Tuesday, March 10, 2015

कोरा


कोरा
(पूर्ण चक्र)

- तेनज़िन त्सुन्दू

सड़क पर बह रहे बारिश के पानी में बहे जा रहे गोबर के एक टुकड़े पर एक मक्खी बैठी थी. पानी की धारा उसे गांव के छोर पर लेकर गयी जहां स्तूप खड़ा हुआ था. उसके बाद धारा ने मक्खी के साथ उस पवित्र संरचना का चक्कर काटा और एक नज़दीकी उपनदी से जा मिली. अगले जन्म में मक्खी ने एक मनुष्य के रूप में जन्म लिया और उसे अवसर मिला कि वह बुद्ध के शब्दों को सुन सके. ऐसा धर्मशास्त्रों में लिखा हुआ है.

धर्मशाला. दिसंबर का आखीर. कई दिनों से बर्फ गिर रही है. हालांकि दोपहर का सूर्य निकला हुआ है, हवा में कड़ाके की सर्दी है. मकलोडगंज में जहां सूरज अभी अभी बादलों के पीछे से निकला है, ताशी सड़क पर निकलता है.

घर पर रहने से ऊबा हुआ, वह टहलने निकला है. उसकी अलसाई चाल उसे दुकानों और खोखों की कतार के अंत तक पहुंचाती है. वहां उसकी मुलाक़ात न्यीमा (जो एक पुराना ब्लेज़र पहने है) से हो जाती है, वह उससे हाथ मिलाता है, और ताशी कहता है, “कैसे नो न्यीमा?”

जवाब में न्यीमा पूछता है, “लिंग्खोर दो गया?” (परिक्रमा के लिए चल रहे हो?)

ताशी जवाब देता है “दो की मेन्के!” (नहीं यार!)

वह मकलोडगंज की सड़कों पर टहलता रहता है, बिक रही चीज़ों, महानगरीय भीड़, अंग्रेज़ी, हिन्दी, तिब्बती,पंजाबी में लिखे दुकानों के नामों, पार्श्व में चल रहे तिब्बती संगीत के साथ साथ एक समय धर्मशाला के नाम से जाने जाने वाले उस छोटे शहर की नैसर्गिक आवाजों के बीच से बेखबर प्रसन्न होकर गुज़रता हुआ. ताशी की आयु पच्चीस से अधिक नहीं हो सकती. उसकी मुद्रा वैसी ही है जैसी उसके जैसी उम्र वालों की होती है और वह उस के चेहरे से टपक रही है. वह ग्रेजुएट है पर अभी अपने करियर पर उसकी पकड़ मज़बूत नहीं है. आज वह नीली जीन्स और लाल धारियों वाला जैकेट पहने हुए है. उसकी जीन्स पर लगे गंदे धब्बे और ड्राइंग्स बता रहे हैं कि उसके माता-पिता घर पर नहीं हैं.

ताशी मंदिर को जाने वाली सड़क पर कदम रखने ही वाला था जब बूढ़ा उसकी बगल से गुज़रा. तशी अपनी घड़ी में समय देखता है, सड़क पर निगाह डालता है, और चलता रहता है. वह नामग्याल मठ के नज़दीक किराने की की दूकान के ऊपर एक खाली जगह का मुआयना करता है, वहां जम्पा से मिलता है और न्गोडुप और सलमान की बाबत पूछताछ करता है. जम्पा अपनी गर्लफ्रेंड का इंतज़ार कर रहा है. चाय की वह दूकान आज बंद है जहां वे अक्सर कैरम खेला करते हैं. ताशी सोचने लगता है आज का दिन बहुत ज़्यादा ही उबाऊ होने जा रहा है. वह ढलान पर उतरने लगता है. जल्द ही वह लिंग्खोर के रास्ते पर होगा.  

कोलतार की एक घुमावदार लकीर जंगल की तरफ़ जाती है; झाड़ियों के बीच चीड़, स्प्रूस, बांज और बुरुंश के पेड़ खड़े हुए हैं.  हरी पहाड़ी के गिर्द यह संकरा रास्ता  किसी कमरबंद की तरह चलता है. पहाडी की चोटी पर परमपावन गुरु दलाई लामा का निवास है, निर्वासन में उनका निवास. लिंग्खोर के चरों तरफ लोग बाएँ से दाएँ चला करते हैं जैसा वे पोटाला के गिर्द ल्हासा में किया करते थे, वर्षों पहले.

अब ताशी दोपहर के सूरज का आनंद ले रहा है. और लिंग्खोर के रास्ते से अपने सामने वह अपनी हथेलियों की रेखाओं जैसी पसरी कांगड़ा घाटी को देखता है. उसके पीछे धौलाधार पर्वतश्रृंखला है, कंधे से कंधा मिलाये बर्फ से ढँकी चोटियाँ नीले आसमान के पार्श्व के आगे खड़ी हैं जिसपर चपल सफ़ेद बादल चित्रित जैसे किये गए हैं. चलते हुए उसे सड़क पर यहां-वहां बर्फ के टुकड़े दिखाई देते हैं. वह ‘ॐ मणि पद्मे हम’ उकेरे गए स्लेट के पत्थरों के एक ढेर के आगे से गुजरता है जिन्हें पांच मूलभूत रंगों से रंगा गया है – नीला, सफ़ेद, लाल, हरा और पीला.

जब वह मणि उकेरने वाले के पास पहुँचता है, वह उस कारीगर को काम करते देखने को ठहर जाता है. वह एक स्लेट पर एक सम्पूर्ण ‘ॐ’ को उकेरे जाते देखता है. उसके चहरे पर एक विचित्र सी संतुष्टि आ गयी जब उस पवित्र शब्द को लिख चुकने के बाद कारीगर ने एक लम्बी सांस भरी. बूढ़े कारीगर ने अपनी कला को देख रहे युवा दर्शक की उपस्थिति को स्वीकार किया. “आज ठण्ड बहुत है न, पो-ला?” अपने शब्दों के साथ भाप का एक बादल मुक्त करता हुआ ताशी पूछता है. अपनी छैनी और लकड़ी की हथौड़ी को ज़मीन पर गिर जाने देता हुआ कारीगर जवाब देता है, “तिब्बत में इतनी बर्फ पड़ती है जितनी तुम्हारी ऊंचाई है,” अपने बाएँ हाथ को हवा में ऊपर उठाकर वह ऊंचाई पर जोर देता है. फिर वह अपने औज़ार उठा लेता है. एक भी शब्द बोले बिना ताशी अपना टहलना फिर शुरू कर देता है. तनिक चिंतित दिखता बूढ़ा कारीगर ताशी को दूर जाता हुआ देखता है.

थोड़ा आगे जाने पर उसे सहारे के लिए लाठी थामे वही बूढ़ा नज़र आ जाता है जिसे उसने मकलोडगंज में देखा था. उसकी कमर थोड़ा सा झुकी हुई है लेकिन उसकी मुद्रा दृढ़ इच्छाशक्ति वाले एक स्वस्थ मनुष्य की जैसी है. उसका चुबा काले नम्बू का बना हुआ है और उसने ज़ोम्पा की एक जोड़ी पहन रखी है. उसके बाएँ हाथ में प्रार्थनाचक्र है जिसकी वजह से ऐसा लग रहा है जैसे उसने संकरे लिंखोर मार्ग को पूरा का पूरा घेर रखा है. बूढ़े के जाने बिना उसके पीछे चल रहा ताशी तेज़ चलता हुआ उससे आगे निकल जाने की जुगत में लगा हुआ है. वह बाईं तरफ से आगे निकलने की कोशिश करता है लेकिन उसे उसके प्रार्थनाचक्र से टकरा जाने का भय होता है. वह दाईं तरफ से कोशिश करता है लेकिन बूढ़े की लाठी जब भी संकरे कोलतार से लगती है, अस्थिर हो जाती है.

ताशी नाले के ऊपर से होकर जा रहे रास्ते को देखता है. वह जल्दी-जल्दी बाईं तरफ जाता है और बूढ़े को ज़रा भी बाधा पहुंचाए बिना उससे आगे निकल जाता है. बूढ़ा तुरंत ठठाकर पूछता है. “बहुत जल्दी में हो जवान?” ताशी पलटकर देखता है और बिना कुछ बोले आगे चलना जारी रखता है. मणियों के एक ढेर के पास पहुंचकर बूढ़ा ठहरता है और कुछ प्रार्थनाएं बोलकर अपनी आँखें बंद कर लेता है. वह साठ साल के आसपास का हो सकता है. बूढ़े के चेहरे पर झुर्रियों के गड्ढे पड़े हुए हैं. दो लटों में गुंथे हुए उसके सफ़ेद-सलेटी बाल उसकी टोपी के नीचे धंसे हुए हैं. उसकी टोपी पर दलाई लामा एक छोटा सा फ़ोटो पिन किया हुआ है. जब वह रास्ते पर एक विशाल चट्टान पर बनी देवता की छवि को स्पर्श करने के लिए अपना माथा आगे को झुकाता है, उसकी माला उसकी गर्दन से टंग सी जाती है.  

एक तीखे मोड़ के बाद वह पाटा है कि युवक सड़क के किनारे आराम कर रहा है. उसके चेहरे को देखता बूढ़ा चिढ़ाता हुआ कहता है: “अभी से थक गए? अभी तो बहुत लंबा रास्ता है जवान.” थोड़ी देर विचार करने के बाद वह तकरीबन गरियाते हुए बोलने लगता है, “आजकल के जवान किसी काम के नहीं रह गए हैं. बस अपना समय और अपने माँ-बाप का पैसा बर्बाद करने के.” ताशी को यह बात पसंद नहीं आती और वह उत्तर देना चाहता है. वह धीरे से उठता है और बूढ़े के पीछे उसके नज़दीक पहुँच जाता है.

अपने को खरीखोटी सुनाने वाले से खीझा और क्रोधित ताशी अपने दिमाग में आई पहली बात को उगल देता है – “ तुम लोग थे जिन्होंने हमारे देश को चीनियों के हाथों सौंप दिया था!” वह गौर से बूढ़े के चेहरे को देखने लगता है. ताशी ने ऐसा अपने गुस्से को व्यक्त करने के लिए कहा था न कि बूढ़े को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से. बूढ़ा संयमित दीखता तो है, पर बुरी तरह आहत है. वह रास्ते के बीचोबीच रुक जाता है. उससे थोड़ा ही पीछे चल रहे ताशी को भी रुकना पड़ता है. बूढ़ा ठन्डे और झिलमिलाते पहाड़ों की पृष्ठभूमि में ताशी के चेहरे का मुआयना करता है और कहता है, “अगर मेरा बेटा जिंदा होता होता तो तुमसे बड़ा होता. लेकिन वह चीनियों से लड़ता मारा गया. मेरी गोद में मरा वह.” बूढ़ा अपनी छाती को दबाता हुआ कहता है, “लम्बी कहानी है मेरी. तुम बताओ तुमने तिब्बत के लिए क्या किया है अब तक?” बूढ़ा सख्त, सवालिया आवाज़ में पूछता है. ताशी उन तिब्बती अभियानों के बारे में बढ़-चढ़कर बताता है जिन्हें उसने कॉलेज में अपने भारतीय मित्रों की मदद से चलाया था. वह उन विरोध-प्रदर्शनों के उदाहरण देता है जिनमें उसने हिस्सा लिया था, तिब्बती संस्कृति पर अपनी लगाई प्रदर्शनियों का ज़िक्र करता है और उण भूख हड़तालों का भी जिनमें वह बैठा था, लेकिन थोड़े समय बाद बूढ़े के सामने उसे अपनी खुद की आवाज़ खोखली महसूस होने लगती है. दोनों के बीच लम्बी बेचैनीभरी खामोशी रहती है. ताशी देर दोपहर सड़क के किनारे की रोड़ियों पर पड़ रही एक दूसरे के सामने खड़े दोनों आदमियों की छायाओं को देखता है. फिर पूछता है, “आप खाम के किस हिस्से के हैं?” बूढ़े के बोलने के लहजे से ताशी ने सही अनुमान लगाया था कि वह खाम का रहनेवाला था.  

बूढ़ा अब एक-एक कदम आगे बढ़ रहा है, चीनियों के तिब्बत में आने की कहानियाँ बतलाता हुआ. इस तरह, गहरी बातचीत में खोये दोनों ल्हाग्याल री क्षेत्र में प्रवेश करते हैं. वे एक दूसरे में इस कदर डूबे हुए हैं कि वे लिंग्खोर की समूची संरचना का हिस्सा जैसे बन गए हैं; स्तूप, प्रार्थना की झंडियाँ, प्रार्थनाचक्रों की कतारें और चलते हुए अन्य भक्त. ऊंची, स्पष्ट आवाज़ में बूढ़ा कहानियां सुनना जारी रखता है. एक दूसरे का अनुसरण करते वे दीवार पर लगाए गए प्रार्थनाचक्रों की कतारों को गतिमान बनाते हैं. स्तूपों पर दंडवत करते और पेड़ों पर प्रार्थनाएं बांधते और लोग भी हैं. कुछ बूढ़े लोग बारिश से बचने के लिए बनाई गयी जगहों पर बैठे प्रार्थनाएं बुदबुदा रहे हैं.

दोनों आदमी जब पाल्दोन ल्हामो की ओर जाने वाली सीढ़ियों पर चढ़ना शुरू करते हैं, उनके बीच वार्तालाप बंद हो जाता है. ताले लगी खिड़की के सामने, जिसके भीतर देवता प्रतिष्ठित हैं, वे सीधे खड़े रहते हैं. उनके चेहरे शांत दिख रहे हैं – गहरी भक्ति और प्रार्थना में निमीलित नेत्र, छाती पर बंधे हुए उनके हाथ. ताशी के पास हमेशा ही कम प्रार्थनाएं हुआ करती हैं और उसके दंडवतों  में भी बूढ़े से कम समय लगता है. वह सब कुछ जल्दी से निबटाकर एक तरफ खड़ा हो, बूढ़े की प्रतीक्षा करने लगता है. 
  
पीछे की पहाड़ियों पर बंधी प्रार्थनाओं की आड़ी-तिरछी रंगबिरंगी झंडियों की पृष्ठभूमि से वे पाल्दोन ल्हामो की स्तूप से नीचे उतरते हैं,. ताशी बूढ़े के असंतुलित क़दमों को देखता है पर ज़ाहिर तौर पर उसे सहारा देने को अपना हाथ नहीं बढ़ाता. बूढ़ा एक और घटना के बारे में बता रहा है, लेकिन वह एक कदम के साथ केवल एक ही शब्द कहता है. जब वे अपनी दाईं तरफ प्रार्थनाचक्रों की एक और कतार की बगल से गुज़रते हैं, बूढ़े की आवाज़ सुनाई पड़ती है: “मैं एक नदी के नज़दइक अपने और अपने बेटे और साथी घुड़सवार योद्धाओं की प्यास बुझा रहा था. उस दिन,” वह लाठी के साथ अपनी उंगली उठाकर इशारा करता है, “हमने दस चीनियों को मारा था, कई को बुरी तरह घायल कर दिया था और वे जान की भीख मांग रहे थे. हमने दो हफ्ते के लिए पर्याप्त खाना और हथियार लूट लिए थे. हमारे खबरिये ने कहा था कि पहाड़ी के पीछे चीनियों का एक छोटा सा समूह तैनात था जो अगले दिन एक बड़े समूह और फिर चीनी सेना से मिलने जा रहा था.”

“उस रात,” बूढ़े ने कहानी सुनाना चालू रखा: “हमने कुछ देर घोड़ों पर सवार होकर कुछ दूरी तय की, और जब हम कैम्प के नज़दीक पहुंचे को थे, हमने घोड़ों को दुलकी चाल में कर लिया.” बूढ़ा अब अपनी लाठी की सवारी कर रहा है; उसकी आवाज़ में गुस्सा है और उसका चेहरा चमका रहा है जबकि वह इस नौजवान के सामने पूरे नाटक को पुनर्सृजित करने की कोशिश कर रहा है. “हम रेंगने लगे थे,” अपने घुटने मोड़ते हुए उसने ताशी से झुकने का इशारा किया. अब वे लिंग्खोर के पश्चिम में एक नन्हे ढाल पर चढ़ रहे हैं. लाठी थामे ढाल पर चढ़ते हुए उत्तेजना में बूढ़े की सांस फूल गयी है और उसे खूब पसीना आ रहा है. जैसे ही वे ढाल की चोटी पर पहुँचने को होते हैं, वे डूबते सूरज की रोशनी में नहा जाते हैं. बूढ़े की कहानी अब चीनियों के अड्डे के दरवाज़े पर पहुँच गयी है. वह अपनी टोपी उतार उसे ताशी को थामने के लिए देता है. अपना प्रार्थनाचक्र भी. अब उसने अपनी लाठी को अपनी कमर पर किसी तलवार की तरह थाम रखा है. फिर वह चीखता है, “कि हे हे!” हम दाखिल हुए” बूढ़ा तशी को फुसफुसा कर बताता है. वह अपनी तलवार को बर्फीली चोटियों के सम्मुख आसमान में ऊंचा उठाता है और एक झटके में उसे नीचे लाता है, फिर तुरंत एक और झटके में एक तरफ को किनारे उगी झाड़ी पर वार करता है. अगली गति में वह ताशी की तरफ झुकता है. ताशी की छाती पर लाठी लगाए-लगाए वह कहता है, “हमने ताबड़तोड़ लोग मारे.”

बूढ़े की गुंथी हुई लट सामने की तरफ़ से खुल गयी है, और आवारा बाल उसके माथे को ढंके हैं, वह हर तरह से एक खतरनाक योद्धा लग रहा है, हांफता हुआ, पसीना-पसीना, “जब धुल छंटी, मैंने अगले कमरे में अपने बेटे को औंधे गिरा पाया. उसका पेट चीरा जा चुका था और उसने अपने हाथों में अपनी अंतड़ियां थाम रखी थीं. मैंने उसे सहारा देकर अपनी गोदी में लिटाया लेकिन उसकी आख़िरी साँसें ही बची हुई थीं. उसकी बगल में तीन चीनी सैनिक मरे पड़े थे.”
बिना कुछ कहे बूढ़े ने ताशी से अपनी टोपी और प्रार्थनाचक्र वापस लिए. तलवार वापस धरती को देख रही थी, चलते हुए बूढ़े को सहारा देती. बूढ़े की चाल में थोड़ा असंतुलन है लेकिन वह चलना जारी रखता है, “जब अमेरिकी एजेंटों ने अपना समर्थन वापस लिया हर चीज़ गड़बड़ा गयी.” अपनी टोपी को व्यवस्थित करता, बालों को पीछे करता वह अब धीरे-धीरे चल रहा है. नज़दीक ही मणि-प्रस्तरों की एक ढेरी तक पहुंचने के रास्ते भर उनके बीच खामोशी रहती है.     

बूढ़ा नज़दीक की एक चट्टान पर बैठ जाता है, और ताशी उसकी बगल में बैठता है. अब वे शाम के नारंगी रंग की भरपूर रंगत की पूरी ज़द में हैं. बूढ़ा अपने प्रार्थनाचक्र को आराम देकर उसे गोद में रख लेता है. बूढ़ा घोषणा करता है: “हमने कभी भी हार नहीं मानी. अगर चीनियों ने हमें पकड़ लिया होता तो हम अपनी गर्दनें कलम कर लेते.” ताशी अपने बूढ़े गुरु को सुन रहा है. “चाहे एक दिन जियो, लेकिन पूरी शान और आजादी के साथ.” बूढ़ा सलाह देता है, उसका एक हाथ कमर पर धरा हुआ है दूसरा लाठी थामे है. उसकी लाठी शान से खड़ी है.   

किसी पके आम सा नर्म हो चुका नौजवान सुन रहा है. बूढ़ा उम्मीदों से भरपूर आवाज़ के साथ ताशी से बातें करना जारी रखता है जैसे कोई पिता अपने बेटे से संघर्ष करते रहने को अनुरोश कर रहा हो. ताशी बूढ़े के हाथ थाम लेता है और उसके हाथों की ताकत बूढ़े को आराम पहुंचाती है. बूढ़े की बात अभी ख़त्म नहीं हुई है. वह ताशी को दांता है. “ऐसे नहीं करते आप” वह कहता है. “हम अपने माथे को छूते हैं और प्रार्थना करते हैं. यह होता है तरीका.” बूढ़ा ताशी की आँखों की हिचक को महसूस कर लेता है और बोलता है, “दुआ है तुम अधूरे काम को पूरा करो. मेरी दुआ है तुम अपने संघर्ष में कामयाब होओ और परमपावन दलाई लामा को वापस आज़ाद तिब्बत में लेकर जाओ.”

दलाई लामा के निवास की दिशा में मुंह करके बूढ़ा अपनी प्रार्थनाएं कहने लगता है. उसका माथा प्रार्थनाचक्र की तरफ झुकता है जिसे उसने अपने बंधे हाथों में थाम रखा है. गोधूलि की आखिरी रोशनी में जब वह अपनी प्रार्थनाएं बुदबुदा रहा है, ताशी दूर चला जाता है, ठंडी शाम ने धीरे-धीरे गायब होता हुआ.


(मूलतः इसे एक फिल्म स्क्रिप्ट की तरह लिखा गया था.)

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