं ।।

2 comments:

Rajendra kumar said...

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें,सादर !!

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

पीनाज मसानी की मखमली आवाज में यह मधुर गीत गीत उस्ताद अहमद हुसैन मुहम्मद हुसैन की आवाज में भी है । और वह भी कम मधुर नही है ।