हम बारिश
में भीग कर आए.
- फ़रीद ख़ाँ
छाता लेकर निकलना तो इक बहाना था,
असल में हमको इस बारिश में भीगना था.
हम लम्बे मार्ग पर चल रहे थे,
ताकि देर तक भीग सकें साथ साथ....
और ऐसा ही इक मार्ग चुना,
जिस पर और किसी के आने जाने की संभावना क्षीण हो.
लम्बी दूरी के बाद हमें दिखा
एक पेड़ के नीचे,
एक चूल्हा और एक केतली लिए, एक चाय वाला.
एक गर्म चाय हमने पी.
हम भीग रहे थे और हमारे बीच की हवा गर्म थी.
हमारे अन्दर भाप उठ रही थी.
हमने पहली बार एक दूसरे को इतना एकाग्र हो,
इस क़दर साफ़ और शफ़्फ़ाफ़ देखा था बिल्कुल भीतर.
उस क्षण आँखों के सिवा और कुछ नहीं रहा शेष इस
सृष्टि में.
बाक़ी सब कुछ घुल रहा
था पानी में.
6 comments:
वाह !
वाह !
बहुत खूब..........!
बहुत खूब...........
Khoob bhigaya apne
Bahut sunder.....
Aisi hi kavitayen, kahaniya padhiye
e-magazine 'Aashna' me.
www.aashnamagazine.com
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