Friday, July 25, 2014

अमीरख़ानी गायकी की बौछारों से भीगा तराना


उस्त्ताद अमीर ख़ाँ साहब को लेकर हम इन्दौर वाले कुछ ज़्यादा ही भावुक होते हैं.हों भी क्यों नहीं ? उस्तादजी की वजह से ही पूरे देश में इन्दौर को क्लासिकल मौसीक़ी परिदृश्य पर एक ख़ास पहचान हासिल है. जब आप उनका गाया प्ले करें तो बस सुनो और सुनते जाओ.गरज़ ये कि आपके मन-मानस में अभी तक का सारा सफ़ा कर देगा और ख़ाँ साहब का अभी अभी गाया हुआ तारी हो जाएगा. मेघ के तराने को भी जिस तसल्ली और रूहानियत से ख़ाँ साहब ने बरता है वह बस महसूस करने की चीज़ है.न कोई गिमिक्स हैं और न ही द्रुत की ऐसी हरक़ते जो सुनने वाले को खरज से भरी गायकी से महरूम करे.
एक दरवेश की भाँति सुरों की इबादत करता ये अनूठा गायक हम सबको ऐसे लोक में ले जाता है जहाँ तानॊं की मुसलसल बौछारें हैं... आपके बस में है ही क्या सिवा इसके कि आप उनकी मेरूखण्ड गायकी के शैदाई हो जाएँ.इस बार मालवा का सावन देरी से भीगा है लेकिन मेघ में भीगा ये तराना आपको तरबतर कर देगा.सुनिये....अति विलम्बित गायकी का ये शहंशाह किराना घराना,उस्ताद रजब अली ख़ाँ और उस्ताद अब्दुल वहीद ख़ाँ ( बेहरे) के आस्तानों पर सलाम करता हुआ हमें किस क़दर मालामाल कर रहा है. 

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