Saturday, October 5, 2013

या सिर्फ रियाज के दम पर नहीं


भीमसेन जोशी

- वीरेन डंगवाल


मैं चुटकी में भर के उठाता हूं पानी की एक ओर-छोर डोर नदी से 
आहिस्‍ता 
अपने सर के भी ऊपर तक 

आलिंगन में भर लेता हूं मैं 
सबसे नटखट समुद्री हवा को 

अभी-अभी चूम ली हैं मैंने 
पांच उसांसें रेगिस्‍तानों की 
गुजिश्‍ता रातों की सत्रह करवटें 

ये लो 
यह उड़ चली १२० की रफ्तार से 
इतनी प्राचीन मोटर कार 

यह सब रियाज के दम पर सखी 
या सिर्फ रियाज के दम पर नहीं !

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