Monday, August 25, 2014

मेरा चेहरा गोलियों के खेत में गेहूं से बना हुआ एक टेलीग्राम


इब्राहीम मारज़ूक के लिये

-महमूद दरवेश

भोर के शुरू से ही अबूझ था दिन
सूरज दिखना शुरू हुआ, हमेशा की तरह अलसाया
पूर्व की तरफ़, किसी खनिज की राख क्षितिज की राह रोकती है ...
कठोर था पानी
बादलों की नसों में
घरों के पाइपों में ...
बेरूत के जीवन में एक आशाहीन शरद

***

मृत्यु फैलती गई महल से
रेडियो तक, वहां से सैक्स के सेल्समैन तक
वहां से सब्ज़ीमण्डी तक

***

यह क्या है जो तुम्हें जगा रहा है अभी?
ठीक पांच बजे
और तीस लोग मारे जा चुके
दोबारा सो जाओ
यह समय है मृत्यु का और आग का

***

एक चित्रकार था इब्राहीम
वह पानी के चित्र बनाया करता था
वह लिली के फूलों के उगने के लिए एक चबूतरा
भोर के वक़्त जगा दिया जाता तो भीषण ग़ुस्सैल

***

लेकिन उसके बच्चे बुने हुए थे लाइलैक के फूलों और धूप से
उन्हें दूध चाहिये था और डबलरोटी

***

अबूझ दिन. मेरा चेहरा
गोलियों के खेत में गेहूं से बना हुआ एक टेलीग्राम
यह क्या है जो तुम्हें जगा रहा है अभी?
ठीक पांच बजे
और तीस लोग मारे जा चुके

***

डबलरोटी में कभी नहीं था यह स्वाद
यह रक्त यह फुसफुसाहट यह महान भय यह सम्पूर्ण अर्थ यह आवाज़ यह समय यह रंग यह कला यह मानव ऊर्जा यह रहस्य यह तिलिस्म यह अद्वितीय क्षण प्रारम्भ की खोह से
गैंगवार तक और बेरूत की त्रासदी तक

***

ठीक पांच बजे
कौन मर रहा है?

***

अपने हाथों में आख़िरी रंग लिया इब्राहीम ने
तत्वों के रहस्यों का रंग
एक चित्रकार और विद्रोही
उसने चित्र बनाया
एक धरती का जो भरी हुई लोगों, बांज के पेड़ों, और युद्ध
और समुद्री लहरों, कामगारों, खोमचे वालॊं और ग्रामीण इलाक़े से

***

और वह बनाता है चित्र
डबलरोटी के चमत्कार में





इब्राहीम मारज़ूक एक चित्रकार थे, बुधवार ८ अक्टूबर १९७५ को वे लेबनानी गृहयुद्ध में एक बेकरी से डबलरोटी खरीदते समय मारे गए