Wednesday, January 21, 2015

बैठो, अपनी ज़िन्दगी की दावत में शरीक हो

असद ज़ैदी की फेसबुक वॉल से १९९२ में साहित्य का नोबेल पुरूस्कार पा चुके कवि डेरेक वॉल्कॉट की एक कविता. परसों यानी २३ जनवरी को उनका जन्मदिन भी पड़ता है इत्तफाक़न. वे पिचासी के हो जाएंगे -  


इश्क़ पसे-इश्क़ / प्रेमोपरांत प्रेम 

-डेरेक वॉल्कॉट
(अनुवाद: असद ज़ैदी)
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वह वक़्त भी आएगा
जब तुम, बख़ुशी
अपनी दहलीज़ पर ख़ुद ही को
सलाम करोगे, अपने ही आईने में
एक दूसरे के रू-ब-रू स्वागत में मुस्कुराते हुए,

और कहोगे कि आओ, यहाँ बैठो. कुछ खाओ.
तुम उस अजनबी से फिर प्यार करने लगोगे जो तुम आप ही थे.
उसे पेश करोगे मय का प्याला और निवाला. अपने दिल को वापस कर दोगे
अपना दिल, हाँ उसी अजनबी को जिसने तुम्हें प्यार किया

ज़िन्दगी भर, जिससे तुमने बेरुख़ बरती
किसी और के लिए, पर जो तुम्हें दिल से जानता है.
अपनी अल्मारी से हटा दोगे वे सारे प्रेमपत्र,


तस्वीरें, बेताबी भरे पुरज़े,
अपने आईने से उतारोगे अपनी छवि.
बैठो. अपनी ज़िन्दगी की दावत में शरीक हो.

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