पृथ्वी
-पतरव
नादेरी
मुझे
अपने आग़ोश में लेने को
पृथ्वी
अपनी गर्म बाँहें खोलती है.
मेरी
माता है पृथ्वी
वह
जानती है मेरी भटकन
का
दुःख.
एक
बूढ़ा कौआ है
मेरी
भटकन
जो
दिन में एक हज़ार दफ़ा
पराजित
करती है एस्पन के पेड़ की चोटी को.
जीवन
शायद एक कौआ है
जो
भोर के समय हर रोज़
सूर्य
के पवित्र कुँए में
डुबोता
है काली पड़ गयी अपनी चोंच.
शायद
दुखों की मारी पृथ्वी होता है जीवन
जिसने
अपनी रक्तरंजित बाँहें खोल दी हैं मेरे लिए
और
जीत के मुहाने पर
यह
मैं हूँ उसे शुक्रिया कहता.
(जुलाई २००२)
कंधार में एक सैन्य चिकित्सालय |
अफ़गानिस्तान की विधवाओं द्वारा संचालित होने वाली एक बेकरी |
काबुल से एक छवि |
पतरव नादेरी मशहूर अफ़गानी कवि हैं. उनकी कविताओं पर एक बड़ी पोस्ट जल्द ही यहाँ लगाने का वादा है. सभी फ़ोटो मशहूर फोटोग्राफर स्टीव मैककरी के खींचे हुए हैं, जिनके बुजुर्गों के खींचे कुछ चित्र आपने कल देखे थे.
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