Friday, October 25, 2013

चांद में बैठा मसखरा


चांद में बैठा मसखरा
-डायलन टॉमस

मेरे आंसू हैं, खामोश मद्धिम धारा
बहती जैसे पंखुड़ियां किसी जादुई गुलाब से
रिसता है मेरा दुख सारा
विस्मृत आकाश और बर्फ के मनमुटाव से.

मैं सोचता हूं, जो छुआ धरती को मैने
कहीं छितर न जाए भुरभुरी
यह इतनी दुखी है और सुंदर
थरथराती हुई एक स्वप्न की तरह.

(अनुवाद – अनिल यादव) 

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