Sunday, September 8, 2013

बाताँ लगन की मत पूछ ऐ शम्मा-ए-बज़्म-ए-ख़ूबी

‘वली’ दकनी की ग़ज़लों की सीरीज चालू है कल से –


मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़साना हो रहा हूँ
तेरी निगह का जब सूँ दीवाना हो रहा हूँ

ऐ आशना करम सूँ यक बार आ दरस दे
तुझ बाज सब जहाँ सूँ बे-गाना हो रहा हूँ

बाताँ लगन की मत पूछ ऐ शम्मा-ए-बज़्म-ए-ख़ूबी
मुद्दत से तुझ झलक का परवाना हो रहा हूँ

शायद वो गंज-ए-ख़ूबी आवे किसी तरफ़ सूँ
इस वास्ते सरापा वीराना हो रहा हूँ

सौदा-ए-ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ रखता हूँ दिल में दाइम
ज़ंजीर-ए-आशिक़ी का दीवाना हो रहा हूँ

बर-जा है गर सुनूँ नईं नासेह तेरी नसीहत
मैं जाम-ए-इश्क़ पी कर मस्ताना हो रहा हूँ

किस सूँ वलीआपस का अहवाल जा कहूँ मैं
सर ता क़दम मैं ग़म सूँ ग़म-ख़ाना हो रहा हूँ

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