Tuesday, August 20, 2013

मर्फ़र गर्फ़ये सर्फ़ाले, गर्फ़ोली चर्फ़लानेवाले – जय बाबा जोगनाथ

इन दिनों ‘राग दरबारी’ जब तब उठा लेता हूँ. सुकुल जी की इस अमर रचना से एक और पसंदीदा टुकड़ा पढ़ें -


डाकुओं का आदेश था कि एक विशेष तिथि को विशेष स्थान पर जाकर रामाधीन की तरफ से रुपये की थैली एकान्त में रख दी जाये. डाका डालने की यह पद्धति आज भी देश के कुछ हिस्सों में काफी लोकप्रिय है. पर वास्तव में है यह मध्यकालीन ही, क्योंकि इसके लिये चांदी या गिलट के रुपये और थैली का होना आवश्यक है, जबकि आजकल रुपया नोटों की शक्ल में दिया जा सकता है और पांच हजार रुपये प्रेम-पत्र की तरह किसी लिफाफे में भी आ सकते हैं. ज़रूरत पड़ने पर चेक से भी रुपयों का भुगतान किया जा सकता है. इन कारणों से परसों रात अमुक टीले पर पांच हजार रुपये की थैली रखकर चुपचाप चले जाओ, यह आदेश मानने में व्यावहारिक कठिनाइयां हो सकती हैं. टीले पर छोड़ा हुआ नोटों का लिफाफा हवा में उड़ सकता है, चेक जाली हो सकता है. संक्षेप में, जैसे कला, साहित्य, प्रशासन, शिक्षा आदि के क्षेत्रों में, वैसे ही डकैती के क्षेत्र में भी मध्यकलीन पद्धतियों को आधुनिक युग में लागू करने से व्यावहारिक कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं.

जो भी हो, डकैतों ने इन बातों पर विचार नहीं किया था क्योंकि रामाधीन के यहां डाके की चिट्ठी भेजने वाले असली डकैत न थे. उन दिनों गांव-सभा और कॉलेज की राजनीति को लेकर रामाधीन भीखमखेड़वी और वैद्यजी में कुछ तनातनी हो गयी थी. अगर शहर होता और राजनीति ऊँचे दरजे की होती तो ऐसे मौके पर रामाधीन के खिलाफ किसी महिला की तरफ से पुलिस में यह रिपोर्ट आ गयी होती उन्होंने उसका शीलभंग करने की सक्रिय चेष्टा की, पर महिला के सक्रिय विरोध के कारण वे कुछ नहीं कर पाये और वह अपना शील समूचा-का-समूचा लिये हुए सीधे थाने तक आ गयी. पर यह देहात था जहां अभी महिलाओं के शीलभंग को राजनीतिक युद्ध में हैण्डग्रेनेड की मान्यता नहीं मिली थी, इसीलिए वहां कुछ पुरानी तरकीबों का ही प्रयोग किया गया था और बाबू रामाधीन के ऊपर डाकुओं का संकट पैदा करके उन्हें कुछ दिन तिलमिलाने के लिये छोड़ दिया गया था.

पुलिस, रामाधीन भीखमखेड़वी और वैद्यजी का पूरा गिरोह- ये सभी जानते थे कि चिट्ठी फर्जी है. ऐसी चिट्ठियां कई बार कई लोगों के पास आ चुकी थीं. इसलिए रामाधीन पर यह मजबूरी नहीं थी कि वह नीयत तिथि और समय पर रुपये के साथ टीले पर पहुंच जाये. चिट्ठी फर्जी न होती, तब भी रामाधीन शायद चुपचाप रुपया दे देने के मुकाबले घर पर डाका डलवा लेना ज्यादा अच्छा समझते. पर चूंकि रिपोर्ट थाने में दर्ज हो गयी थी, इसलिए पुलिस अपनी ओर से कुछ करने को मजबूर थी.

उस दिन टीले से लेकर गांव तक का स्टेज पुलिस के लिये समर्पित कर दिया गया और उसमें वे डाकू-डाकू का खेल खेलते रहे. टीले पर तो एक थाना-का-थाना ही खुल गया. उन्होंने आसपास के ऊसर, जंगल, खेत-खलिहान सभी कुछ छान डाले, पर डाकुओं का कहीं निशान नहीं मिला. टीले के पास उन्होने पेड़ों की टहनियां हिला कर, लोमड़ियों के बिलों में संगीनें घुसेड़कर और सपाट जगहों को अपनी आंखों से हिप्नोटाइज़ करके इत्मिनान कर लिया कि वहां जो है, वे डाकू नहीं हैं; क्रमशः चिड़ियां, लोमड़ियां और कीड़े मकोड़े हैं. रात को जब बड़े जोर से कुछ प्राणी चिल्लाये तो पता चला कि वे भी डाकू नहीं, सियार हैं और पड़ोस के बाग टीले में जब दूसरे प्राणी बोले तो कुछ देर बाद समझ आ गया कि वे कुछ नहीं, सिर्फ चमगादड़ हैं. उस रात डाकुओं और रामाधीन भीखमखेड़वी के बीच की कुश्ती बराबर पर छूटी, क्योंकि टीले पर न डाकू रुपया लेने के लिये आये और न रामाधीन देने के लिये गये.

उस रात डाकुओं और रामाधीन भीखमखेड़वी के बीच की कुश्ती बराबर पर छूटी, क्योंकि टीले पर न डाकू रुपया लेने के लिये आये और न रामाधीन देने के लिये गये.

थाने के छोटे दरोगा को नौकरी पर आये अभी थोड़े ही दिन हुए थे. टीले पर डाकुओं को पकड़ने का काम उन्हें ही सौंपा गया था, पर सब कुछ करने पर भी वे अपनी माँ को भेजे जाने वाली चिट्ठियों की अगली किश्त में यह लिखने लायक नहीं हुए थे कि माँ, डाकुओं ने मशीनगन तक का इस्तेमाल किया, पर इस भयंकर गोलीकाण्ड में भी तेरे आशीर्वाद से तेरे बेटे का बाल तक बाँका नहीं हुआ. वे रात को लगभग एक बजे टीले से उतरकर मैदान में आये; और चूंकि सर्दी होने लगी थी और अंधेरा था और उन्हे अपनी नगरवासिनी प्रिया की याद आने लगी थी और चूंकि उन्होंने बी. ए. में हिन्दी-साहित्य भी पढ़ा था; इन सब मिले-जुले कारणों से उन्होंने धीरे धीरे कुछ गुनगुनाना शुरू कर दिया और आखिर में गाने लगे, "हाय मेरा दिल ! हाय मेरा दिल !

'तीतर के दो आगे तीतर, तीतर के दो पीछे तीतर' वाली कहावत को चरितार्थ करते उनके आगे भी दो सिपाही थे और पीछे भी. दरोगाजी गाते रहे और सिपही सोचते रहे कि कोई बात नहीं, कुछ दिनों में ठीक हो जायेंगे. मैदान पार करते करते दरोगा जी का गाना कुछ बुलन्दी पर चढ़ गया और साबित करने लगा कि जो बात इतनी बेवकूफी की है कि कही नहीं जा सकती, वह बड़े मजे से गायी जा सकती है.

सड़क पास आ गयी थी. वहीं एक गड्ढे से अचानक आवाज आयी, "कर्फौन है सर्फाला?" दरोगाजी का हाथ अपने रिवाल्वर पर चला गया. सिपहियों ने ठिठक कर राईफलें संभाली; तब तक गड्ढे ने दोबारा आवाज दी " कर्फौन है सर्फाला?"

एक सिपाही ने दरोगाजी के कान में कहा, "गोली चल सकती है. पेड़ के पीछे हो लिया जाये हुजूर!"

पेड़ उनके पास से लगभग पांच गज की दूरी पर था. दरोगाजी ने सिपाही से फुसफुसा कर कहा, "तुम लोग पेड़ के पीछे हो जाओ. मैं देखता हूं."

इतना कहकर उन्होंने कहा, "गड्ढे में कौन है? जो कोई भी हो बाहर आ जाओ." फिर एक सिनेमा में देखे दृश्य को याद करके उन्होंने बात जोड़ी, "तुम लोग घिर गये हो. तुम आघे मिनट में बाहर न आये तो गोली चला दी जायेगी."

गड्ढे में थोड़ी देर खामोशी रही, फिर आवाज आयी, "मर्फ़र गर्फ़ये सर्फ़ाले, गर्फ़ोली चर्फ़लानेवाले."

प्रत्येक भारतीय, जो अपना घर छोड़कर बाहर निकलता है, भाषा के मामले में पत्थर हो जाता है. इतनी तरह की बोलियां उसके कानों में पड़ती हैं कि बाद में हारकर वह सोचना ही छोड़ देता है कि यह नेपाली है या गुजराती. पर इस भाषा ने दरोगाजॊ को चौकन्ना बना दिया और वे सोचने लगे कि क्या मामला है ! इतना तो समझ में आता है कि इसमें कोई गाली है, पर यह क्यों नही समझ में आता कि यह कौन सी बोली है ! इसके बाद ही जहां बात समझ से बाहर होती है वहीं गोली चलती है - इस अन्तर्राष्ट्रिय सिद्धान्त का शिवपालगंज में प्रयोग करते हुए दरोगाजी ने रिवाल्वर तान लिया और कड़ककर बोले, "गड्ढे से बाहर आ जाओ, नहीं तो मैं गोली चलाता हूं."

पर गोली चलाने की जरूरत नहीं पड़ी. एक सिपाही ने पेड़ के पीछे से निकल कर कहा, "गोली मत चलाइए हजूर, यह जोगनथवा है. पीकर गद्ढे में पड़ा है."

सिपाही लोग उत्साह से गद्ढे को घेर कर खड़े हो गए. दरोगाजी ने कहा, " कौन जोगनथवा ?"

एक पुराने सिपाही ने तजुर्बे के साथ कहना शुरू किया, "यह श्री रामनाथ का पुत्र जोगनाथ है. अकेला आदमी है. दारू ज्यादा पीता है."

लोगों ने जोगनाथ को उठाकर उसके पैरों पर खड़ा किया, पर जो खुद अपने पैरों पर खड़ा नहीं होना चाहता उसे दूसरे कहां तक खड़ा करते रहेंगे ! इसलिए वह लड़खड़ा कर एक बार फिर गिरने को हुआ, बीच में रोका गया और अंत में गड्ढे के ऊपर आकर परमहंसों की तरह बैठ गया. बैठकर जब उसने आंखें मिला-मिला कर, हाथ हिलाकर चमगादड़ों और सियारों की कुछ आवाजें गले से निकालकर अपने को मानवीय स्तर पर बात करने लायक बनाया, तो उसके मुंह से फिर वही शब्द निकले, "कर्फ़ोन है सर्फाला?"

दरोगाजी ने पूछा, "यह बोली कौन सी है?"

एक सिपाही ने कहा, "बोली ही से तो हमने पहचाना कि जोगनाथ है. यह सर्फ़री बोली बोलता है. इस वक्त होश में नही है, इसलिए गाली बक रहा है."

दरोगाजी शायद गाली देने के प्रति जोगनाथ की इस निष्ठा से बहुत प्रभावित हुए कि वह बेहोशी की हालत में भी कम से कम इतना तो कर ही रहा है. उन्होने उसकी गरदन जोर से हिलायी और पकड़ कर बोले, "होश में आ!"

पर जोगनाथ ने होश में आने से इन्कार कर दिया. सिर्फ इतना कहा, "सर्फ़ाले!"

सिपाही हंसने लगे. जिसने उसे पहले पहचाना था, उसने जोगनाथ के कान में चिल्ला कर कहा, "जर्फ़ोगनाथ, हर्फ़ोश में अर्फ़ाओ."

इसकी भी जोगनाथ पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई; पर दरोगाजी ने एकदम से सर्फ़री बोली सीख ली. उन्होंने मुस्कुराकर कहा, "यह साला हम लोगों को साला कह रहा है."

उन्होने उसे मारने के लिये अपना हाथ उठाया, पर सिपाही ने रोक लिया. कहा, "जाने भी दें हजूर."

दरोगाजी को सिपाहियों का मानवतावादी दृष्टिकोण कुछ पसन्द नहीं आ रहा था. उन्होंने अपना हाथ तो रोक लिया, पर आदेश देने के ढंग से कहा, "इसे अपने साथ ले जाओ और हवालात में बंद कर दो. दफा 109 जाब्ता फौजदारी लगा देना."

एक सिपाही ने कहा, "यह नहीं हो पायेगा हुजूर ! यह यहीं का रहने वाला है. दीवरों पर इश्तिहार रंगा करता है और बात बात पर सर्फ़री बोली बोलता है. वैसे बदमाश है, पर दिखाने के लिये कुछ काम तो करता ही है."

वे लोग जोगनाथ को उठा कर अपने पैरों पर चलने के लिये मजबूर करते हुए सड़क की और बढ़ने लगे. दरोगाजी ने कहा, " शायद पी कर गाली बक रहा है. किसी न किसी जुर्म की दफा निकल आयेगी. अभी चलकर इसे बन्द कर दो. कल चालान कर दिया जायेगा."

उस सिपाही ने कहा, "हुजूर! बेमतलब झंझट में पड़ने से क्या फायदा? अभी गांव चलकर इसे इसके घर में ढकेल आयेंगे. इसे हवालात कैसे भेजा जा सकता है? वैद्यजी का आदमी है."

दरोगाजी नौकरी में नये थे, पर सिपाहियों का मानवतावादी दृष्टिकोण अब वे एकदम समझ गये. वे कुछ नहीं बोले . सिपहियों से थोड़ा पीछे हटकर वे फिर अंधेरे, हल्की ठण्डक, नगरवासिनी प्रिया और 'हाय मेरा दिल' से सन्तोष खींचने की कोशिश करने लगे.

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(फ़ोटो- महामना जोगनाथ का आधुनिक संस्करण  www.fun2video.com से साभार)

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