विन्सेंट वान गॉग की सूरजमुखी श्रृंखला से एक चित्र |
मैं
आता रहूँगा तुम्हारे लिए
-
चन्द्रकान्त देवताले
मेरे
होने के प्रगाढ़ अंधेरे को
पता
नहीं कैसे जगमगा देती हो तुम
अपने
देखने भर के करिश्मे से
कुछ
तो है तुम्हारे भीतर
जिससे
अपने बियाबान सन्नाटे को
तुम
सितार सा बजा लेती हो समुद्र की छाती में
अपने
असंभव आकाश में
तुम
आजाद चिड़िया की तरह खेल रही हो
उसकी
आवाज की परछाई के साथ
जो
लगभग गूंगा है
और
मैं कविता के बन्दरगाह पर खड़ा
आँखे
खोल रहा हूँ गहरी धुंध में
लगता
है काल्पनिक खुशी का भी
अन्त
हो चुका है
पता
नहीं कहाँ किस चट्टान पर बैठी
तुम
फूलों को नोंच रही हो
मैं
यहाँ दुःख की सूखी आँखों पर
पानी
के छींटे मार रहा हूँ
हमारे
बीच तितलियों का अभेद्य परदा है शायद
जो
भी हो
मैं
आता रहूँगा उजली रातों में
चन्द्रमा
को गिटार सा बजाऊँगा
तुम्हारे
लिए
और
वसन्त के पूरे समय
वसन्त
को रूई की तरह धुनकता रहूँगा
तुम्हारे
लिए
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