Saturday, September 14, 2013

इस आरसी में राज़-ए-निहानी कूँ देख तूँ


आशिक़ के मुख पे नैन के पानी कूँ देख तूँ
इस आरसी में राज़-ए-निहानी कूँ देख तूँ

सुन बेक़रार दिल की अवल आह-ए-शो'ला ख़ेज़
तब इस हरफ़ में दिल की मुआफ़ी कूँ देख तूँ

ख़ूबी सूँ तुझ हुज़ूर-ए-शम्‍अ दम ज़नी में है
इस बेहया की चर्बज़बानी कूँ देख तूँ

दरिया पे जाके मौज-ए-रवाँ पर नज़र न कर
अँसुआँ की मेरे आके रवानी कूँ देख तूँ

तुझ शौक़ का जो दाग़ 'वली' के जिगर में है
बेताक़ती में उसकी निशानी कूँ देख तूँ


-‘वली’ दकनी

No comments: