आज बसंत पंचमी के अवसर पर सुनवाता हूँ ताहिरा सैयद की महबूब आवाज़ में बसंत के लिए यह गीत. क्या धुन, क्या बोल! वल्लाह! -
लो फिर बसन्त आई,
फूलों पे रंग लाई.
चलो बे दरंग, लबे आबे गंग,
बजे जलतरंग, मन पर उमंग
छाई,
लो फिर बसन्त आई , फूलों
पे रंग लाई ,
आफ़त गई खिज़ां की, किस्मत
फिरी जहाँ की,
चले मै गुसार, सूये
लाला ज़ार,
मैं पर्दादार, शीशे के दर से
झाँकी,
खेतों का हर चरिंदा, बागों का हर परिंदा ,
कोई गर्मखेज़, कोई नगमारेज़, सुब को और तेज़,
फिर हो गया है ज़िन्दा, बागों का हर परिंदा
धरती के बेल बूटे, अन्दाज़े
नौ से फूटे,
हुआ पख्त सब्ज़, मिला
रख्त सब्ज़,
हैं दरख्त सब्ज़ , बन
बन के सब्ज़ निकले,
है इश्क भी, जुनूं भी, मस्ती भी जोशे खूँ भी
कहीं दिल में दर्द, कहीं आह सर्द, कहीं रंग ज़र्द,
है यूँ भी और यूँ भी
फूली हुई है सरसों , फूली हुई है सरसों,
भूली हुई है सरसों , नहीं कुछ भी याद,
यूँ ही बामुराद, यूँ ही
शाद शाद ,गोया रहेगी बरसों,
इक नाज़नीं ने पहने, फूलों के ज़र्द गहने,
है मगर उदास, नही पी के पास,
ग़मो रंजो यास , दिल
को पडे हैं सहने ,
लो फिर बसन्त आई, फूलों
पे रंग लाई
No comments:
Post a Comment